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    Prayagraj News: कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद? जो बने शंकराचार्य के उत्तराधिकारी, नौ वर्ष की उम्र में छोड़ दिया था घर

    स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को हुआ। इनके पिता पंडित राम सुमेर पांडेय और माता अनारा देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं। इनका मूल नाम उमाशंकर है। इनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई।

    By Ankur TripathiEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 06:55 PM (IST)
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    शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी बने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद प्रतापगढ़ जनपद के मूल निवासी हैं।

    प्रयागराज, जेएनएन। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके उत्तराधिकारी बने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद प्रतापगढ़ जनपद के मूल निवासी हैं। उनको ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ का प्रमुख घोषित किए जाने से प्रतापगढ़ के धर्मानुरागी लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

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    गांव के प्राथमिक स्कूल में की थी पढ़ाई

    स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को हुआ। इनके पिता पंडित राम सुमेर पांडेय और माता अनारा देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं। इनका मूल नाम उमाशंकर है। इनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। उसके बाद वह परिवार की सहमति पर नौ साल की अवस्था में गुजरात जाकर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी रामचैतन्य के सानिध्य में गुरुकुल में संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने लगे।

    बड़े भाई और भतीजा भी हैं कथावाचक

    बाद में स्वामी स्वरूपानंद के सानिध्य में आने के बाद उनके ही साथ सनातन धर्म के संवर्धन में लग गए। पट्टी के ब्राह्मणपुर में रह रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बड़े भाई गिरिजा शंकर पांडेय कथावाचक हैं। गिरिजा शंकर के पुत्र जयराम पांडेय समेत अन्य भी भागवत व राम कथा कहते हैं। परिवार के लोगों ने दैनिक जागरण को बताया कि उमा शंकर शुरू से ही धर्मिक कार्यों में रुचि लिया करते थे। उनकी छह बहने हैं।

    फिर कभी घर नहीं आए, गांव के बाहर ही मिले लोगों से

    अविमुक्तेश्वरानंद जब से घर से गए, दोबारा यहां कदम नहीं रखा। वह अयोध्या से प्रयागराज जाते समय ग्रामीणों के अनुरोध के बाद भी अपने गांव नहीं गए। हाईवे पर ही लोगों से भेंट करते चले जाते रहे। जब वह स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के रूप में प्रख्यात होने लगे तो परिवार के साथ प्रतापगढ़ ही नहीं अपने प्रदेश व देश का गौरव बढ़ा। उनके उत्तराधिकारी बनने पर गांव व घर के लोग प्रसन्नता से आनंदित हो गए।