गाय के गोबर से गुलाल बना अपनों की जिंदगी में भर रही खुशियों के रंग
गाय के गोबर से ऑर्गेनिक गुलाल बनाकर महिलाएं अपने जीवन में खुशियों के रंग भर रही हैं। साथ ही दूसरों को केमिकल रंगों के नुकसान से भी बचा रही हैं। इस पहल ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है और नारी सशक्तीकरण का एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है। पढ़ें इन महिलाओं की अनोखी पहल के बारे में जिसने कई लोगों की जिंदगियों में रंग भर दिए हैं।

दिलीप सिंह, अमेठी। गाय के गोबर से ऑर्गेनिक गुलाल बनाकर महिलाएं अपनों की जिंदगी में खुशियों का रंग भरने में जुटी हैं। अपनों के साथ यह महिलाएं दूसरों को भी केमिकल रंगों से होने वाले नुकसान से बचाने का भी कम कर रही है। अपनी आमदनी के साथ दूसरों की सुरक्षा व खुशियों में गुलाल बन गांव की सीधी-साधी महिलाएं आत्मनिर्भरता के साथ नारी सशक्तीकरण का उदाहरण बन समाज में अपनी चमक बिखेर रही हैं।
जिले के भादर विकास क्षेत्र के गांव भावापुर की रहने वाली रामरती यादव, संजू देवी व सरला ने राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के ऋण के सहारे आर्गेनिक गुलाल बनाने का काम पांच वर्ष पहले शुरू किया है। होली में इनके बनाए रंग की मांग समय के साथ बढ़ती जा रही है।
ऐसे में धीरे-धीरे ही सही संजू के साथ काम कर आत्मनिर्भर बनाने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है। इस काम में गांव की 40 से अधिक महिलाएं इस काम में लगी है। समूह की महिलाएं रंग के साथ ही पेंट व दूसरे उत्पाद भी गोबर से बना रही हैं।
प्राकृतिक पेंट की मांग सबसे अधिक दक्षिण भारत के राज्यों में है। महिलाएं बताती हैं कि आनलाइन व्यावसायिक वेबसाइट एमेजान, फ्लिप कार्ट व मीशो पर खादी इंडिया के नाम से संस्था दर्ज हैं। महीने में सात से आठ सौ लीटर तक प्राकृतिक पेंट का आर्डर मिल जाता है।
गुलाल बनाने के लिए महिलाएं गोबर का अत्यधिक प्रयोग करती हैं। इसके लिए महिलाओं ने कई बेसहारा मवेशियों को सहारा भी दिया है। गांव की कृष्णा गोशाला में वर्तमान में 40 से अधिक गाय हैं। रंग के कारोबार से आमदनी कमाने वाली महिलाओं ने गाय की सेवा का भी व्रत लिया है।
गोबर सुखाकर उसकी राख से बनाती हैं रंग: गाय के गोबर को सूखा कर महिलाएं पहले राख तैयार करती हैं। गोबर की राख की पिसाई कर पहले उसे बारिक बनाती हैं। फिर उसको छानकर उसमें अरारोट, सफेद मिट्टी और आर्गेनिक कलर मिलाकर धूप में सुखाती हैं। जगदेई, रामादेवी, श्रीमती, पुष्पा देवी व कौशल्या ने बताया कि इस बार होली में चार क्विंटल रंग बनाया गया है।
बाजार में अब तक बेचा चार क्विंटल से अधिक ऑर्गेनिक रंग
समूह की महिलाओं ने इस होली पर अब तक चार क्विंटल से अधिक रंग बाजार में बेच चुकी हैं। अभी रंग की मांग कम नहीं हुई है। गति कोरियर कंपनी के माध्यम से महिलाओं ने दिल्ली, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड व कर्नाटक के शहरों में होली के पहले प्राकृतिक रंग की आपूर्ति की है। लगातार दुकानदार आर्गेनिक गुलाल आकर ले जा रहे हैं। साथ ही आस-पास के लोग भी महिलाओं से ही रंग खरीद रहे हैं। रंग बनाने के कम में लगी महिलाएं घर बैठे 10 से 15 हजार रुपये तक कमा रही हैं।
गोबर से ऐसे तैयार होता है प्राकृतिक पेंट
गाय के गोबर से यह महिलाएं प्राकृतिक पेंट भी तैयार कर रही हैं। इसे बनाने के लिए पहले गाय के गोबर को प्रीमिक्स मशीन में पानी के साथ मिलाकर तीन से चार घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। पूरी तरह घुलने के बाद गोबर की स्लरी को ट्रिपल डिस्क रिफ्रेशर में पीसने के लिए छोड़ देते हैं। फिर 90 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर आधे घंटे के लिए गर्म कर सात घंटे तक ठंडा करते हैं।
इसे कार्बोक्सी मिथाइल सेलुलोज (सीएमसी) कहते हैं। 20 प्रतिशत इस सीएमसी में चूना, टेलकम पाउडर, विभिन्न प्लांट से निकलने वाले रेजिन और टाइटेनियम डाइ ऑक्साइड को मिलाते हैं। इसमें रेजिन की जगह अलसी का तेल मिलाया जाता है ताकि प्राकृतिक गुणवत्ता बनी रहे।
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