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    बड़ों के साथ बैठने से मिलते हैं संस्कार

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 01 Oct 2018 10:46 PM (IST)

    बच्चों को सहीं संस्कार बुजुर्गों के पास बैठने से मिलते हैं। इसके लिए जरूर समय निकालना चाहिए। अभिभावकों को भी अपने बच्चों के साथ कुछ समय प्रतिदिन अवश्य ...और पढ़ें

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    बड़ों के साथ बैठने से मिलते हैं संस्कार

    हसनपुर : बच्चों को सही संस्कार बुजुर्गों के पास बैठने से मिलते हैं। इसके लिए जरूर समय निकालना चाहिए। अभिभावकों को भी अपने बच्चों के साथ कुछ समय प्रतिदिन अवश्य बिताना चाहिए। यह बात सत्यप्रकाश लक्ष्मी देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज में सोमवार को प्रधानाचार्य आनंद पाल ¨सह ने कही।

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    उन्होंने कहा कि बच्चों की ख्वाहिश पूरी करने से ही उन्हें संस्कारवान नहीं बनाया जा सकता। बाल अवस्था से ही बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। बच्चों की अनावश्यक ख्वाहिश को पूरी करने से बचना चाहिए। आज बच्चे माता पिता को अपने हिसाब से जीवन निर्वहन करने को मजबूर करते हैं। बच्चों की जिद पूरी करने के चक्कर में अभिभावक बहुत सी नैतिक जिम्मेदारियों को दरकिनार कर देते हैं। वहीं कुछ अभिभावक भौतिकता की दौड़ में फंस गए हैं, जो बच्चों की ख्वाहिश तो पूरी कर रहे हैं परंतु उनके पास यह देखने का समय नहीं है। इसके बारे में सजग नहीं रह पाते। अत्यधिक व्यस्तता का परिवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नैतिक जिम्मेदारी के अभाव में बच्चों का भी अपने बड़ों व बुजुर्गाें से लगाव कम हो रहा है। हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि संयुक्त परिवार नैतिक गुणों एवं संस्कारों के लिए बहुत जरूरी हैं। पुराने जमाने में संयुक्त परिवारों के बच्चे अपने बड़ों के पास बैठकर उनके जीवन के अनुभव को साझा कर लेते थे। लेकिन आज के दौर में हमें एक दूसरे के पास बैठकर बातें करने का समय तक नहीं है। बच्चों की ख्वाहिश को समझ कर ही हमें उनकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। चूंकि आधुनिक चकाचौंध में धनाढ्य वर्ग के संपर्क में आने से मध्यम वर्ग के बच्चों के शौक बढ़ जाते हैं। हमें अपने परिवार की हैसियत को ध्यान में रखकर अपनी ख्वाहिश पर नियंत्रण रखना चाहिए। चूंकि संसार में सब लोग बराबर नहीं हो सकते। हर एक परिवार की आर्थिक क्षमता जुदा होती है।

    कीर्ति चौहान, छात्रा। अभिभावक भौतिकता की दौड़ में फंसते जा रहे हैं। बच्चों की ख्वाहिश तो पूरी कर रहे हैं लेकिन उनके पास बच्चों के पास बैठकर बात तक करने का समय नहीं मिलता। उनकी इसी व्यस्तता के फेर में परिवार अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। बच्चों पर कार्य का दायित्व भी उसकी उम्र के हिसाब से सौंपना चाहिए। कम उम्र के बच्चों को जरूरत से अधिक पैसा खर्च करने की छूट नहीं देनी चाहिए।

    प्रियम चौहान, छात्र। संयुक्त परिवार नैतिक गुणों एवं संस्कारों के लिए बहुत जरूरी है। अपनों से बड़ों के साथ बैठने से बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा बेहतर संस्कार भी सीखने को मिलते हैं जो बच्चों को जीवन भर काम आते हैं। उनकी अच्छी परवरिश के लिए जरूरी हैं।

    शिव भारद्वाज, छात्र। आधुनिक परिवेश में हर व्यक्ति अपने बच्चों की ख्वाहिश को पूरा करने की दौड़ में है। हमें बच्चों की ख्वाहिश को पहले समझना चाहिए बच्चों की हर एक इच्छा पूर्ति करने से कभी कभी बच्चे गलत दिशा में जाने लगते हैं यानी वह अमीरों जैसे शोक करने शुरू कर देते हैं।

    कुनाल गिरि, छात्र।