डाक्टरों संग बरम बाबा पर भी भरोसा, बच्चों की सलामती को चढ़ाते हैं खड़ाऊं-लंगोट
तभी तो अपने लाल की सलामती के लिए ब्रम्ह स्थान पर उसके स्वस्थ होने की मनौती मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर बरम बाबा को खड़ाऊं लंगोट जनेऊ झंडा आदि चढ़ाकर मन्नत उतारते हैं। मन्नत मांगते हैं और ठीक होने पर खड़ाऊं-लंगोट प्रसाद आदि चढ़ाते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। आप इसे आस्था कह लें या फिर अंधविश्वास कि चिल्डे्रन अस्पताल में अपने बच्चों का इलाज करा रहे लोगों का जितना भरोसा डॉक्टरों पर है उतना ही विश्वास बरम बाबा पर है। तभी तो अपने लाल की सलामती के लिए ब्रम्ह स्थान पर उसके स्वस्थ होने की मनौती मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर बरम बाबा को खड़ाऊं, लंगोट, जनेऊ, झंडा आदि चढ़ाकर मन्नत उतारते हैं।
चिल्डे्रन अस्पताल में पीपल का पेड़ है लोगों की आस्था का प्रतीक
चर्चलेन इलाके में स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल के अंतर्गत संचालित हो रहे सरोजनी नायडू बाल चिकित्सालय में पीपल का एक पुराना पेड़ लोगों की आस्था का प्रतीक है जहां पर लोग अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए यहां पर मन्नत मांगते हैं और ठीक होने पर खड़ाऊं-लंगोट, प्रसाद आदि चढ़ाते हैं।
पीपल पेड़ के नीचे बताते हैं बरम बाबा का स्थान
अस्पताल के मुख्यद्वार से भीतर घुसने पर दाहिनी तरफ लोहे की रेलिंग लगी है। इसी के भीतर वाहन स्टैंड संचालित होता है। यहीं पर अस्पताल की बाहरी दीवार से सटकर थोड़ी-थोड़ी दूर पर पीपल के दो पेड़ हैं जिनमें से एक के चारो तरफ चबूतरा बना हुआ है। इसी पेड़ से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। अस्पताल में जनरेटर आपरेटर और उक्त पेड़ की देखरेख करने वाले प्रदीप कुमार द्विवेदी के मुताबिक इस पीपल के पेड़ के नीचे बरम बाबा का स्थान है। बाबा ही लोगों की मन्नत पूरी करते हैं। पूजा का यह सिलसिला कब शुरू हुआ उन्हें ठीक से नहीं पता लेकिन लोग बताते हैं कि 50-60 साल से ऐसा हो रहा है। पुराने लोग बताते हैं कि वहां पर बरम बाबा का स्थान हैं जो बहुत जागता हैं और लोगों के दुख दूर करते हैं।
लाल झंडा और लंगोट से ढक गया है पेड़, ग्रिल पर बंधे हैं घंटे
अस्पताल के बाहर नाश्ते की दुकान लगाने वाले कमलेश गुप्ता बताते हैं कि 20 साल से तो वही पूजा होते देख रहे हैं। उनके मुताबिक पीपल पहले छोटा था जब बढ़ा तो अस्पताल की बाहरी दीवार को तोड़ दिया। तब से वहां पर दीवार की जगह लोहे की ग्रिल लगा दी गई। पेड़ के चारो तरफ चबूतरा भी बन गया। वहां पर काले रंग की एक मूर्ति भी रखी है। पेड़ के अलावा उक्त ग्रिल पर भी लोग लंगोट, घंटा, जनेऊ आदि बांधते हैं। वर्तमान में चबूतरे पर खड़ाऊं का अंबार लगा हुआ है। लाल रंग के हजारों लंगोट व झंडों से पेड़ व चबूतरा ढका हुआ है। बीमार बच्चा जब ठीक हो जाता है तो कई लोग पूड़ी-हलवा आदि बनाकर भी वहां पर चढ़ाते हैं।
बरम बाबा के आशीर्वाद से ठीक हो जाते हैं बीमार बच्चे
अस्पताल परिसर में रहने वाले कर्मी दिनेश कुमार का कहना है कि बरम बाबा के आशीर्वाद से अस्पताल में भर्ती बच्चे ठीक हो जाते हैं तभी तो लोगों की यहां से आस्था जुड़ी है। समीप ही बैठी रेखादेवी, बसंती, श्यामा देवी आदि ने उनकी बात का समर्थन किया कि बरम बाबा के आशीर्वाद से तमाम बच्चों को नई जिंदगी मिली है। उनके बच्चों का भी इलाज चल रहा है।
यह तो विश्वास का मामला है, विज्ञान का नहीं
नगर निगम के पार्षद और क्षेत्रीय निवासी आनंद घिल्डियाल का कहना है कि मानो या न मानो यह तो विश्वास का सौदा है। बरम बाबा या पीपल के पेड़ पर मन्नत मानने से लोगों के बच्चे ठीक होते होंगे तभी तो वहां के प्रति लोगों में आस्था है। ऐसे हर जगह क्यों नहीं लोगों का सिर झुकता है। उन्होंने कहा कि शहर का कोई भी सरकारी या निजी अस्पताल देख लें हर जगह देव स्थान मिल जाएंगे जहां पर लोग सिर नवाते हैं। उनमें डाक्टर भी शामिल हैं। आस्था का विषय विज्ञान की दृष्टि से समझ नहीं आ सकता है।