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    Chandrashekhar Azad: आनंद भवन बुलाकर पंडित मोतीलाल नेहरू ने आजाद को दिया था आर्थिक सहयोग का आश्वासन

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Fri, 23 Jul 2021 01:26 PM (IST)

    जन्मतिथि पर विशेष वर्ष 1931 में पं. मोतीलाल नेहरू ने आजाद को आनंद भवन बुलवाया और हरसंभव आर्थिक मदद का भरोसा दिला। वह चाहते थे कि कांग्रेस के आंदोलन के ...और पढ़ें

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    अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की यह प्रतिमा प्रयागराज के सर्किट हाउस में स्थापित है

    प्रयागराज, अमलेंदु त्रिपाठी। भारत माता की आजादी के आंदोलन को चलाने के लिए क्रांतिकारियों को धन की जरूरत थी। वह तरह तरह के जतन कर रहे थे। चंद्रशेखर आजाद खास तौर पर गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में रहते थे। वह जितना बन पड़ता आर्थिक सहयोग करते। वैसे यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि रुपये के लिए आजाद कुछ भी ऐसा करने को तैयार नहीं थे जिससे संगठन या किसी और की छवि धूमिल हो। एक बार एक महिला ने मास्टर रुद्रनारायण के जरिए प्रस्ताव भिजवाया कि यदि वह उनसे मिल लें तो वह आर्थिक मदद दिला सकती हैं लेकिन आजाद ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। कहा कि शर्त नहीं मंजूर है।

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    नेहरू ने लिखा है ....नाम सुना था

    वर्ष 1931 में पं. मोतीलाल नेहरू ने आजाद को आनंद भवन बुलवाया और हरसंभव आर्थिक मदद का भरोसा दिला। वह चाहते थे कि कांग्रेस के आंदोलन के साथ क्रांतिकारी आंदोलन भी चलता रहे। खासकर क्रांतिकारी अत्याचारों का बदला लें जो सत्याग्रहियों पर किए जा रहे थे। पं. मोतीलाल नेहरू और आजाद की मुलाकात के सूत्रधार राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन थे। हालांकि पंडित जवाहरलाल नेहरू आजाद से उतने सहमत नहीं थे। इसक बात का जिक्र पंडित नेहरू ने अपनी पुस्तक मेरी कहानी में किया है। शायद यही वजह है कि 27 फरवरी को जब चंद्रशेखर आजाद सुबह उनसे आनंदभवन में मिले तो उन्होंने भगत सिंह का केस लडऩे से इनकार कर दिया। यह जरूर कहा कि यदि वह चाहें तो आर्थिक मदद कर देंगे। अपनी पुस्तक में पं. नेहरू ने लिखा है कि 'मैने पहले तो उसे कभी नहीं देखा था, हां दस वर्ष पहले उसका नाम जरूर सुना था, जब 1921 के असहयोग के जमाने में वह जेल गया था। वह मुझसे इसलिए मिलने को तैयार हुआ था कि हमारे छूट जाने से आमतौर पर ये आशा बंधने लगी थी कि सरकार और कांग्रेस में कुछ न कुछ समझौता होने वाला है। वह मुझसे जानना चाहता था कि अगर कोई समझौता हुआ तो उसके दल को शांति मिलेगी या नहीं...।

    - डा. आलोक कुमार, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय

    सार्वजनिक होनी चाहिए एसएसपी जान नॉट बोवर की डायरी

    दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे। हम जिंदा थे, हम जिंदा हैं, हम जिंदा रहेंगे। आजाद की इन्हीं पंक्तियों को दोहराते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. योगेश्वर तिवारी ने अमर क्रांतिकारी को नमन किया। कहा कि उनकी जिजीविषा, शक्ति, साहस, धैर्य और चिंतन अतुलनीय है। नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत भी। वह बताते हैं कि तत्कालीन एसएसपी जान नॉट बोवर ने अपनी डायरी में आजाद के आखिरी समय से संबंधित घटनाओं को लिखा है। वह डायरी लखनऊ संग्रहालय में है। सरकार उसमें लिखे तथ्यों को सार्वजनिक करे ताकि यह पता चल सके कि तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत क्या सोचती थी, आजाद के बलिदान के पीछे का घटनाक्रम भी सामने आए। इससे नई पीढ़ी को इतिहास समझने में मदद मिलेगी। यह डायरी इलाहाबाद संग्रहालय में रखी जानी चाहिए, आखिर इसी शहर ने आजाद की स्मृतियों को संजोया है।

    हथौड़े के एक वार में तोड़ दिया था ताला

    प्रो. तिवारी ने जागरण को यह भी बताया कि काकोरी अभियान के दौरान जब रुपयों से भरा बक्सा क्रांतिकारियों के हाथ लगा तो उसका ताला तोडऩे की कोशिश हुई। सभी ने प्रयास किया लेकिन ताला नहीं टूटा। अंत में आजाद ने हथौड़े के सिर्फ एक वार से बक्से का ताला तोड़ समस्या दूर कर दी।