आज गंगा, यमुना के संगम में त्रिजटा स्नान से पूरे होंगे कल्पवास के फल, ज्योतिर्विद बताते हैं इसका महत्व
माघी पूर्णिमा का स्नान करके अधिकतर लोग लौट गए हैं। जो बचे हैं वह शुक्रवार को संगम में त्रिजटा स्नान करने के बाद संत मठ-मंदिर व कल्पवासी घरों को लौट जाएंगे। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र व सुकर्मा योग लगने से त्रिजटा स्नान पर्व का महत्व बढ़ गया है।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। फाल्गुन कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि पर शुक्रवार को प्रयागराज में त्रिजटा का स्नान हो रहा है। इसे लेकर तीर्थराज प्रयाग की धरा श्रद्धालुओं से गुलजार हो गई है। संगम समेत गंगा के विभिन्न घाटों पर स्नान-दान के लिए विभिन्न क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु स्नान-दान करने के लिए आए हैं। जो संत व कल्पवासी माघ मेला क्षेत्र में रुके थे, वह संगम व गंगा में त्रिजटा स्नान करके लौटेंगे। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र व सुकर्मा योग लगने से त्रिजटा स्नान पर्व का महत्व बढ़ गया है।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र से सुकर्मा योग लगने से त्रिजटा स्नान का महत्व बढ़ा
प्रयागराज में गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी का तट संयम, समर्पण, सेवा व संस्कार का केंद्र है। संगम की रेती पर बसी तंबुओं की नगरी में महीने भर हजारों संत व गृहस्थों ने भजन, पूजन, अनुष्ठान में लीन रहे। माघी पूर्णिमा का स्नान करके अधिकतर लोग लौट गए हैं। जो बचे हैं, वह शुक्रवार को संगम में त्रिजटा स्नान करेंगे। त्रिजटा स्नान करने के बाद संत मठ-मंदिर व कल्पवासी घरों को लौट जाएंगे। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र व सुकर्मा योग लगने से त्रिजटा स्नान पर्व का महत्व बढ़ गया है। धार्मिक मान्यता है कि त्रिजटा स्नान करने पर ही कल्पवास का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
माघी पूर्णिमा के बाद बचे कल्पवासी आज होंगे रवाना
यूं तो प्रयागराज में संगम तट पर महाशिवरात्रि तक माघ मेला चलता है, लेकिन कल्पवास का विधान पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक माना जाता है। यही कारण है कि अधिकतर संत व कल्पवासी माघी पूर्णिमा का स्नान करके लौट गए हैं। जो रुके हैं शुक्रवार को स्नान करके लौटेंगे।
माघी पूर्णिमा के तीसरे दिन द्वितीया तिथि होती है
माघी पूर्णिमा के तीसरे दिन फाल्गुन कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि पड़ती है। जो संत व कल्पवासी माघी पूर्णिमा पर मेला क्षेत्र नहीं छोड़ते वो त्रिजटा का स्नान करके गंतव्य को जाते हैं।
ज्योतिर्विद से जानें कि क्या है त्रिजटा स्नान
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि पूर्णिमा के बाद प्रतिप्रदा तिथि पड़ती है। प्रतिप्रदा में यात्रा नहीं होती। इसी कारण लोग द्वितीया तिथि पर स्नान करके लौटते हैं। पूर्णिमा के तीसरे दिन द्वितीया पडऩे के कारण इसे त्रिजटा कहते हैं।
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