पटरी और स्टेशन है, रेलगाड़ी नहीं
अंबेडकरनगर : एक जिला एक उत्पाद में जिले को वस्त्र उद्योग में पहचान दिलाने वाली बुनकर नगरी
अंबेडकरनगर : एक जिला एक उत्पाद में जिले को वस्त्र उद्योग में पहचान दिलाने वाली बुनकर नगरी टांडा यातायात को लेकर पंगु बनी है। फिलहाल बुनकर नगरी को जलमार्ग से जोड़ने की कवायद तेजी से आगे बढ़ी है, लेकिन रेल और सड़क यातायात से महरूम है। खास बता है कि रेलवे लाइन होने के को रेल लाइन की सुविधा मिल गयी थी। अकबरपुर-टांडा रेल खंड पर मालगाड़ी का संचालन होने के साथ ही टांडा में रेलवे स्टेशन भी बना है। लेकिन यात्री गाड़ियों का संचालन नहीं किया जा रहा है। यहां के डोरिया जामदानी ने इंग्लैंड तक अपनी धमक बनाई थी। नगर से अच्छा कारोबार होता था। इसे देखते हुए कस्टम कार्यालय स्थापित रहा। किसी कारोबार की परिवहन सुविधा रीढ़ मानी जाती है। वस्त्र कारोबार को ²ष्टिगत रखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने लखनऊ-वाराणसी रेल खंड पर स्थित अकबरपुर से टांडा तक रेल लाइन का निर्माण करके औद्योगिक नगर को अकबरपुर से जोड़ कर परिवहन सुविधा उपलब्ध करा दी गई थी। अकबरपुर-टांडा के बीच सुबह शाम दो बार रेल गाड़ी की आवाजाही रही। यात्रियों को लेकर तो रेल गाड़ी आती-जाती रहीं। इसी रेल गाड़ी से माल की ढुलाई भी होती रही। यह क्रम सातवें दशक तक जारी रहा। अकबरपुर से होकर गुजरने वाली मेल यात्री गाड़ियों सियालदह में दो टिकटों के आरक्षण की मिल रही सुविधा भी खत्म हो गयी।
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-चुनावी मुद्दा बनकर रह गईं उम्मीदें-
टांडा : वस्त्र उद्योग का समय बीतने के साथ काफी विस्तार हो गया। हजारों पॉवरलूमों पर लाखों मीटर कपड़े बुने जा रहे। 30-40 टन धागों की प्रतिदिन खपत होने के साथ ही यहां से देश के अन्य प्रांतों को वस्त्रों की आपूर्ति हो रही है। वस्त्र उद्योग के नगर को लखनऊ-वाराणसी मुख्य रेलखंड से जोड़े जाने की मांग चुनाव के दौरान उठती रही। रेल राज्य मंत्री रहे महावीर प्रसाद एक चुनाव के दौरान नगर को मुख्य रेल लाइन से जोड़ने की मांग को समर्थन भी कर गए। लोकसभा चुनाव के दौरान नगर को मुख्य रेल लाइन से जोड़ने का मुद्दा गर्म रहता है। विकास के तमाम दावों के बीच बुनकरों और नागरिकों को अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिला है।
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