चयन बोर्ड अध्यक्ष का इस्तीफा, अब नए आयोग का रास्ता साफ
अशासकीय महाविद्यालय और माध्यमिक कालेजों में शिक्षक चयन के लिए बनने वाले नए आयोग का रास्ता अब पूरी तरह से साफ हो गया है।
इलाहाबाद (जेएनएन)। प्रदेश भर के अशासकीय महाविद्यालय और माध्यमिक कालेजों में शिक्षक चयन के लिए बनने वाले नए आयोग का रास्ता अब पूरी तरह से साफ हो गया है। पिछले सप्ताह उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रभात मित्तल ने इस्तीफा दिया और गुरुवार को चयन बोर्ड अध्यक्ष हीरालाल गुप्ता ने शासन को त्यागपत्र सौंप दिया है। अब नए आयोग गठन की प्रक्रिया तेज होने के आसार हैं। उम्मीद है कि इसी माह नए आयोग का एलान हो जाएगा।
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प्रदेश की भाजपा सरकार की मंशा है कि आयोगों में चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव हो, हर कार्य पारदर्शी तरीके से किया जाए। साथ ही एक तरह की भर्तियां अलग-अलग होने के बजाए एक ही जगह से हों, इसीलिए अशासकीय कालेजों में प्राचार्य, प्रधानाचार्य, प्रवक्ता व स्नातक शिक्षक के चयन के लिए नया आयोग गठित होना है। इसके लिए पहले चरण में चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का विलय हो रहा है। निर्देश है कि नया आयोग बनने के तीन माह बाद उसको औपचारिक मंजूरी दिलाई जाएगी। प्रस्तावित आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को लेकर ड्राफ्ट कमेटी ने खाका खींचकर शासन को सौंप दिया है। नया आयोग गठित करने में शासन को सबसे बड़ी सहूलियत यह है कि भवन, संपत्ति, अधिकारी और कर्मचारी सरकार को अलग से तैनात नहीं करना होगा, बल्कि दोनों आयोगों के एकीकरण से यह जरूरतें पूरी हो जाएंगी, केवल अध्यक्ष व 12 सदस्यों की तैनाती ही सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि ड्राफ्ट में अध्यक्ष व सदस्यों की अर्हता में बड़े बदलाव हुए हैं। इसके लिए योग्य लोगों को खोजना सरकार के लिए अहम कार्य होगा। वहीं, दोनों आयोगों के लंबित कार्यों को निकट भविष्य में पूरा कराना कठिन कार्य होगा।
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इस्तीफे से टल सकता आयोग गठन
सूबे की नई सरकार की मंशा रही है कि आयोगों के अध्यक्ष राजनीतिक शिष्टाचार के तहत पद छोड़ दें, इलाहाबाद के दोनों आयोग इसके लिए सहमत नहीं थे। ऐसे में नए आयोग गठन का दांव चला गया। इसमें सरकार की ओर से कोई बयान अब तक नहीं आया है, शासन जरूर पहल कर चुका है। अब दोनों अध्यक्षों ने इस्तीफा दे दिया है, उनके हटते ही सदस्य भी स्वत: बाहर हो गए हैं। ऐसे में सरकार पुराने आयोगों में नये अध्यक्ष व सदस्य तैनात करके कार्य आगे बढ़ा सकती है। यह विकल्प भी सरकार के पास खुला है, ठीक उसी तरह जैसे अधीनस्थ चयन आयोग का पुनर्गठन हो रहा है।