डिजिटल लाइब्रेरी जहां पढ़ाई का मिलता है बेहतर माहौल, प्रयागराज में भी पांच सौ से ज्यादा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आसपास की सघन बस्तियों के कोठरी नुमा कमरों में रहकर शांति से पढ़ाई करना और तैयारी करना इनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। मांग और आपूर्ति के सिद्धांत ने प्रयागराज में डिजिटल लाइब्रेरी के कान्सेप्ट को जन्म दिया। छात्रों को यहां पढ़ाई का बेहतर माहौल मिला
मृत्युंजय मिश्र, जागरण संवाददाता। पवित्र नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित प्रयागराज को हिंदुओं के तीर्थ स्थान के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों का भी तीर्थ कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। देवरिया से लेकर आजमगढ़ तक और बलिया से लेकर बनारस तक, उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हजारों छात्र हर साल प्रयागराज की धरती पर कदम रखते हैं। वो सभी छात्र जो प्रयागराज आते हैं, उनका एक ही मकसद होता है, सफलता के नए सोपान गढ़ना।
मांग और आपूर्ति के सिद्धांत ने डिजिटल लाइब्रेरी के एक कान्सेप्ट को दिया जन्म
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आसपास की सघन बस्तियों के कोठरी नुमा कमरों में रहकर शांति से पढ़ाई करना और तैयारी करना इनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। शहर के पुस्तकालयों में भी इतनी क्षमता नहीं थी कि वे छात्रों को बेहतर और आरामदायक माहौल दे सकें। फिर मांग और आपूर्ति के सिद्धांत ने प्रयागराज में डिजिटल लाइब्रेरी के एक नए कान्सेप्ट को जन्म दिया। छात्रों को यहां पढ़ाई का बेहतर माहौल मिला, सैकड़ों लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हुए और डिजिटल लाइब्रेरियां भी खूब फली-फूलीं। सलोरी से लेकर गोविंदपुर तक तथा अल्लापुर से लेकर नैनी तक डिजिटल लाइब्रेरियों की संख्या ५०० का आंकड़ा भी पार कर गईं। आइए आपको लेकर चलते हैं डिजिटल लाइब्रेरी की दुनिया में और बताते हैं कि आखिर क्यों यह पुस्तक विहीन लाइब्रेरियां प्रतियोगी छात्रों की पहली पसंद बन गई हैं।
प्रयागराज में डिजिटल लाइब्रेरी 2018 से चलन में आई। लाज और किराए के कमरों में पढ़ाई का माहौल न मिलने की वजह से छात्रों के कदम डिजिटल लाइब्रेरियों की ओर बढने लगे। वातानुकुलित हाल, बैठने के लिए अच्छी कुर्सियां और सबसे अहम शांति की वजह से छात्रों को डिजिटल लाइब्रेरियों का कांसेप्ट इतना पसंद आने लगा कि 2022 में डिजिटल लाइब्रेरियों की संख्या का आंकड़ा 500 पार कर गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आसपास स्थित अल्लापुर, गोविंदपुर, सलोरी, बघाड़ा, दारागंज, रामबाग से लेकर नैनी तक सड़कों से गलियों तक डिजिटल लाइब्रेरी के बोर्ड टंग गए। किराए पर हाल लेकर डिजिटल लाइब्रेरी खोली तो कई लोगों ने अपने घर को ही डिजिटल लाइब्रेरी में बदल दिया। हालात यह है गली-कूंचों में भी खुली इन लाइब्रेरियों में सीटें खाली नहीं रहती है और यहां पढ़ने आने वालों को सीट खाली होने का इंतजार करना पड़ता है। अकेले अल्लापुर में ही 25 से ज्यादा डिजिटल लाइब्रेरियां है। नैनी में शुआट्स के आसपास भी कई डिजिटल लाइब्रेरी खुल गईं। इनसे सैकड़ों लोगों को रोजगार के अवसर मिले और यहा पढ़ाई करने वालों को बेहतर माहौल।
डिजिटल लाइब्रेरी में मिलती है वाई-फाई और एसी की सुविधा
दरअसल इनका नाम डिजिटल लाइब्रेरी जरुर है पर इसमें लाइब्रेरी जैसा कुछ नहीं है। चंद अखबार और कुछ पत्रिकाओं को छोड़ दें तो, यहां किताबों से भरी परंपरागत लाइब्रेरियों जैसा कुछ नहीं है, बस मिलता है तो सिर्फ लाइब्रेरी जैसा माहौल। खुद लाइब्रेरी संचालक भी इसे रीडिंग हाल कहने से गुरेज नहीं करते हैं। जहां पर वे एयरकंडीशनर की सुविधा देते हैं। शानदार फर्नीचर और वाईफाई से लैस यह डिजिटल लाइब्रेरियां अब फुल रहती हैं। यहां पढ़ने आने वाले युवा अपना लैपटाप और स्मार्टफोन भी लाते हैं और ठंडे माहौल में वाईफाई से जोड़कर अपनी पढ़ाई करते हैं। युवाओं को आकर्षित करने के लिए कई लाइब्रेरी संचालक टेस्ट सीरीज तक ज्वाइन कराते हैं।
500 से लेकर 12 लौ रुपये प्रतिमाह है शुल्क
लाइब्रेरी संचालक सुविधाओं के अनुसार 500 रुपये से लेकर 1200 रुपये प्रतिमाह शुल्क लेते हैं। तीन घंटे से लेकर 12 घंटे तक के स्लाट होते हैं। छात्र का पंजीकरण होने के बाद उसको सीट अलाट कर दी जाती है। अपने निर्धारित स्लाट में ही छात्र को पढ़ाई करनी होती है। छात्र बताते हैं कि किराए के कमरों में कूलर लगाने पर मकान मालिक प्रतिमाह 500 रुपये अतिरिक्त वसूलते हैं। इससे बेहतर है कि डिजिटल लाइब्रेरी के ठंडे माहौल में 700 रुपये शुल्क देकर आराम से पढ़ाई की जाए।
संचालक और बच्चों से बातचीत
अल्लापुर की स्टूडेंट डिजिटल लाइब्रेरी संचालक राहुल पटेल कहते हैं कि किराए पर कमरा लेकर रहने वाले छात्रों के साथ ही जिनका अपना घर है वह भी पढ़ने के लिए आते हैं। किराए के कमरों में पढ़ाई का माहौल नहीं बन पाता है। शोर-शराबा और गर्मी इसका एक कारण है। डिजिटल लाइब्रेरी में एसी, वाई-फाई की सुविधा मिलती है। शांति होती है और फीस भी कम है, ऐसे में युवाओं को यहां पढ़ना काफी अच्छा लगता है। बात सुरक्षा की करें तो सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। लड़के और लड़कियां बिना किसी परेशानी के यहां पढ़ाई करते हैं।
घर पर भी नहीं मिलता ऐसा माहौल
मनीष कुमार लेखपाल की तैयारी कर रहे हैं। वे कहते हैं कि कमरे पर ऐसा माहौल नहीं मिलता है। यहां पर एसी, वाइफाइ, पीने के पानी की सुविधा है। शांति रहती है और दूसरों को पढ़ते देखकर पढ़ाई का माहौल बनता है। पढ़ाई के कम फीस में ऐसा माहौल कहीं नहीं मिल सकता है।
किराए के कमरे पर नहीं हो पाती पढ़ाई
चित्रकूट से प्रयागराज एसएससी की तैयारी करने आए आशीष कुमार ने बताया कि किराए के कमरे में पढ़ाई नहीं हो पाती है। गर्मी और शोर-शराबे की वजह से काफी मुश्किल होती थी। इसके बाद दोस्तों की सलाह पर डिजिटल लाइब्रेरी में पढ़ना शुरू किया। तैयारी में काफी सहूलियत हो गई है।
आठ घंटे कब गुजर जाते हैं पता नहीं चलता
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए सुल्तानपुर से आए विवेक का कहना है कि यहां पढ़ाई का बेहतर माहौल मिला है। सात से आठ घंटे पढ़ते हैं और सिर्फ सोने के लिए घर जाते हैं। यहां पढ़कर उनका प्रदर्शन काफी बेहतर हुआ है। उनके कई दोस्त भी पढ़ने के लिए आते हैं।
घर में नहीं मिलता है पढ़ाई का माहौल
सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहीं अल्लापुर की सुरभि भी डिजिटल लाइब्रेरी में पढ़ती हैं। सुरभि कहती हैं कि घर पर रहकर पढ़ाई का माहौल नहीं बनता है। इसलिए उन्होंने डिजिटल लाइब्रेरी आना शुरू कर दिया। सात से आठ घंटे तक यहां पढ़ाई करते हैं। पूर्णकालिक सदस्यता लेने के कारण मैं कभी भी पढ़ने आ सकती हूं।
भारती भवन पुस्तकालय में है किताबों का खजाना
परंपरागत पुस्तकालयों में पाठकों की संख्या में भारी कमी आई है। चाहे भारती भवन पुस्तकालय हो या राजकीय लाइब्रेरी पाठकों की कमी से दोनों जूझ रही हैं। भारती भवन पुस्तकालय में हिन्दी और उर्दू की हजारों पुस्तकें हैं पर अब पुस्तकों से लगाव रखने वाले कुछ ही लोग यहां दिखाई देते हैं। भारती भवन पुस्कालय की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय और बालकृष्ण भट्ट ने की थी। यह प्रदेश का सबसे पुराना पुस्तकालय है और इस ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष पंडित महामना मदन मोहन मालवीय थे। यहां 1145 पांडुलिपियां, 62 हजार पुस्तकें हैं। करीब 5500 पुस्तकें उर्दू में हैं। इनमें उर्दू में लिखी रामायण और श्रीमद् भागवत गीता भी मिलती है।