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    प्रयागराज में माधव रूप में विराजमान हैं श्रीविष्णु, इनकी परिक्रमा है विशेष फलदाई, उनके 12 स्वरूप हैं यहां विद्यमान

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Thu, 11 Feb 2021 04:00 PM (IST)

    हिंदू मान्यता के अनुसार प्रयागराज में सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी ने यज्ञ किया था जबकि भगवान श्री विष्णु इस पावन नगरी के अधिष्ठाता हैं। वे यहां माधव स्वरूप में विराजमान हैं। उनके 12 स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। इन स्थलों की परिक्रमा विशेष फलदाई माना जाता है।

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    उनके यहां पर 12 स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें 'द्वादश माधव कहा जाता है।

    प्रयागराज, जेएनएन। हिंदू मान्यता के अनुसार प्रयागराज में सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी ने यज्ञ किया था जबकि भगवान श्री विष्णु इस पावन नगरी के अधिष्ठाता हैं। वे यहां माधव स्वरूप में विराजमान हैं। उनके यहां पर 12 स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें 'द्वादश माधव कहा जाता है। इन स्थलों की परिक्रमा व दर्शन-पूजन करना विशेष फलदाई माना जाता है। बारह दिनों की परिक्रमा इस बार माघ मास में तीन फरवरी को संपन्न हुई।
     
    मत्सय पुराण में मिलता है द्वादश माधव का वर्णन
    अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि द्वादश माधव का वर्णन कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों के साथ मत्सय पुराण में भी मिलता है। कहा कि सृष्टि की रचना के लिए भगवान श्री ब्रह्माजी ने यज्ञ के लिए त्रिकोणात्मक वेदी बनाई थी जिसे  अंतर्वेदी, मध्यवेदी व बर्हिवेदी के रूप में जाना जाता है। अंतर्वेदी में अरैल और मध्यवेदी में दारागंज, बर्हिवेदी में झूंसी का क्षेत्र आता है। प्रत्येक क्षेत्र में चार-चार माधव विराजमान हैं। मत्सय पुराण में यह लिखा गया है कि द्वादश माधव की परिक्रमा करने वाले को सारे तीर्थों और देवताओं के दर्शन करने के बराबर का पुण्य मिलता है।

    प्रयागराज में इन स्थानों पर वास करते हैं माधव  
    अंतर्वेदी के माधव में पहले दारागंज मुहल्ले में वेणी माधव के नाम से हैं। यह प्रयागराज के नगर देवता भी कहे जाते हैं। अक्षयवट माधव यमुना नदी के तट पर अकबर के किले में स्थित हैं। दारागंज में ही एक प्राचीन मंदिर में अनंत माधव हैं। नागवासुकि मंदिर के समीप असि माधव हैं। जानसेनगंज में मनोहर माधव और और राजापुर की तरफ गंगा के द्रोपदी घाट के पास बिंदु माधव दिव्य स्वरूप में विराजमान हैं।  
    मध्यवेदी के माधवों में संगम के मध्य क्षेत्र में जल रूप में आदि माधव वास करते हैं। अरैल में सोमेश्वर मंदिर के करीब चक्र माधव हैं। छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप प्राचीन श्रीगदा माधव मंदिर है। यमुनापार में घूरपुर से आगे भीटा मार्ग पर वीकर देवरिया ग्राम में पद्म माधव स्थित हैं। जबकि बहिर्वेदी के माधव में गंगा किनारे स्थित वटवृक्ष में संकटहर माधव वास करते हैं। झूंसी के ही छतनाग में मुंशी की बाग में शंख माधव हैं।

    संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने की थी द्वादश माधव की खोज
    धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने प्रयागराज में द्वादश माधव की स्थापना की थी। महर्षि भारद्वाज सहित अनेक ऋषि-मुनि इसकी परिक्रमा करते रहे हैं। देश को आजादी मिलने के बाद संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने द्वादश माधव की खोज की। जिसके बाद शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ ने धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी के साथ मिलकर 1961 में माघ मास में द्वादश माधव की परिक्रमा आरंभ कराई। संतों-भक्तों ने तीन दिन पदयात्रा करते हुए परिक्रमा पूरी की।
     
    द्वादश माधव की परिक्रमा में कई बार आए अवरोध
    मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में तीर्थराज के द्वादश माधव मंदिरों को काफी नुकसान पहुंचाया गया, जिससे परिक्रमा की परंपरा रुक गई थी। देश की आजादी के बाद परिक्रमा 1961 में शुरू हुई लेकिन सन् 1987 तक चलने के बाद बंद हो गई। परिक्रमा तीन साल तक बंद रही फिर सन् 1991 में स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने शुरू कराई थी। महंत नरेंद्र गिरि ने बताया कि इस बार द्वादश माधवों की 12 दिनों की परिक्रमा तीन फरवरी को पूरी कर ली गई। बड़ी संख्या में संतों और श्रद्धालुओं ने माधव की परिक्रमा कर पुण्य अर्जित किया।

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