पालनहार बेगाने, जिम्मेदार सुस्त... बारिश में भीगकर गायों का हाल-बेहाल
अमरोहा में गोवंश पशुओं की स्थिति दयनीय है। पहले किसान और महिलाएं गायों की देखभाल करते थे पर अब वो गोसेवक नहीं रहे। योगी सरकार गोवंश संरक्षण को प्राथमिकता दे रही है फिर भी पशु बारिश में भीग रहे हैं। किसान भले ही उन्हें छोड़ दें पर गोवंश रात में गांवों में ही शरण ढूंढते हैं। बेजुबानों का दर्द समझने वाला कोई नहीं है।

जागरण संवाददाता, अमरोहा। आखिर कहां गए वह पालनहार जो, बेजुबान गायों के रंभाने की आवाज से उनके दर्द को समझ लेते थे। उनके रंभाने और पालनहार की तरफ देखने से समझ जाते थे कि गाय खाने को मांग रही हैं या प्यासी हैं। बरसात में भीगने पर ठंड से बचाने को गाय और बैलों को गुड़ खिलाने के साथ ही सींगों से सरसों का तेल लगा देते थे। पशुओं के बीमार होने पर बेचैन हो जाते थे।
बैलों के हल से खेतों की जुताई और रहठ से फसलों की सिंचाई करने वाले किसानों को जंगल में जब रोटी जाती थी तब किसान की रोटी के साथ बैलों के लिए भी चोकर और आटे का नमकीन रामरोट बनकर जाता था। महिलाएं घरों में पहले सिकी हुई रोटी गो माताओं को खिलाया करती थी, लेकिन गायों और बैलों से प्रेम करने वाले वह पालनहार अब नहीं रहे।
वर्तमान समय में प्रदेश की योगी सरकार की प्राथमिकता में गोवंशीय पशुओं का संरक्षण शामिल है। क्षेत्र में गो प्रेमियों की भी भरमार है। लेकिन, सैकड़ों की तादाद में गोवंशीय पशु भादो माह की ठंड से भरी वर्षा में रविवार रात से लेकर सड़कों पर भीगते हुए घूम रहे हैं।
पशुओं के प्रत्येक झुंड में एक दो पशु ऐसा दिखाई देता है जिसके पैर में कीड़े पड़ रहे हैं। परंतु, देखने वाला अथवा उनके दर्द को समझने वाला अब कोई नहीं है। रविवार रात के साथ ही सोमवार और मंगलवार को रुक-रुक कर दिनभर वर्षा होती रही। जिसमें गोवंशीय पशु बरसात में भीगते हुए कांपते रहे। परंतु जिम्मेदारों का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है।
गोवंशीय पशुओं का किसानों से बेहद लगाव
प्राचीन काल से ही गोवंशीय पशुओं का किसानों से बेहद लगाव रहा है। गायों ने जहां पौष्टिक दूध, दही, छाछ, घी और मक्खन देकर किसानों को स्वस्थ रखने का काम किया है वहीं, बछड़े देकर किसानों को खेती करने का रास्ता भी दिखाया है। इसीलिए गाय को मां का दर्जा दिया गया है।
खास बात यह है कि गोवंशीय पशुओं को पालनहारों ने बेरुखी करके भले ही बेसहारा जंगल में छोड़ दिया है लेकिन, गोवंशीय पशु जंगल में रात नहीं बिता सकते। दिन छिपाने से पहले ही वह खेतों में इधर-उधर मुंह मार कर पेट की आग बुझाकर रात को शरण लेने गांवों में ही पहुंचते हैं, लेकिन अपनी पशु शालाओं में किसान उन्हें शरण देने को तैयार नहीं हैं। लगातार हो रही वर्षा के इस मौसम में बेजुबानों का दर्द कोई नहीं समझ पा रहा है।
तहसील क्षेत्र में अभियान चलाकर बेसहारा पशुओं को पकड़ा जा रहा है। लेकिन, बड़ी तादाद में घूम रहे पशु पालकों के छोड़े हुए हैं। इसलिए, पशुपालकों को भी अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए। जिन पशुओं के बीमार होने की सूचना मिलती है तुरंत टीम भेज कर उनका इलाज कराया जाता है।
-डाॅ. चरनजीत सिंह, उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी हसनपुर
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