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    Sawan 2022: शिव कचहरी महादेव मंदिर में 283 शिवलिंग का एक साथ दर्शन, क्‍या है मंदिर की महिमा

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Wed, 20 Jul 2022 04:13 PM (IST)

    Sawan 2022 शिव कचहरी महादेव मंदिर की स्थापना नेपाल के राजा राणा जनरल पद्मजंग बहादुर ने 1865 में की थी। इस मंदिर में नागेश्वर चंद्रेश्वर सिद्धेश्वर सहित भगवान शिव के प्रत्‍येक रूप का शिवलिंग स्थापित है। जनकल्याण के लिए पूरे श्रावण मास रुद्राभिषेक चलता है।

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    Sawan 2022 शिव कचहरी महादेव मंदिर में नागेश्वर-चंद्रेश्वर, सिद्धेश्वर सहित शिव के हर रूप का शिवलिंग स्थापित है।

    प्रयागराज, जागरण संवाददाता। गंगातट पर शिवकुटी मुहल्ले में 'शिव कचहरी महादेव का महिमा निराली है। यह प्रयागराज का प्राचीन शिवालय है। कहा जाता है कि यह विश्व में यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहां भक्तों को 288 शिवलिंगों के दर्शन का सौभाग्य मिलता है। मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। सावन के एक महीने और महाशिवरात्रि पर भीड़ अधिक जुटती है।

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    मंदिर का महात्‍म्‍य : शिव कचहरी महादेव मंदिर की स्थापना नेपाल के राजा राणा जनरल पद्मजंग बहादुर ने 1865 में की थी। इस मंदिर में नागेश्वर, चंद्रेश्वर, सिद्धेश्वर सहित भगवान शिव के प्रत्‍येक रूप का शिवलिंग स्थापित है। जनकल्याण के लिए पूरे श्रावण मास रुद्राभिषेक चलता है। सुबह से लेकर रात तक भक्‍तों की आवाजाही रहती है।

    सावन पर विशेष अनुष्ठान : श्रावण मास के प्रत्‍येक सोमवार के साथ ही प्रदोष, नागपंचमी और महाशिवरात्रि पर जनकल्याण के लिए शिव कचहरी महादेव मंदिर में अनुष्ठान किया जाता है। यहां दूर-दूर से भक्त धार्मिक अनुष्ठान कराने आते हैं। मंदिर आने वाले भक्तों को दर्शन-पूजन में दिक्कत न हो, उसके मद्देनजर प्रबंधन ने खास व्यवस्था कर रखी है। महिला-पुरुष के दर्शन-पूजन की अलग-अलग व्यवस्था है। सुरक्षा व्यवस्था के लिए स्वयंसेवकों की टीम जगह-जगह तैनात रहती है।

    पुजारी दीपक कहते हैं कि भक्‍तों की पूरी होती है मनोकामना : शिव कचहरी मंदिर के पुजारी दीपक त्रिपाठी कहते हैं कि शिव कचहरी महादेव भक्तों के कष्टहर्ता हैं। यहां सच्चे हृदय से मत्था टेककर शिवलिंग में जल में बेलपत्र डालकर अर्पित करने से हर कामना पूरी हो जाती है।

    क्‍या कहते हैं मंदिर प्रबंधक : मंदिर के प्रबंधक जयराम राणा ने कहा कि शिव कचहरी महादेव के दरबार से भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटते। इसी कारण वर्ष पर्यंत अनुष्ठान चलता है। श्रावण में भक्तों की संख्या काफी बढ़ जाती है।