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    आप भी जानें, प्रयागराज के पुरुषोत्‍तम दास टंडन ने संविधान सभा में उठाया था राजभाषा का मसला

    By Brijesh Kumar SrivastavaEdited By:
    Updated: Wed, 27 Jan 2021 01:33 PM (IST)

    पुरुषोत्तम दास टंडन ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और वंदेमातरम को राष्ट्रगीत स्वीकृत कराने के लिए अपने साथियों के साथ एक और अभियान चलाया था। नागरी अंकों को संविधान में मान्यता दिलाने के लिए भी कोशिश की थी। उन्होंने संविधान सभा में अंग्रेजी अंकों का विरोध किया था।

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    पीडी टंडन ने संविधान सभा में राजभाषा हिंदी के लिए मुखर हुए थे।

    प्रयागराज, जेएनएन। हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में प्रयागराज का ही योगदान है। संविधान सभा में सबसे पहले यह मसला प्रयागराज के पुरुषोत्तम दास टंडन ने उठाया था। यह मसला आने पर संविधान सभा में सीधे तौर पर सहमति नहीं बन पाई थी। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद हिंदुस्तानी के पक्षधर थे। टंडन ने हार नहीं मानी थी। इस प्रश्न को लेकर संविधान सभा में जबरदस्त बहस हुई थी। अंतत: हिंदी राष्ट्रभाषा और देवनागरी राजलिपि घोषित हुई थी।

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    टंडन ने अंग्रेजी अंक का किया था विरोध

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विधि विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो.जय शंकर सिंह बताते हैं कि 11, 12, 13 एवं 14 दिसंबर 1949 को बहस के बाद हिंदी और हिंदुस्तानी को लेकर कांग्रेस में मतदान हुआ था। हिंदी को 62 और हिंदुस्तानी को 32 मत मिले थे। पुरुषोत्तम दास टंडन ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और वंदेमातरम को राष्ट्रगीत स्वीकृत कराने के लिए अपने साथियों के साथ एक और अभियान चलाया था। नागरी अंकों को संविधान में मान्यता दिलाने के लिए भी कोशिश की थी। उन्होंने संविधान सभा में अंग्रेजी अंकों का विरोध किया था। तब जवाहर लाल नेहरू ने इसका विरोध किया था। 

    ऐसे में टंडन का प्रस्ताव गिर गया

    कांग्रेसी सदस्य कन्हैयालाल, माणिक लाल मुंशी, गोपाल स्वामी आयंगर नेहरू के फार्मूले के पक्ष में रहे। ऐसे में टंडन का प्रस्ताव गिर गया और नागरी अंक संविधान में मान्यता प्राप्त नहीं कर सका था। प्रो. सिंह बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन में नई सरकार बनी थी। इस सरकार ने भारत संबंधी नई नीति की घोषणा की तथा एक संविधान निर्माण करने की वाली समिति बनाने का फैसला लिया था। भारत की आजादी को लेकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने मंत्रियों के एक दल को भारत भेजा था। जिसे कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है। 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने पर यह संविधान सभा नए सिरे से काम करने लगी थी। सभा ने एक दिसंबर 1946 से कार्य करना प्रारंभ किया था। संविधान सभा ने  दो वर्ष, 11 माह, 18 दिन दिन में 114 दिन बैठक की थी।

    ह्रदय नाथ कुंजरू की देश दुनिया की घटनाओं पर थी पैनी नजर

    संविधान विशेषज्ञ विजय शंकर मिश्र बताते हैं संविधान सभा में कश्मीरी पंडित ह्रदय नाथ कुंजरू भी सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने चार दशकों तक संसद और विभिन्न परिषद में अपनी सेवाएं दी थीं। देश और दुनिया की घटनाओं पर उनकी पैनी नजर थी। खेल मनोरंजन एवं अनुशासन को लेकर वे भारत सरकार को सुझाव देते थे।

    विजय लक्ष्‍मी पंडित ने भारत की आजादी को लेकर विदेशों में किया था प्रचार

    प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित भी संविधान सभा की सदस्य रहीं थी। ब्रिटिश राज में कैबिनेट पद पर पहुंचने वाली वे पहली महिला थीं। 1937 में उन्हें स्थानीय स्वप्रशासन एवं जन-स्वास्थ्य विभाग में मंत्री बनाया गया था। वे 1939 तक फिर 1946 से 1947 तक इस पद पर रहीं। उन्होंने महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी। 1945 में अमेरिका में अपने भाषणों से भारत की आजादी का जमकर प्रचार किया। आजादी के बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया।