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Kumbh mela 2019 : संतों के नाम के साथ भी होते हैं उपनाम

अलग-अलग संप्रदाय के संतों में उपनाम की अपनी परंपरा है। दास, शरण, गिरि, पुरी, सरस्वती, भारती आदि उपनाम होते हैं

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 08:12 PM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 07:05 AM (IST)
Kumbh mela 2019 : संतों के नाम के साथ भी होते हैं उपनाम
Kumbh mela 2019 : संतों के नाम के साथ भी होते हैं उपनाम

विजय सक्सेना, कुंभ नगर : जिस तरह आम व्यक्ति के नाम के साथ उपनाम लगते हैं, उसी प्रकार साधु-संतों के नाम के पीछे भी उपनाम की परंपरा है। इन उपनामों में दास, शरण, गिरि, पुरी, सरस्वती, भारती आदि शामिल हैं। अलग-अलग संप्रदाय में साधु-संतों के उपनाम भी अलग-अलग होते हैं। इन उपनामों के भी अपने कारण हैं।

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 वैष्णव संप्रदाय में नवधा भक्ति (नौ प्रकार की भक्ति) के आधार पर उपनाम का निर्माण होता है। जैसे दास्य भक्ति वाले साधु-संत अपने नाम के पीछे दास तो मित्र भक्ति वाले साधु-संत शरण उपनाम लगाते हैं। वैष्णव संप्रदाय में प्रमुख रूप से दास, शरण, रसिक आदि उपनामों का उपयोग होता है। इसी तरह शैव संप्रदाय में दशनाम व मणि इनका आधार होता है। इसमें प्रमुख रूप  से गिरि, पुरी, सरस्वती, भारती, अरण्य, पर्वत, तीर्थ, आश्रम आदि उपनाम होते हैं। उदासीन के नाम के पीछे दास, मुनि, शरण, ऋषि उपनामों का उपयोग होता है। साधु समाज में नामकरण का भी विधान है। महामंडलेश्वर स्वामी प्रखर महाराज कहते हैं, जब भक्त संन्यास लेता है तो गुरु द्वारा उसका नामकरण किया जाता है। कुछ अखाड़ों में ऐसी परंपरा भी है कि नामकरण के समय ऐसे अक्षर से नाम की शुरूआत की जाती है जो पूर्व नाम से भी पहला अक्षर था। इससे राशि में परिर्वतन नहीं होता।

उपनाम गिरि लगाने वाले साधु पर्वतों पर रहते हैं : प्रखर महाराज

प्रखर महाराज ने बताया कि शैव संप्रदाय के सात अखाड़े हैं। महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद। इसमें साधु-संत नाम के पीछे गिरि, पुरी, भारती, सरस्वती, आश्रम, अरण्य जैसे उपनाम लगाते हैं। बताया कि जो साधु उपनाम गिरि लगाते हैं वे पर्वतों पर रहते हैं। इसी तरह पुरी उपनाम वाले साधु नगरों में रहते हैं, आश्रम में रहने वाले नाम के साथ आश्रम उपनाम लगाते हैं, शिक्षा देने वाले नाम के साथ सरस्वती उपनाम लगाते हैं। जंगलों में विचरण करने वाले साधु अरण्य उपनाम लगाते हैं।

आदि गुरु शंकराचार्य के शुरू की थी परंपरा : डॉ. बृजेश

महानिर्वाणी अखाड़े के डॉ. बृजेश शास्त्री का कहना है इस परंपरा को आदि गुरु शंकराचार्य के शुरू किया था। इसीलिए साधु-संतों में उपनाम का बेहद महत्व है। हर उपनाम के पीछे कोई न कोई  कारण होता है। बताया कि दास उपनाम वाले साधु दास्यभाव से उपासना करते हैं। जिन संतों के नाम के साथ शरण उपनाम होता है वे शरणागत भाव के होते हैं। इसी तरह रसिक उपनाम वाले साधु-संत भगवत भजन में लीन रहते हैं।


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