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    Shree Roop Gaudiya Math: श्रीकृष्ण के भक्तों को वृंदावन की याद दिलाता है प्रयागराज का यह मठ

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Sat, 06 Mar 2021 07:51 AM (IST)

    Shree Roop Gaudiya Math इस मठ और मंदिर के निर्माण के पीछे श्रीराधा-कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु के प्रेम और शिक्षाओं को समाज में लोगों के बीच फैलाना मुख्य उद्देश्य है। चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए यहां पर चैतन्य पद्मपीठ की स्थापना भी की गई है।

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    श्रीरूप गौड़ीय मठ 90 साल से भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को फैला रहा है।

    प्रयागराज, जेएनएन। श्रीरूप गौड़ीय मठ का प्रयागराज में पुराना इतिहास है। यह मठ पिछले 90 साल से भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को फैलाने का काम कर रहा है। यहां पर शहर ही नहीं दूसरे प्रदेशों से भी भक्तों का आनाजाना वर्ष भर लगा रहता है। माघ मेला और कुंभ के दौरान भक्तों की संख्या काफी होती है। यहां श्रीराधा-कृष्ण के साथ चैतन्य महाप्रभु व अन्य देवी-देवों की मूर्तियां विराजमान हैं।    

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    श्रील रूपा गोस्वामी की स्मृति में 1930 में हुई थी स्थापना

    सिविल लाइंस से संगम की ओर जाने वाले महात्मा गांधी मार्ग पर मधवापुर मुहल्ले में श्रीरूप गौड़ीय मठ स्थित है। वर्तमान में मठ के प्रमुख संत श्रीमद भक्ति आचार्य अवधूत जी महाराज का कहना है कि श्रीरूप गौड़ीय मठ की स्थापना सन् 1930 में श्रील रूपा जी गोस्वामी की स्मृति में श्रील बीएस सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद ने कराई थी। इसके पहले साउथ मलाका में किराए के एक मकान से मठ का संचालन होता था। बाद में मधवापुर में जीटी रोड के किनारे जमीन क्रय की गई।

    श्रीकृष्ण के भक्त गणेश चंद्र देव के प्रयास से मिली जमीन

    मधवापुर में जहां पर वर्तमान में मठ है। वह जमीन बाइका बाग में रहने वाले श्रीराधा-कृष्ण के अनन्य भक्त गणेश चंद्र देव के प्रयासों से मिली थी। उन्होंने प्रयास करके धन जुटाया जिससे यहां पर जमीन क्रय की जा सकी थी। अवधूत महराज के मुताबिक जमीन मिलने के बाद श्रील प्रभुपाद ने 30 अक्टूबर 1929 में इस मठ की नींव रखी जिसके एक साल बाद 1930 में श्रील प्रभुपाद ने श्रील रूपा गोस्वामी की स्मृति में यहां पर श्रीराधा-गोविंद का एक सुंदर मंदिर बनवाया था फिर अन्य निर्माण भी हुए थे।

    कृष्णभक्त चैतन्य महाप्रभु, शिव-पार्वती की प्रतिमा है आकर्षक

    इस मठ के भीतर बने श्रीराधा-कृष्ण मंदिर के समीप ही कृष्णभक्त चैतन्य महाप्रभु, शिव-पार्वती की प्रतिमा भी विराजमान है। यहीं पर श्रील रूपा गोस्वामी की मूर्ति भी है जिनके दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर का परिसर हरियाली से भरपूर है, जिससे वृंदावन सा आभास होता है। वर्ष 2000 में ओम विष्णुपद परमहंस श्रील भक्ति सुह्द परिब्राजक महाराज ने मठ का जीर्णोद्धार कराया था।

    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और रामनवमी को होता है विशेष उत्सव

    इस मठ और मंदिर के निर्माण के पीछे श्रीराधा-कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु के प्रेम और शिक्षाओं को समाज में लोगों के बीच फैलाना मुख्य उद्देश्य है। चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए यहां पर चैतन्य पद्मपीठ की स्थापना भी की गई है। मंदिर के प्रबंधन कार्य से जुड़े अनिल मिश्रा का कहना है कि यहां पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, चैत्र रामनवमी और कार्तिक माह में पडऩे वाले अन्नकूट के दिन विशेष आयोजन होते हैं जिसमें शहर और बाहर से भारी तादात में भक्तों की उपस्थिति रहती है। विशेष पूजन के साथ भंडारा भी होता है।