दो सियासी दिग्गजों के गठबंधन ने प्रतापगढ़ जिले में लिखी राजनीति की नई इबारत
57 सदस्यीय जिला पंचायत में 12 जनसत्ता दल लोकतांत्रिक समर्थित जीते हैं जबकि कांग्रेस के पांच। वैसे प्रमोद का दावा है कि कांग्रेस समेत 12 सदस्य साथ हैैं। बहरहाल नए गठबंधन ने समाजवादी पार्टी और भाजपा के दिग्गज नेताओं के हर पैंतरे को पटकनी दे दी है।
प्रयागराज, जेएनएन। कहते हैैं राजनीति में कोई हमेशा शत्रु नहीं होता। राजा रजवाड़े के लिए ख्यात यूपी के प्रतापगढ़ जिले में दो सियासी धुरंधरों का गठबंधन इसी धारणा को पुष्ट करती है। कांग्रेस कार्यसमिति के विशेष सदस्य, पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) की जिला पंचायत चुनाव में हुई नजदीकी ने समीकरण ही बदल दिया है।
इन दोनों धुरंधरों के इर्दगिर्द घूमती है प्रतापगढ़ की सियासत
जिले की सियासत प्रमोद तिवारी और रघुराज प्रताप सिंह के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। प्रमोद तिवारी वर्ष 1980 से रामपुर खास विधानसभा क्षेत्र में अजेय हैं, वहीं रघुराज प्रताप सिंह कुंडा में वर्ष 1993 से। पहली बार इनकी टकराहट रामपुर संग्रामगढ़ ब्लाक प्रमुख चुनाव में हुई थी और दूसरी बार वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में। उस चुनाव में रघुराज जेल में बंद थे और सपा प्रत्याशी के रूप में अक्षय प्रताप सिंह गोपालजी चुनाव लड़ रहे थे।
प्रमोद तिवारी और रघुराज विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों के समर्थन में एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार करते थे, लेकिन कभी आमना-सामना नहीं हुआ। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में लोग तब चौंके थे जब केपी कालेज मैदान में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की जनसभा में दोनों उनके मंच पर दिखे थे। दोनों में गुफ्तगू भी हुई थी। जानकारों का दावा है कि इसके बाद दोनों नेताओं में करीबी बढ़ी। उसका फलित कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी की तरफ से रघुराज की पार्टी समर्थित जिपं अध्यक्ष प्रत्याशी माधुरी पटेल को समर्थन के रूप में सामने आया है। इससे चुनावी समीकरण ही पूरी तरह बदल गया है।
आगामी विधानसभा चुनाव में रंग दिखाएगी यह जुगलबंदी
57 सदस्यीय जिला पंचायत में 12 जनसत्ता दल लोकतांत्रिक समर्थित जीते हैं, जबकि कांग्रेस के पांच। वैसे प्रमोद का दावा है कि कांग्रेस समेत 12 सदस्य साथ हैैं। बहरहाल नए गठबंधन ने समाजवादी पार्टी और भाजपा के दिग्गज नेताओं के हर पैंतरे को पटकनी दे दी है। जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह तो तीन जुलाई को साफ होगा। अभी नई सियासी इबारत लिख दी गई है। जाहिर है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी यह रंग दिखाएगी।