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    डॉ. पूनम ने मेहनत से पाई बड़ी सफलता

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 19 Oct 2020 10:42 PM (IST)

    बुलंदियों की ओर बढ़ते डॉ पूनम के कदमों को इंजीनियर भाई बलराम का सहारा पाकर मेहनत से बड़ी सफलता हासिल कर ली। ...और पढ़ें

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    डॉ. पूनम ने मेहनत से पाई बड़ी सफलता

    अंबेडकरनगर: बुलंदियों की ओर बढ़ते डॉ पूनम के कदमों को इंजीनियर भाई बलराम का सहारा मिला तो कामयाबी पाने की हसरत चौगुना हो गई। इसके बाद डॉ. पूनम सफलता की सीढि़यों को आसानी से चढ़ती गईं। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति रोड़ा बनी तो लक्ष्य पाने की उम्मीद को ननिहाल ने रोशन कर दिया। बचपन से ही होनहार पूनम के लक्ष्य को मां सरस्वती निखारती गईं। शिक्षा में गांव की सबसे अव्वल बेटी साबित होकर वर्ष 2006 में शिक्षामित्र बनीं। इसके बाद प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका बन गईं, और अब उच्चतर शिक्षा आयोग से असिस्टेंट प्रोफेसर चयनित हो गई हैं। हालांकि इनका लक्ष्य सिविल सेवा में अफसर बनना है।

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    होनहार के रास्ते को ननिहाल ने किया रोशन : अकबरपुर तहसील के गांव शुकलहिया निवासी अधिवक्ता रमेश शुक्ला की दो संतानों में बिटिया पूनम बड़ी और भाई बलराम छोटा है। गृहणी मां विनीता शुक्ला का छोटा सा कुनबा है। आर्थिक स्त्रोत खास नहीं होने से जीविका की गाड़ी ही बड़ी मुश्किल से चलती रही। ऐसे में होनहार पूनम की पढ़ाई की चिता मां-बाप को खाए जाती रही। इस बीच जैसे तैसे गांव के ही प्राइमरी स्कूल से प्राथमिक तथा अशरफपुर बरवां स्थित जूनियर हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी की। गांव के ही बगल झिनका देवी बालिका इंटर कॉलेज से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। अब आगे की उच्च शिक्षा पाने के लिए अभाव अंधेरा बनकर खड़ा हो गया। बच्चों की मेधा से पैतृक गांव शुक्लहिया संग ननिहाल भी परिचित हो चुका था। मध्य प्रदेश में पीसीएस अधिकारी मामा रामाश्रय पांडेय ने पूनम के साथ उसके भाई बलराम को अफसर बनने की राह बताई तो अनपढ़ नानी रामसखी पांडेय तथा बड़ी बहन मोनिका पांडेय ने इन्हें अपने आंचल में समेट उच्च शिक्षा का खर्च उठा लिया। इससे परास्नातक तक की पढ़ाई सुगमता से पूरी हो गई। इसी बीच छोटे भाई बलराम शुक्ला ने इंजीनियरिग की पढ़ाई पूरी कर नौकरी हासिल कर ली। इससे अभाव का अंधेरा दूर होने लगा।

    छोटे भाई ने चुन लिए अभाव के कांटे : ननिहाल से उच्च शिक्षा हासिल करने के दौरान छोटे भाई बलराम की नौकरी लग गई। इसके बाद पूनम को मानो जहान मिल गया। परिवार के लिए यह सफलता उत्सव जैसा रहा। फिलहाल पूनम को अभी असली लक्ष्य साधना बाकी रहा। इसमें अभाव के कांटे को छोटा भाई चुनने लगा। भाई ने आर्थिक रोड़े दूर किए तो पूनम का हौसला बढ़ा और उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। काबिलियत के बल पर पूनम ने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) में भी सफलता प्राप्त कर ली।

    बढ़ते गए कदम, मिलती गई सफलता : उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद डॉ. पूनम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बस कदम आगे बढ़ाते रहीं। सबसे पहले गांव की सबसे होनहार बेटी बनकर प्राथमिक विद्यालय में शिक्षामित्र के पद पर वर्ष 2006 में तैनात हुईं। लगातार 12 वर्षों तक शिक्षामित्र रहीं। उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अवसर आया तो पात्रता व चयन परीक्षा पास कर बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापिका बन गईं। दो वर्ष के अंतराल में वह वहीं नहीं ठहरी, और अगले पड़ाव की ओर बढ़ती गईं। आखिरकार तीसरी सफलता के रूप में डॉ. पूनम उच्चतर शिक्षा आयोग की परीक्षा पास कर असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित हो गईं। गौरव की बात है कि जिले की इस बेटी ने इस परीक्षा में प्रदेश में संयुक्त रूप से दूसरा तथा महिला वर्ग में यूपी टॉप किया। फिलहाल वह कटेहरी ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय टीकमपारा में सहायक अध्यापिका हैं। आगे नए चयन पर तैनाती मिलने का इंतजार है।

    बहू बनकर आई पूनम को ससुराल में मिला बेटी जैसा प्यार : प्राइमरी में शिक्षिका बनने के बाद डॉक्टर पूनम का विवाह कटेहरी ब्लाक के तिवारीपुर गांव में प्रेमनाथ मिश्र के पुत्र अमित मिश्र से वर्ष 2019 में हुआ। ससुर प्रेमनाथ, कन्हैया मिश्र, दीनानाथ मिश्र तथा सास प्रेमा देवी पूनम पर बेटी जैसा प्यार लुटाने लगे तो कामयाबी की राहें और आसान हो गईं। डॉ. पूनम बताती हैं कि मुझे सास ससुर के रूप में मां-बाप मिल गए। इन्होंने आगे का लक्ष्य पीसीएस परीक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित करने का रास्ता दिखाया। इसमें पति अमित का खूब सहयोग है। अभी तक मैं दो बार पीसीएस मेंस तथा इंटरव्यू तक पहुंच चुकी हूं। अभी हाल में ही एक बेटे की मां बनी डॉ. पूनम कहती हैं कि लक्ष्य दूर है लेकिन नामुमकिन नहीं।