Akbar Allahabadi Birth Anniversary: अकबर इलाहाबादी की वो एक गजल जो फिल्म में बोली गई और आज भी है चर्चित
चर्चित शायर अकबर इलाहाबादी को रचनाकार आज भी सिर माथे पर बिठाते हैं। इसकी वजह भी है। अकबर इलाहाबादी ने व्यंगात्मक शैली में समाज के तमाम अनछुए पहलुओं पर जिस तरह से कविताएं गजलें नज्म और रुबाई गढ़ी उसका देश दुनिया भर के रचनाकारों ने लोहा माना।

जन्मतिथि पर विशेष
-लिखते थे व्यंगात्मक शैली में जो था समाज हित के लिये
-यादगार ए- हुसैनी इंटर कालेज लहरा रहा अकबर के नाम का परचम
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है- डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है"। इस गजल को लिखने वाले चर्चित शायर अकबर इलाहाबादी को रचनाकार आज भी सिर माथे पर बिठाते हैं। इसकी वजह भी है। अकबर इलाहाबादी ने व्यंगात्मक शैली में समाज के तमाम अनछुए पहलुओं पर जिस तरह से कविताएं, गजलें, नज्म और रुबाई गढ़ी उसका देश दुनिया भर के रचनाकारों ने लोहा माना। उनके नाम का परचम शहर का यादगार-ए-हुसैनी इंटर कालेज आज भी लहरा रहा है।
जन्मे थे बारा खास गांव में, फिर परिवार गया पाकिस्तान
बारा खास गांव में तफज्जुल हुसैन की संतान रूप में 16 नवंबर 1846 को जन्में सैयद अकबर हुसैन रिजवी कालांतर में अकबर इलाहाबादी कहलाये। उनका लेखन एक ऐसा विद्रोही स्वभाव में था जो जिसमें समाज हित झलकता था। नवगीतकार यश मालवीय कहते हैं कि अकबर इलाहाबादी ने हिंदू-मुस्लिम एकता की साझा संस्कृति की पैरोकारी जमकर की थी। कहा कि वह ऐसे शायर थे जैसे हिंदी कविताओं में सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"। अकबर इलाहाबादी ने इलाहाबाद (प्रयागराज) की पूरी विरासत को जिया। उनके लिए हिंदू और मुसलमान एक ही परिवार के घनिष्ठ सदस्य जैसे थे।
यादगार-ए-हुसैनी इंटर कालेज के प्रबंधक गौहर काजमी कहते हैं कि अकबर इलाहाबादी का निधन नौ सितंबर 1921 को हुआ। उससे पहले उनका परिवार बारा तहसील से शहर आकर यहां घर बसा चुका था जहां अब यादगार-ए-हुसैनी इंटर कालेज है। हालांकि यह उन्हें पुख्ता मालूम नहीं कि अकबर इलाहाबादी इसमें रहे या नहीं। हालांकि उनके नाम को बनाए रखने के लिए कालेज परिसर में अकबर हाल 1992 में बनाया गया था, जो अब भी है। फिलहाल अकबर इलाहाबादी के वंशज अब प्रयागराज में नहीं हैं, सभी पाकिस्तान जा चुके हैं। बारा खास में भी अब उनके जन्म स्थान का स्वरूप काफी बदल चुका है।
प्रमुख रचनाएं
गजलें : हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
-आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
-आह जो दिल से निकाली जाएगी
-दुनिया में हूं, दुनिया का तलबगार नहीं हूं
नज्म
-सब जानते हैं इल्म से है जिंदगी की रूह
-जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
-नामा न कोई यार का पैगाम भेजिये, इस फस्ल में जो भेजिये बस आम भेजिये
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