या हुसैन! कर्बला की कहानी तस्वीरों की जुबानी
अमरोहा प्रत्येक चित्रकार कलमकार या शायर दुनिया के हरेक घटनाक्रम को अपने नजरिए से देखते हैं।

अमरोहा: प्रत्येक चित्रकार, कलमकार या शायर दुनिया के हरेक घटनाक्रम को अपने नजरिए से देखता है। फिर अपने फन के सहारे उसे लोगों तक पहुंचाता है। ऐसे ही चित्रकार वसीम अमरोही हैं। उन्होंने कर्बला की जंग को मर्सिया के सहारे अपने हुनर की आंख से देखा तथा ऐसी 10 तस्वीर बनाकर पेश कीं, जिन्हें देख कर कर्बला में शहीदों का दर्द लोग बखूबी समझ सकें। इन तस्वीरों की प्रदर्शनी नगर के अजाखाना अकबर अली में लगी है। जिसे देखने लोग पहुंच रहे हैं।
इन दिनों मुहर्रम का महीना चल रहा है। मुस्लिम (विशेषकर शिया) समुदाय में मुहर्रम को गम का महीना माना जाता है। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम माह की पहली तारीख से 10 तारीख तक मुसलमान शोक मनाते हैं। हालांकि इस बार कोविड-19 की गाइड लाइन के मुताबिक मातमी जुलूस नहीं निकाले जा रहे हैं परंतु अजादार कर्बला के शहीदों का गम मना रहे हैं। अमरोहा के मुहल्ला छेबड़ा निवासी युवा चित्रकार वसीम अमरोही ने एक मुहर्रम से लेकर 10 मुहर्रम तक हजरत इमाम हुसैन व उनके परिवार पर कर्बला में हुए जुल्म की दास्तां को अपनी चित्रकारी के माध्यम से लोगों के सामने रखा है।
मुहर्रम के दौरान पढ़े जाने वाले मर्सिया को आधार बनाकर उन्होंने 10 चित्र तैयार किए हैं। इन चित्रों में हजरत इमाम हुसैन के कर्बला पहुंचने से लेकर सात मुहर्रम को पानी बंद होने और उसके बाद 10 मुहर्रम को हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को खूबसूरत अंदाज में दर्शाया गया है। मुहल्ला दानिशमंदान स्थित अजाखाना अकबर अली में मौलाना रजा अली रजन के सहयोग से वसीम ने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई। इन्हें देखने के लिए शहर के लोग पहुंचे। वसीम बताते हैं कि उनका उद्देश्य चित्रकारी के माध्यम से कर्बला की जंग व हजरत इमाम हुसैन व उनके परिवार पर हुए जुल्म को लोगों के सामने लाना था। प्रदर्शनी के कन्वीनर अजीम अब्बास ने बताया कि इस प्रदर्शनी के सहारे लोग यह जान सकेंगे कि हजरत इमाम हुसैन ने किस तरह शहादत हासिल की, लेकिन झूठ व गलत का साथ नहीं दिया।
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