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    कुल देवता को खुश रखने को मांगते भीख

    By Edited By:
    Updated: Mon, 23 Feb 2015 05:50 PM (IST)

    दिलीप सिंह, अमेठी :चांद व मंगल की दूरी चुकने के बाद लोग जहां अंतरिक्ष में घर बनाने की कवायद में जुटे

    दिलीप सिंह, अमेठी :चांद व मंगल की दूरी चुकने के बाद लोग जहां अंतरिक्ष में घर बनाने की कवायद में जुटे हैं वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है जो आस्था, विश्वास और मान्यताओं की अनादि काल से चली आ रही परंपरा की डोर को मजबूती से पकड़े हुए है। अंगूठा टेक गरीब लोग आज भी दूसरों के दरवाजे दरवाजे पर जाकर भीख मांगते हुए दिखाई पड़ते हैं। यह भीख मांगने वालों की जाति बल्लहा के नाम से जानी जाती है। सरकार गरीबों के लिए तमाम प्रकार की योजनाएं चलाकर उनकी गरीबी को दूर करने का प्रयास कर रही है। फिर भी पता नहीं क्यों इन लोगों तक सरकार की योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। या ये लोग परंपरा को बनाए रखने के लिए गांव गांव भ्रमण कर भीख मांगते हैं। बात कुछ भी हो पर हकीकत यही है कि पीढ़ी दर पीढ़ी बल्लहा जाति के लोग भीख मांग कर अपना व अपने परिवार का गुजर बसर कर रहे हैं। वजह की पड़ताल में जब बल्लहा जाति के लोगों से संपर्क किया गया तो जो बातें सामने आई वह काफी चौकाने वाली थी। बल्लहा जाति के कुल देवता 'काले-गोरे' हैं। जिनकी पूजा बल्लहा जाति के लेाग बड़े धूम धाम से करते हैं। तहसील के हरमपुर गांव में बल्लहा जाति के 35 घर हैं। इनसे मिलकर जब इनके क्रियाकलाप व रहन सहन के बारे में जानने की कोशिश की गई तो बहुत कुछ चौकाने वाला तथ्य सामने आया। रमई ने बताया कि हम लोगों का जन्म इसी गांव में हुआ है। हमारे घर में गाय-भैंस भी हैं पर जो परंपरा हैं उसको निभाने के लिए हम भीख मांगते हैं अगर हमने भीख मांगना बंद कर दिया तो हमारे कुल देवता नाराज हो जाएंगे और हमारी जाति का विनाश हो जाएगा। विनाश से बचने के लिए ही हम गांव गांव गली गली घूमकर भीख मांगते हैं। अपोली ने कहाकि हम अपने साथ अपने बच्चों व जानवरों को भी लिए रहते हैं। गांव से चलने के बाद जहां तहां अपना डेरा जमा लेते हैं और जब तक उस क्षेत्र के सभी गांव में भीख नहीं मांग लेते तब तक डेरा वहीं जमा रहता है। हर दरवाजे पर पहुंचने के बाद डेरा नई मंजिल की तलाश में आगे बढ़ जाता है। यह प्रक्रिया पूरे आठ माह तक चलती रहती है और पुन: जब बरसात का मौसम निकट आ जाता है तो हम लेाग अपने गांव आ जाते हैं। बल्लहा जाति के लोग जिले में जामो के शर्मे, नारे, बकारगंज व तिलोई के कुछ गांवों में निवास करते हैं। आजादी के इतने दिनों के बाद भी इनकी जिंदगी गुलाम की तरह बीत रही है। लोग वोट लेने के लिए तो इनके डेरे में जरूर आते हैं पर इनकी सुविधाओं की ओर ध्यान नहीं देते। सरकार स्कूल चलो अभियान चलाकर क्षेत्र के बच्चों को शत प्रतिशत स्कूल पहुंचाने का दावा करती है। पर पता नहीं उनकी संख्या में इस जाति के बच्चे आते भी हैं कि नहीं। अगर समय रहते इन परंपराओं को न रोका गया तो आने वाले दिनों में इतिहास इन्हें भीख मांगने वालों के नाम से ही जानेगा।

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    ''हमें इस समुदाय के लोगों के बारे में फिलहाल जानकारी नहीं है। अगर उन तक विकास की योजनाएं नहीं पहुंच रही हैं तो यह गलत है। विभागीय अधिकारियों को खास तौर पर इस समुदाय पर ध्यान देने का आदेश दिया जाएगा। ''

    जगतराज

    डीएम, अमेठी।