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    छद्म वेश में प्रयाग पहुंचे थे छत्रपति शिवाजी महाराज

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 19 Feb 2018 11:41 PM (IST)

    जासं, इलाहाबाद: छत्रपति शिवा जी महाराज की जयंती सोमवार को पूरे देश में मनायी गई। वहीं इलाहाबाद म

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    छद्म वेश में प्रयाग पहुंचे थे छत्रपति शिवाजी महाराज

    जासं, इलाहाबाद: छत्रपति शिवा जी महाराज की जयंती सोमवार को पूरे देश में मनायी गई। वहीं इलाहाबाद में उनकी याद में एक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया, जबकि छत्रपति शिवाजी महाराज 1666 में प्रयाग आए थे। मुगल शासकों के खिलाफ यहां के राजे-रजवाड़ों से मुलाकात कर रणनीत बनायी थी।

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    छत्रपति शिवाजी महाराज आगरा से मुगल शासकों के चंगुल से भागते हुए मथुरा पहुंचे थे। यहां भस्म लगा साधू का रूप धारण किया। यहां से छद्म वेश में इलाहाबाद पहुंचे। ''प्रयाग प्रदीप'' में इस बात का जिक्र है कि छत्रपति शिवाजी महाराज दारागंज में एक पंडे के यहां काफी दिन तक ठहरे थे। छत्रपति शिवा जी महाराज का बेटा शंभू उस समय बालक था। छत्रपति शिवाजी उसे जाते समय पंडे के यहां ही छोड़ महाराष्ट्र वापस चले गए थे, आज भी दारागंज में महाराष्ट्र प्रांत के लोग काफी संख्या में रहते हैं। पंडे का काम भी करते हैं। यहां होलकर बाड़ा, भोसले बाड़ा नामों के स्थान भी विद्यमान हैं, जहां बड़ी तादाद में मराठी रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि दारागंज के संकट मोचन मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति छत्रपति शिवा जी महाराज के प्रतापी गुरु समर्थ रामदास द्वारा स्थापित है। इस मंदिर के अगल-बगल के भवनों में अभी भी मराठा शिल्प की छाप दिखायी देती है। पंडित देवीदत्त शुक्ल-पं. रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान के सचिव व्रतशील कहते हैं कि कुंभ के परिप्रेक्ष्य में जिस तरह बढ़-चढ़कर तैयारी हो रही है, उसमें छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े स्थलों को भी सजाना-संवारना चाहिए। इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए, ताकि महाराष्ट्र से आने वाले पर्यटकों को महान योद्धा शिवाजी के इलाहाबाद प्रवास के बारे में मालुम चल सके। यहां ऐसे बहुत से स्थान हैं, जिनका गौरवशाली इतिहास है। जिसका ठीक से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। पर्यटकों को कुछ नया देखने को मिले। छत्रपति महाराज जी की जयंती पूरे देश में मनायी जा रही है। वहीं प्रयाग में उन्हें याद न किया जाना, दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस शहर में इतनी बड़ी तादाद में मराठी रहते हैं, उस शहर के लिए इससे बढ़कर दुर्भाग्यपूर्ण कुछ और नहीं।