रोज रात में बह जाता था Prayagraj के यमुना पुल का पिलर नंबर 13, अंग्रेजों को करानी पड़ी थी पूजा
प्रयागराज के गऊघाट स्थित यमुना पुल के निर्माण की कहानी दिलचस्प है। इस पुल की आयु डेढ़ सौ साल से अधिक हो चुकी है पर इसकी मजबूती वैसे ही बरकरार है। लोहे के गार्डर पर टिका यह पुल आज भी प्राचीनतम तकनीकि की मिसाल है।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के गऊघाट स्थित यमुना पुल के निर्माण की कहानी दिलचस्प है। इस पुल की आयु डेढ़ सौ साल से अधिक हो चुकी है पर इसकी मजबूती वैसे ही बरकरार है। लोहे के गार्डर पर टिका यह पुल आज भी प्राचीनतम तकनीकि की मिसाल है। इस पुल में कुल 14 पिलर हैं। पिलर नंबर 13 को बनने में बीस माह लग गए थे। यह पिलर दिन में बनता था और रात में बह जाता था। सुबह जब इसको बनाने वाले कारीगर आते थे तो इसे बहा पाते थे।
रात में भी इस पिलर को बनाने के बाद लोग बैठे रहते थे पर अचानक इस पिलर का प्लेटफार्म नदी में बह जाता था। ऐसा क्यों होता था यह कोई समझ नहीं पा रहा था। बाद में यहां अंग्रेजों ने हिंदू विधि विधान से पूजा पाठ कराई। पिलर के डिजाइन में परिवर्तन किया। पिलर को हाथी पांव की तरह तैयार किया। उसके बाद यह पिलर बन पाया।
हर पुल का है अपना इतिहास
इतिहासकार प्रो.अविनाश चंद मिश्र बताते हैं कि प्रत्येक पुल के निर्माण का अपना इतिहास रहा है। अंग्रेजों के समय में गंगा एवं यमुना नदी पर व्यापारिक गतिविधि बढ़ाने के लिए पुल बनाए गए थे। राष्ट्रीय राजमार्ग से कलकत्ता से प्रयागराज और दिल्ली को जोडऩे के लिए अंग्रेजों ने 1855 में यमुना नदी पर पुल बनाने कर प्रस्ताव बनाया था। 1859 में इसकी नींव पड़ी थी। इस पुल में नक्काशीदार पत्थरों के 14 पिलर बने हुए हैं।
पिलर नंबर 13 को बनाने में पौने दो साल लग गए
पुल को बनाने में इंजीनियरों को बहुत श्रम करना पड़ा था। पुल पर काम शुरू हुआ तो एक पिलर को छोड़कर अन्य सभी 1862 तक बन गए। यमुना के तेज बहाव के बावजूद यह सभी पिलर में बनाने में दिक्कत नहीं आई। पिलर नंबर 13 को बनाने में पौने दो साल लग गए। पूरा दिन यहां पिलर बनाने का काम चलता था। पिलर ढलाई का प्लेटफार्म तैयार किया जाता था। सुबह मजदूर एवं इंजीनियर काम को पहुंचते तो सारा प्लेटफार्म नदी में बह चुका होता था।
बदली गई डिजाइन तब बन सका पिलर
प्रो.मिश्र बताते हैं कि इसकी डिजाइन बदली गई। पिलर की डिजाइन एलीफैंट फुट मार्का (हाथी पांव) की तरह की गई। इसके बाद जाकर यह पिलर बन पाया। इसके बाद तीन और पिलर हैं। इस पिलर के निर्माण के लिए जलस्तर नौ फीट नीचे लाया गया। राख एवं पत्थर का फर्श बनाया गया। प्रो.मिश्र बताते हैं कि इस पिलर को बनाने के लिए अंध विश्वास का सहारा लेना पड़ा था। पूजा पाठ की गई थी। इसे गोपनीय रखा गया था। गऊघाट के पास रहने वाले एक तीर्थ पुरोहित ने पूजा पाठ की सलाह दी थी। तीर्थ पुरोहित की सलाह के बाद इंजीनियरों ने पूजा अर्चना की थी।
इस पुल से रोजाना गुजरती है दो सौ ट्रेन
गऊघाट के इस पुल से रोजाना दो सौ अधिक ट्रेन गुजरती है। इलाहाबाद मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अमित सिंह बताते हैं कि इस पुल से रोजाना दो सौ से अधिक ट्रेन गुजरती है। यह प्रयागराज का हावड़ा-दिल्ली, मुबंई, जबलपुर रूट है। यह पुल छह साल में बना था। ब्रिटिश शासन में व्यापार बढ़ाने के लिए यह रेलमार्ग तैयार हुआ था। रेल का आवागमन 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ था। पुल की लंबाई 3150 फीट है।
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