Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रामजतन का 'छोटका समोसा' खाया क्या, इन टेस्टी समोसों के मुरीद हुए प्रयागराज में स्वाद के शौकीन

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Thu, 19 May 2022 09:29 PM (IST)

    रामजतन का समोसा नवाबगंज की पहचान बन चुका है। हर भारतीय सस्ते में कुछ अच्छा ढूंढता है और रामजतन यह नब्ज पकड़ने में कामयाब रहे । रामजतन सस्ते में अच्छा और स्वादिष्ट समोसा का स्वाद परोसने और ग्राहक का दिल जीतने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं।

    Hero Image
    तीन दशक पहले रामजतन ने छोटा समोसा बनाना शुरू किया, अब हर दिन बेचते हैं पांच हजार समोसे

    अमरीश मनीष शुक्ला, जेएनएन। शहर से ठीक 22 किमी दूर बसे नवाबगंज कस्बे समोसों के लिए प्रसिद्ध रामजतन की दुकान है। कहा तो यह जाता है कि अब रामजतन का समोसा नवाबगंज की पहचान बन चुका है और हो भी क्यों न हर भारतीय सस्ते में कुछ अच्छा ढूंढता है और रामजतन यह नब्ज पकड़ने में कामयाब रहे । रामजतन सस्ते में अच्छा और स्वादिष्ट समोसा का स्वाद परोसने और ग्राहक का दिल जीतने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं। उनका समोसा 'रामजतन का छोटका समोसा' के नाम से लोकल ब्रांड बन गया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    40 साल पहले शुरू किया था छोटे समोसे का प्रयोग

    40 साल पहले जब रामजतन यादव ने नवाबगंज में विजय स्वीट्स के नाम से समोसे की दुकान खोली। विशेषता थी कि यहां बनने वाला समोसा सामान्य आकार के समोसे से बहुत छोटा और सस्ता था। नमकीन और मीठा दोनों समोसा बाजार में आया तो कम दाम ने लोगों को लुभाना शुरू कर दिया। कारीगरी का कमाल तो था ही समोसा में इस्तेमाल होने वाली चीजों की गुणवत्ता बहुत अच्छी रहती थी, जिससे समोसे का स्वाद अलग ही पहचान बनाने लगा। मीठे समोसे को कई दिन तक स्टोर करने की क्षमता और पैकेजिंग होने लगी तो धीरे धीरे चर्चा और मांग दोनों होने लगी।

    रामजतन बताते हैं कि 1980 में जब दुकान खोली तो चौराहे पर कोई दुकान नहीं थी, मंदी का जमाना था और एक रुपये के चार समोसे देता था। कुछ लोग पैसा देते तो कुछ बिना पैसा दिए ही चले जाते। गुंडई और लट्ठ का जमाना नई दुकान चलाने में कई चुनौतियां भी पैदा करता था। थाने के पास ही दुकान थी तो लोग कहते कि पंद्रह दिन में दुकान बंद कर भाग जाएगा। पर हार नहीं मानी और आज किसी को पहचान बताने की जरूरत नहीं पड़ती।

    दिल्ली-मुबंई तक जाता है समोसा

    आपको जानकार आश्चर्य होगा कि रामजतन का छोटका समोसा जिले और राज्यों की सीमाओं को भी लांघ चुका है। मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े शहर में भी लोग यहां से समोसा लेकर जाते हैं। समोसे की गुणवत्ता और स्वाद के कारण नात-रिश्तेदार यहां के समोसे की डिमांड करते हैं । मौजूदा समय में प्रयागराज, प्रतापगढ़, कौशांबी, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर जैसे शहरों में हर दिन यहां का समोसा जाता है। प्रयागराज शहर की ओर जाते समय या लखनऊ की ओर जाते समय यहां गाड़ी का रुकना लगभग तय होता है। जो भी एक बार यहां समोसा खा लेता है, वह समोसे का मुरीद बन जाता है।

    छोटा पैक बड़ा धमाका

    नमकीन समोसा 3 रुपये और मीठा समोसा 4 रुपये प्रति पीस है। जबकि पैकिंग कराने वाले ग्राहकों को 160 रुपये एक किलो समोसा मिल जाता है। आकार छोटा होने के बाद भी यह बड़ा धमाका करता है। प्रतिदिन पांच हजार समोसा बिक जाता है। समोसा बनाने के लिए विशेष क्वालिटी का जीफोर आलू का प्रयोग वर्ष के 12 महीने किया जाता है। हरी नमकीन मसाला ,समोसा मशाला, हींग, पीसी धनिया, नमक, मैदा, रिफाइंड का प्रयोग होता है। मीठे समोसे में खोवा, गरी, चीनी की संतुलित मात्रा डाली जाती है।

    हलवाई का काम स्वयं करने वाले दुकान स्वामी रामजतन यादव के साथ काउंटर पर बेटा विजय, दो सहायक मौजूद रहते हैं। रामजतन बताते हैं कि बड़ा समोसा खाते-खाते लोग ऊब जाते हैं, छोटा समोसा स्वाद और आकार दोनों में बेहतर है। दाम कम होने के कारण यह लोगों को ज्यादा पसंद आता है।

    क्या कहते हैँ ग्राहक

    दुकान पर समोसा खा रहे स्वाद के शौकीन कई ग्राहकों ने दैनिक जागरण को समोसे की प्रसिद्धी पर कई तर्क दिए। अवधेश केसरवानी मुन्ना, अनूप केसरवानी, धर्मेंद्र चौरसिया, राकेश जायसवाल ने बताया कि यहां के जैसा समोसा आप देश के किसी भी कोने में चले जाइए नहीं मिलेगा, स्वाद और आकार के साथ गुणवत्ता बहुत अच्छी है। जब तक मीठा और नमकीन दोनों समोसा न खा लीजिए आपका मन ही नहीं भरेगा और एक बार खाने वाले यहां दोबारा जरूर आते हैं। कम दाम भी इसकी प्रसिद्धि का प्रमुख कारण है।