मां की प्रेरणा से ईओ बनी डॉ. अनीता
औरैया जनपद की नगरपालिका में अधिशासी अधिकारी की कमान संभाल रही जलालपुर की अनीता ने मां की प्रेरणा से कठिनाइयों में सफलता हासिल की। ...और पढ़ें

अंबेडकरनगर : औरैया जनपद की नगरपालिका में अधिशासी अधिकारी की कमान संभाल रही जलालपुर तहसील के श्यामपुर दरियापुर गांव की बेटी डॉ. अनीता शुक्ला पर सबको नाज है। फर्श से अर्स पर पहुंची डॉ. अनीता के सफलता की डगर काफी मुश्किल रही। परिवार की जीविका चलाने के कठिन दौर में भी मां-बाप के त्याग को इस बेटी ने अपने परिश्रम से सफल बनाकर साबित कर दिया कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं हैं। शिक्षा के रास्ते सफलता की ओर होनहार बेटी के बढ़ते कदम गरीब पिता ने पहचान लिया। घर की जरूरतों और अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर बेटी को मुकाम हासिल करने में कोई रोड़ा नहीं बनने दिया। पिता के त्याग को याद कर डॉ. अनीता कहती हैं, मेरी कामयाबी का आधार पिता हैं।
-मुश्किल दौर से लिखी सफलता की कहानी : जलालपुर तहसील के नितांत ग्रामीण क्षेत्र श्यामपुर दरियापुर गांव की बेटी डॉ. अनिता ने विषम परिस्थितियों में मां रेनू शुक्ला की प्रेरणा को गांठ बांध लिया। पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हौसला था कुछ हासिल करने का। पिता अवधेश कुमार शुक्ल परिवार की जीविका चलाने के लिए दूध का बांटते थे। इससे जीवन बड़ी ही मुश्किल से बसर होता था। इसी बीच अवधेश ने मालीपुर में छोटी सी मिठाई की दुकान खोल दिया।
सफलताएं बढ़ाती रहीं हौसला : प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से पूरी करने के बाद लगातार शिक्षा में अच्छे अंकों से मिलती गई सफलताओं ने डॉ. अनीता के हौसले बुलंद कर दिए। यहां आकर मोती लाल विद्या मंदिर इंटर कालेज से जूनियर,इंटर की शिक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री व डॉक्टरेट उपाधि हासिल की। इसके साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी जारी रखी। प्रथम प्रयास में ही लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 2014 में सफलता प्राप्त करके 2015 में नगर पालिका में अधिशाषी अधिकारी के पद पर तैनात हो गईं। डॉ. अनीता कहती हैं, इस मुकाम को पाने में पिता के त्याग और मां की प्रेरणा ने आत्मबल को मजबूत बनाया। अभिभावकों को ऐसे ही अपने बच्चों पर भरोसा करके उनकी प्रतिभा को मुकाम दिलाने में मददगार बनना चाहिए। फतेहपुर के बाद डॉ. अनीता अब औरैया जिले में तैनात हैं।
घर से दूर पढ़ाई लगती थी असूझ : डॉ. अनीता उस समय को याद कर बताती हैं कि घर से दूर इलाहाबाद में अकेले रहकर पढ़ना असूझ लगता था। खास तौर पर जब लड़कियों के लिए। तब बेटियों को दूर भेजने से परिजन भी संकोच करते थे। लेकिन पिता ने किसी की नहीं सुनी और मेरे इच्छानुसार मुझे इलाहाबाद में दाखिला दिलाया। पढ़ाई के लिए गांव से इलाहाबाद तक का सफर किया। इसी बीच पिता की बीमारी के चलते मौत हो गई तो परिवार पर पहाड़ टूट पड़ा कितु मेरे भाई बबलू, आशु और मां ने मेरा हौसला नहीं टूटने दिया। डॉ. अनीता बोलीं कि काश पिता जीवित होते। कहा कि यह सफलता मेरा पड़ाव है। असली मुकाम उच्च प्रतियोगी परीक्षाओं के सहारे अभी आगे और उच्च पद तक पहुंचना है।

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