बच्चों को ही नहीं, साड़ियों को भी बुरी नजर से बचाते हैं काले टीके, बारीकी से देखें तो नजर आएगा यह टोटका
चंदेरी साड़ियों कोसा की साड़ी बाग प्रिंट वाली साड़ी रानी अहिल्याबाई राज घराने की महेश्वरी साड़ी के प्रत्येक मीटर पर किनारे कारीगर काले टीके लगाते हैं। सामान्य रूप से ये नजर नहीं आते हैं लेकिन बारीकी से देखने पर यह काला टीके जरूर दिख जाएंगे।

प्रयागराज, [अमलेंदु त्रिपाठी]। छोटे बच्चों को नजर जल्द लगती है। उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए दादी, नानी व मां उन्हें काला टीका लगाती हैं। वैसी ही नजर साड़ियों को भी लगती है। क्या... चौंक गए न आप? लेकिन यह सच है। साड़ियों को नजर से बचाने के लिए कारीगर काला टीका भी लगाते हैं। काला टीका साडि़याें पर कहां लगाया जाता है, इसे कैसे आप देख सकते हैं, आइए इस समाचार के माध्यम से जानते हैं।
किन साडि़याें के प्रत्येक मीटर पर लगाते हैं काला टीका : चंदेरी साड़ियों, कोसा की साड़ी, बाग प्रिंट वाली साड़ी, रानी अहिल्याबाई राज घराने की महेश्वरी साड़ी पर कारीगर प्रत्येक मीटर पर काले टीके लगाते हैं। सामान्य रूप से ये नजर नहीं आते हैं लेकिन साड़ियों के किनारे पर प्राय: इन्हें लगाया जाता है। बारीकी से देखने पर यह काला टीका जरूर दिख जाएंगे।
काला टीका लगाना कारीगरों की परंपरा में शामिल है : प्रयागराज के हिंदुस्तानी एकेडेमी में इन दिनों मध्य प्रदेश हस्तशिल्प हथकरघा कुटीर एवं ग्रामोद्योग (मृगनयनी) की प्रदर्शनी चल रही है। इसमें ख्यातिलब्ध कारीगर अपने कपड़ा, खिलौने, सजावटी सामानों का प्रदर्शन कर रहे हैं। कारीगर लालाराम बताते हैं कि वह चंदेरी साड़ियों व महेश्वरी साड़ियों पर कढ़ाई, बुनाई व छपाई का काम करते हैं। आम तौर पर सभी खूबसूरत कीमती साड़ियों पर काले टीके लगाने का टोटका किया जाता है। ऐसा वह अकेले नहीं करते बल्कि सभी करीगरों की परंपरा में शामिल है। खास बात यह है कि काले टीके फैलते नहीं हैं। इन्हें पूरी सावधानी के साथ लगाया जाता है।
साड़ियों पर सांची के स्तूप और खजुराहो के मंदिर: मृगनयनी प्रदर्शनी के साथ आए रीजनल मैनेजर एमएल शर्मा ने बताया कि कोरोना काल में जब सब कुछ बंद था। उस समय तमाम कला साधक कल्पना की उड़ान भरकर अलग-अलग प्रयोग कर रहे थे। कोई छापा वाली चित्रकारी में लगा था तो कोई कढ़ाई, बुनाई, शिल्प, जरी व हथकरघा के क्षेत्र में नए रंग भर था। इन सब का अनूठा संगम मृगनैनी प्रदर्शनी में आए उत्पादों में देखा जा सकता है। चंदेरी व अन्य सिल्क की साड़ियों पर सांची का स्तूप, खजुराहो के मंदिर, देवी अहिल्याबाई होल्कर नगर महेश्वर की पारंपरिक कला और प्रतीकों को उकेरा गया। इसे अब लोग पसंद कर रहे हैं। सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय फलक पर जन सामान्य तक विस्तारित करने में भी मदद मिल रही है।
सोने के तार वाली 129000 हजार की लखटकिया साड़ी भी खास : प्रदर्शनी में सोने के तार वाली लखटकिया साड़ी भी आकर्षण का केंद्र है। बुनकर घासीराम ने बताया कि इसकी कीमत 129000 हजार रुपये है। इसे तैयार करने में 110 दिन लगे। सोने के तारों से मोर पंख की डिजाइन बनाई गई है। पहले राजघरानों के लोग इस तरह की साड़ी के खरीदार होते थे। उनके आर्डर के अनुसार साड़ी पर डिजाइन भी बनाया जाता था। अब अन्य लोग भी इस साड़ी को पसंद कर रहे हैं। इसमें माचिस की तीलियों के साथ जरी को बांधने का काम किया जाता है। साड़ी पर मेहंदी भर हाथ, जुगनू बूटी, राई बूटी, दो चश्मी आदि के डिजाइन भी बनाए जाते हैं।
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