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    प्रयागराज का अनूठा है इतिहास, अंग्रेजी शासन काल में एक दिन के लिए भारत की राजधानी बनने का मिला था गौरव

    By Rajneesh MishraEdited By:
    Updated: Mon, 08 Feb 2021 02:22 PM (IST)

    आज का मेडिकल कालेज अंग्रेज गर्वनर का आवास हुआ करता था। अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) अंग्रेज अफसरों का सैरगाह था। इसके आसपास उनके आवास थे। एक नवंबर 1858 को ब्रिटिश सरकार ने प्रयागराज में एक शाही दरबार का आयोजन किया था।

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    अंग्रेजी शासनकाल में प्रयागराज यानी पुराने इलाहाबाद को एक दिन के लिए देश की राजधानी बनने का गौरव मिला था।

    प्रयागराज, जेएनएन। ब्रिटिश हुकूमत के समय इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का जलवा देश भर में था। मुगल शासकों के लिए प्रयागराज का जितना महत्व था उतना ही अंग्रेजों के समय रहा था। ब्रिटिश सरकार के समय प्रयागराज संयुक्त प्रांत की राजधानी रहा था। यहां अंग्रेजों ने उच्च न्यायालय से लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। अकबर के किले में सेना रहती थी। 

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    आज का मेडिकल कालेज अंग्रेज गर्वनर का आवास हुआ करता था। अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) अंग्रेज अफसरों का सैरगाह था। इसके आसपास उनके आवास थे। एक नवंबर 1858 को ब्रिटिश सरकार ने प्रयागराज में एक शाही दरबार का आयोजन किया था। तब इस शहर को एक दिन भारत की राजधानी बनने का गौरव मिला था।

    प्रयागराज के शाही दरबार में रानी विक्टोरिया का पढ़ा गया था घोषणा पत्र

    समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों के लिए प्रयागराज बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। कोलकाता से दिल्ली प्रयागराज होकर ही जाना पड़ता था। यहां से दोनों ही स्थानों पर नियंत्रण करना भी संभव था। ऐसे में अंग्रेजों ने प्रयागराज को विकसित करने के लिए सभी उपाय किए थे। एक नवंबर 1858 को प्रयागराज से ही ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त करने की घोषणा हुई थी। इसी दिन ब्रिटिश सरकार ने प्रयागराज में एक शाही दरबार का आयोजन किया था। शाही दरबार में रानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र को पढ़ा गया। शाही दरबार के दौरान प्रयागराज एक दिन के लिए भारत की राजधानी बन गई थी। रानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र को उस समय के वाइसराय लार्ड केनिंग ने पढ़ा था। इसमें इस बात की घोषणा की गई कि भारत का शासन अब रानी विक्टोरिया ने अपने हाथ में ले लिया है। कंपनी का शासन समाप्त हो गया है।

    1910 में शाही दरबार को बनाया गया स्मारक स्थल

    रविनंदन सिंह बताते हैं कि जिस स्थान पर शाही दरबार का आयोजन हुआ था, उसे 1910 में स्मारक स्थल बना दिया गया। 1858 में यहां रानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र पढ़ा गया था। पूरे 52 वर्ष बाद इस अवसर की वर्षगांठ पर उस समय के वाइसराय लार्ड मिंटो ने मेमोरियल बनाया। लार्ड मिंटो की वजह से इस स्थान का नाम मिंटो पार्क पड़ा। हालांकि अब इस पार्क का नाम बदलकर मदन मोहन मालवीय पार्क कर दिया गया है। यह पार्क किले के पास और यमुना तट पर है।

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