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    National Sports Day 2022: मेजर ध्‍यानचंद के शहर प्रयागराज में हाकी प्रतिभाएं, जिनसे है उम्‍मीद

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 29 Aug 2022 02:53 PM (IST)

    National Sports Day 2022 सुनहरे अतीत और भविष्य की उम्मीद के बीच मेजर ध्यानचंद यानी द्ददा की जन्मभूमि पर फिर से हाकी की नई पौध तैयार हो रही है। संगम नग ...और पढ़ें

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    National Sports Day 2022 प्रयागराज में ऐसी प्रतिभाएं हैं, जो जिले का नाम रोशन कर रही हैं।

    प्रयागराज, [अमरीश मनीष शुक्ल]। आज सोमवार यानी 29 अगस्‍त को हाकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की 116 वीं जन्मतिथि है। 1905 में उनका जन्म हुआ था। दद्दा के नाम से प्रसिद्ध ध्‍यानचंद का बचपन प्रयागराज में बीता था। से मिलने वाले, उन्हें जानने वाले व करीबी भी अब ठीक-ठीक उनका जन्म स्थान नहीं बता पाते हैं। उनके नाम से यहां एक मूर्ति भी नहीं है। वर्षों से प्रयागवासी दद्दा की मूर्ति, चौराहे का नाम और स्टेडियम बनाने की मांग कर रहे हैं। फिलहाल उनके जन्मदिन पर पूरे प्रयागराज शहर में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कर उन्हें विशेष तौर पर याद किया जा रहा है।

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    तैयार हो रही हाकी की नई पौध : सुनहरे अतीत और भविष्य की उम्मीद के बीच मेजर ध्यानचंद यानी द्ददा की जन्मभूमि पर फिर से हाकी की नई पौध तैयार हो रही है। संगम नगरी के कई युवा देश-विदेश में अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर रहे हैं। खेल दिवस पर ऐसी ही नई पौध व उनके गुरुओं से जागरण ने बातचीत की।

    हारिस खान जूनियर नेशनल के मेडलिस्‍ट रहे हैं : प्रयागराज शहर के रहने वाले हारिस खान खेलो इंडिया यूथ गेंम व जूनियर नेशनल 2022 में मेडलिस्ट रहे। अब वह स्पोर्ट्स कालेज लखनऊ में प्रैक्टिस कर रहे हैं। इसी वर्ष सब जूनियर में नेशनल मेडलिस्ट रही शहर की प्रीति पटेल स्थानीय खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हैं और अब वह गोरखपुर में प्रैक्टिस कर रही हैं।

    इन खिलाड़ियों ने बनाई पहचान : आल इंडिया केडी सिंह बाबू अंडर 14 हाकी टूर्नामेंट के मेडलिस्ट जैनुल आब्दीन खान इस समय यूपी टीम में है और इस समय शगुन स्पोर्ट्स एकेडमी में प्रशिक्षण ले रहे हैं। वहीं, इसी वर्ष जूनियर नेशनल मेडलिस्ट रही साक्षी शुक्ला साई हास्टल लखनऊ के लिए चयनित हुई हैं। इनका सफर जारी है और इनकी प्रतिभा को देखकर यह कहा जा रहा है कि जल्द ही राष्ट्रीय टीम में दस्तक देंगे।

    क्या कहते हैं कोच : साक्षी शुक्ला, जैनुल आब्दीन खान, प्रीति पटेल, हारिस खान को पहचान दिलाने वाले शगुन स्पोर्ट्स एकेडमी के कोच मो. जावेद बताते हैं कि हाकी संगम नगरी के खून में बसती है। द्ददा का जादू यहां के युवाओं में नैसर्गिक प्रतिभा उत्पन्न करता है। आने वाले समय में यह सभी राष्ट्रीय टीम के लिए भी दस्तक देंगे। हमारा पूरा प्रयास होता है कि जो भी हाकी सीखने के लिए आए उसकी तालामी में आर्थिक परेशानी कभी आड़े न आए। हम अपनी ओर से खिलाड़ियों को हर संभव मदद करते हैं।

    सुजीत कुमार और दानिश मुजतबा ओलंपिक में खेल चुके हैं : बीते कुछ वर्षों में यहां से सुजीत कुमार और दानिश मुजतबा ओलंपिक में खेला। जूनियर वर्ल्ड कप में आमिर खान, इमरान खान, जहीरुद्दीन, एसए आब्दी शामिल रहे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनील कुमार, आतिश इदरीश, मनोज गुप्ता आदि ने अपनी पहचान बनाई। हाकी में प्रयागराज के शानदार अतीत रहा है और भविष्य भी बहुत सुनहरा है। आने वाले समय में प्रयागराज के कई खिलाड़ी भारतीय टीम में खेलते हुए दिखाई पड़ेंगे।

    प्रयागराज के हाकी खिलाड़ी : सीनियर यूपी टीम में शरद कुमार,अभय कुमार, मो. सैफ, इमरान खान, तनवीर, हसन खान, हैदर अली, विजय कुमार व जूनियर टीम में दीपू यादव, अली खान, शिवम त्रिपाठी, इरफान, फैजल, शब्बाज खान शामिल हैं। कैग टीम में शहर के शाहिद, सिद्धार्थ शंकर, इमरान सीनियर, इमरान जूनियर, दीपक यादव, मनीष कुमार, अभिषेक सिंह और चंदन शामिल हैं।

    मेजर ध्‍यानचंद के बारे में जानें : मेजर ध्‍यानचंद का बचपन प्रयागराज में लोकनाथ की गलियों में बीता था। कक्षा छह तक की पढ़ाई उन्होंने यहीं पर की। कुछ पुरानी खिलाड़ी बताते हैं कि उनका घर भारती भवन के पास था। किराए के मकान में ही वह रहते थे। उनके पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार थे और हाकी खिलाड़ी थे। शुरूआत में दद्दा को पहलवानी खूब पसंद आती थी। बाद में पिता के नक्शेकदम पर आगे बढ़े और हाकी खेलने लगे। अब खेल रत्न पुरस्कार मेजर ध्यानचंद के नाम से ही दिया जाता है।

    185 मैच खेले और 570 गोल किए : 1926-1949 तक 185 मैच खेले और 570 गोल किए हैं। सेंटर फारवर्ड में वे सिद्धहस्‍त थे। 1928 में वह भारतीय हाकी टीम के साथ ओलंपिक पहुंचे और पहले ही मैच में 14 गोल दागे। 1932 में लास एंजिल्स और 1936 बर्लिन में भी उन्होंने भारत का स्वर्ण दिलाया। 1928-1964 तक उन्होंने देश के लिए 8 में से सात स्वर्ण पदक दिलए। उनका निधन 3 दिसंबर 1979 को हुआ। उनकी याद में लंदन के एक मेट्रो स्टेशन का नामकरण हुआ है।