World Music Day : प्रयाग संगीत समिति की नींव रखने में पत्नी के बेच दिए थे गहने Prayagraj News
World Music Day प्रयाग संगीत समिति की शुरुआत साउथ मलाका से हुई थी। अब देश-विदेश में इसकी 2200 शाखाएं हैं। राष्ट्रीय कलाकारों ने यहां प्रस्तुति दी है।
प्रयागराज, जेएनएन। आज विश्व संगीत दिवस है। यहां भी संगीत की शिक्षा देने के लिए कई संस्थान हैं। आज हम आपको ले चलते हैं प्रयाग संगीत समिति। अखिल भारतीय संस्था प्रयाग संगीत समिति शास्त्रीय संगीत सिखाने का संस्थान तो है ही। इसने गायन, वादन और नृत्य के राष्ट्रीय कलाकारों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित भी किया है। कोरोना वायरस के संक्रमण काल की वजह से विश्व संगीत दिवस के अवसर पर आज प्रयाग संगीत समिति से इस बार गीत संगीत की मधुर ध्वनि नहीं गूंज पाएगी।
प्रयाग संगीत समिति की देश-विदेश में करीब 2200 शाखाएं हैं
देश-विदेश में करीब 2200 शाखाएं फैला चुकी प्रयाग संगीत समिति का पौधा लगाने और इसे सींचने के प्रति संस्थापक सदस्य अधिवक्ता बाबू बैजनाथ सहाय की दीवानगी हद भी पार कर गई थी। साउथ मलाका में इसकी नींव रखने के लिए उन्होंने जीवन भर की कमाई का एक बड़ा हिस्सा लगा दिया था। और धन की जरूरत पड़ी तो पत्नी को बताए बिना उनके गहने तक बेच दिए थे।
प्रख्यात कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति यहां दी है
1926 में शिवरात्रि के दिन साउथ मलाका में स्थापित हुए इस संस्थान ने अपनी प्रसिद्धि की गूंज भारत ही नहीं, दुबई और लंदन तक को सुनाई है। यही वजह भी है कि सितार वादक अली अकबर खां, पं. रविशंकर, शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां, गजल सम्राट जगजीत सिंह, तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन, सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां, गिरजा देवी, पं. बिरजू महाराज, बालीवुड अभिनेत्री व सांसद हेमा मालिनी सहित अन्य कलाकार भी प्रयाग संगीत समिति में अपनी प्रस्तुति देने आ चुके हैं।
बाबू बैजनाथ सहाय, मुंशी कन्हैयालाल, मेजर रंजीत सिंह का अथक प्रयास था
प्रयाग संगीत समिति के सचिव अरुण कुमार कहते हैं कि प्रयाग संगीत समिति की शुरुआत साउथ मलाका स्थित भवन से हुई थी। बाबू बैजनाथ सहाय, मुंशी कन्हैयालाल, मेजर रंजीत सिंह ने इसके लिए अथक प्रयास किया। संगीत समिति के शुरुआती कदम चार छात्रों दयालचंद्र जैन, आनंद टंडन, बनवारी लाल और मिशल बनर्जी के साथ पड़े थे। बनवारी लाल बाद में समिति के रजिस्ट्रार भी बने थे। दक्षिण भारत से आए शास्त्रीय संगीत के विशेषज्ञ विष्णु दिगंबर ने अपने शिष्य वी. शांताराम कसालकर को बतौर शिक्षक प्रयागराज भेजकर यहां शास्त्रीय संगीत की शिक्षा शुरू कराई थी।