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    मूंज क्राफ्ट : नई पहचान तो मिली लेकिन मुकाम अभी दूर

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 29 Mar 2019 07:05 AM (IST)

    मूंज क्राफ्ट को नैनी इलाके में एक नई पहचान तो मिली है हालांकि अभी मुकाम हासिल नहीं कर सकी है। इसके लिए नई पीढ़ी के साथ ही महिलाओं में भी इस व्‍यवसाय को लेकर उत्‍सुकता बढ़ी है।

    मूंज क्राफ्ट : नई पहचान तो मिली लेकिन मुकाम अभी दूर

    ज्ञानेंद्र सिंह, प्रयागराज : सलिला किनारे नैनी इलाके में मूंज क्राफ्ट उद्योग को 'एक जनपद एक उत्पाद' के चलते नई पहचान मिली है पर मुकाम (मंजिल) अभी दूर है। मूंज उत्पाद टोकरी, डलिया, पेपर वेट, पर्स, लैंप, चपाती बाक्स, फ्रूट बास्केट, ब्रेड बास्केट, वॉल हैंगिंग, टी पोस्टर, टेबल मैट, सुहाग पिटारा आदि पहले से लोकप्रिय रहे हैं। अब सरकारी पहल से इनकी मांग में भी इजाफा हो रहा है। नई पीढ़ी के लोग भी हस्तशिल्प की इस विधा से जुड़ रहे हैं। युवतियों और महिलाओं ने बढ़ी संख्या में इस धंधे को अपनाया है। इतना कुछ होने के बाद अब दरकार है तो बाजार की। ऐसा बाजार, जो उत्पाद का वाजिब मूल्य दिलाए। ऐसा होने से ही स्वरोजगार के प्रति जो आकर्षण बढ़ा है वो बना रहेगा।

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    अर्से से स्वरोजगार का जरिया रहा है

    यमुनापार के विभिन्न गांवों में मूंज क्राफ्ट, लघु व कुटीर उद्योग के रूप में अर्से से स्वरोजगार का जरिया रहा है। मौजूदा आम चुनाव में भी मूंज उत्पाद मुद्दा बन सकता है। इस उद्योग एवं इससे जुड़े उद्यमियों की समस्या, उम्मीदें भी है।

    वर्षों से प्रचलित है हस्त शिल्प

    नैनी के डांडी, महेवा और तिगनौता में वर्षों से यह हस्त शिल्प प्रचलित है। किसी दौर में शादी के अवसर पर मूंज के उत्पादों की बड़ी मांग थी। महेवा पूरब पïट्टी के अबरार की पांचवीं पीढ़ी इस काम में लगी है। वह बताते हैं कि गांव में दो दर्जन से ज्यादा परिवार हैं जो मूंज उत्पाद कई पीढिय़ों से बनाते चले आ रहे हैं। पहले उनके उत्पाद चौक, कटरा में बिक्री के लिए भेजे जाते थे। अब भी चौक में नीम के पेड़ के आसपास कई दुकानों में उनके मूंज के उत्पादों की बिक्री होती है। इन उत्पादों की पहले उतनी बिक्री भी नहीं हो पाती थी कि हस्त शिल्पी अपना परिवार पाल सकें, इसलिए मौजूदा पीढ़ी धीरे-धीरे इससे दूर होने लगी।

    पिछले वर्ष मूंज को ओडीओपी योजना में शामिल किया गया

    पिछले साल मूंज को एक जनपद एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में शामिल किया गया। योगी आदित्यनाथ सरकार की इस पहल से मूंज क्राफ्ट के उत्पादों के स्टाल विभिन्न राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के मेलों और प्रदर्शनियों में लगाए जाने लगे। वहां लोगों ने उत्पादों को पसंद किया। खासी बिक्री भी हुई। व्यवसाय चमका तो खुद अबरार के बेटे अबसार, बहू फिरोजा आदि भी मूंज के उत्पाद बनाने में जुट गए। अबसार को मुरादाबाद की एक कंपनी ने डाइनिंग टेबल और बाउल मैट बनाने का काम दिया। लगभग एक लाख रुपये काम उन्हें हाल ही में मिला है।

    खास-खास

    09 गांवों में अब मूंज क्राफ्ट के उत्पाद बनाने में जुटे हैं हस्त शिल्पी

    07 सौ के करीब पहुंच गई है मूंज क्राफ्ट के कारीगरों की संख्या

    महिलाओं को भी दिया जा रहा व्यावसायिक प्रशिक्षण

    इसके साथ ही महेवा की ही चांद, सादिका, शहाना लल्लू, सुल्ताना, जफर, रोशन आदि युवतियां और महिलाएं भी इस काम में जुटी हैं। अब व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। लगभग ढाई सौ युवक और युवतियों ने बाकायदा ट्रेनिंग ले ली है। अब तीन गांवों से बढ़कर यह काम नैनी इलाके के ही पिपिरसा, भडऱा, मड़ौका, नैनी तालुका ददरी, शाह जी का पूरा, मलहरा क्रासिंग के पास आदि इलाकों में भी फैल गया है। वर्तमान में इस काम में लगभग सात सौ लोग जुड़ गए हैं। पहले लगभग दो सौ लोग ही मूंज क्राफ्ट उद्योग से जुड़े थे।

    नई डिजाइन से मूंज क्राफ्ट को बना सकते हैं आकर्षक

    मूंज क्राफ्ट हस्त शिल्प का बेजोड़ नमूना है। सौ फीसद हाथ के इस काम में तकनीकी की जरूरत है। नई डिजाइन से मूंज क्राफ्ट को और भी आकर्षक बना सकते हैं। इससे मूंज क्राफ्ट को बढ़ावा भी मिल सकता है। इसके लिए उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से इन गांवों में एक्सपर्ट भेजने की योजना थी, जो हस्त शिल्पियों को उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने तथा उसमें सुधार कर उसके आकर्षण को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण देते मगर अब तक इस ओर कदम नहीं उठाए जा सकें।

    कच्चे माल के लिए बने डिपो या बैंक

    हस्त शिल्पियों के सामने कच्चे माल के भंडारण की सबसे ज्यादा दिक्कत है। घर में इतनी ज्यादा जगह नहीं होती कि साल भर के लिए कच्चा माल रखा जा सके। दरअसल, कच्चा माल सीजन में एक माह ही मिल पाता है, जिन लोगों ने इसी माह साल भर का कच्चा माल रख लिया, उनके लिए तो ठीक मगर जिन्होंने कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में नहीं इकट्ठा किया तो उनके सामने परेशानी होती है। कच्चे माल के भंडारण के लिए डिपो अथवा बैंक बनाने की आवश्यकता है जिससे इस हस्त शिल्प से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो सकेगा।

    वित्त पोषण में हो आसानी

    प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत शत-प्रतिशत वित्त पोषण की बात है, मगर इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि ऋण मिलना मुश्किल हो जाता है। जिले में मूंज क्राफ्ट इंडस्ट्री को आकार दिए जाने के लिए सबसे अहम पहल होगी हस्त शिल्पियों को वित्त पोषित करना। शिल्पी चाहते हैं कि उन्हें सब्सिडी भी दी जाए। एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत मूंज क्राफ्ट इंडस्ट्री स्थापित करने के लिए सवा करोड़ रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराने की बात थी, इसमें 15 लाख रुपये तक की सब्सिडी देने के लिए कहा जा रहा था, दस फीसद रकम जेब से लगाने की नीति थी लेकिन अब तक ऋण नहीं मिल सका।

    यूरोप और अमेरिका में थी मांग

    महेवा के शिल्पियों की मानें तो उनके उत्पादों की मांग किसी दौर में यूरोप और अमेरिका तक में थी। यमुना क्रिश्चियन इंटर कॉलेज की प्रिसिंपल मूंज क्राफ्ट शिल्पियों से लेकर अमेरिका में अपने परिचितों को भेजती थीं। अबरार ने बताया कि प्रिसिंपल के चले जाने के बाद विदेश माल नहीं जा सका।

    थर्माकोल व प्लास्टिक का विकल्प

    मूंज क्राफ्ट के उत्पाद थर्माकोल और प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं। चूंकि ज्यादातर उत्पाद मूंज के बनाए जा सकते हैं, इसलिए यह थर्माकोल और प्लास्टिक का बेहतर विकल्प हो सकता है।

    ओडीओपी के तहत मिलता है यह अनुदान

    -25 लाख तक की परियोजना लागत वाली इकाइयों के लिए लागत का करीब 25 फीसद अथवा अधिकतम 6.25 लाख या जो भी कम हो।

    -25 लाख से अधिक और 50 लाख की परियोजना लागत की इकाइयों के लिए 6.25 लाख अथवा परियोजना लागत का 20 फीसद जो भी अधिक हो।

    -50 लाख से अधिक एवं 150 लाख तक की कुल परियोजना लागत की इकाइयों के लिए 10 लाख अथवा 10 फीसद जो भी अधिक हो।

    चयन प्रक्रिया के लिए कमेटी

    -लाभार्थियों का चयन कमेटी करेगी। इसके अध्यक्ष डीएम और सदस्य सचिव उपायुक्त उद्योग, जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र होंगे।  अग्रणी बैंक के जिला प्रबंधक, वित्त पोषण करने वाले प्रमुख बैंकों के जिला समन्वयक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष अथवा उनके प्रतिनिधि, जिले के चयनित उत्पाद से संबंधित विभागीय अधिकारी सदस्य होंगे।

    -लाभार्थियों का चयन साक्षात्कार के जरिए होगा। ऋण स्वीकृत होने के बाद नए लाभार्थियों को एक सप्ताह का प्रशिक्षण राजकीय पॉलीटेक्निक, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, उद्यमिता विकास संस्थान आदि के जरिए दिया जाएगा।

    22 हस्त शिल्पियों को 11 लाख का ऋण

    उपायुक्त उद्योग अजय कुमार चौरसिया ने बताया कि महेवा, डांडी व तिगनौता के 22 हस्त शिल्पियों को 11 लाख रुपये ऋण दिया गया है इसमें 2.75 लाख रुपये का अनुदान है। उद्योग निदेशालय द्वारा नोटीफाइड मेलों, प्रदर्शनियों में भाग लेने पर 150 हस्त शल्पियों को दस-दस हजार रुपये माल भाड़े के रूप में अनुदान दिया गया है। सौ हस्त शिल्पियों को प्रशिक्षण भी दिया गया। इन्हें निश्शुल्क टूल किट भी प्रदान किया जाएगा।