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    बीए पास नहीं कर सके थे मोतीलाल नेहरू पर Allahabad Highcourt में वकालत की परीक्षा मेें रहे थे अव्वल

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Sat, 06 Feb 2021 06:00 AM (IST)

    मोतीलाल नेहरू की जीवनी दिलचस्प घटनाओं से भरा है। शुरूआती दौर में पश्चिमी रहन-सहन से प्रभावित नेहरू बीए की अंतिम परीक्षा पास नहीं कर पाए थे। पहला पेपर देने पर उन्हें लगा कि उत्तीर्ण होना मुश्किल है। ऐसे में फेल होने के भय से उन्होंने आगे के पेपर नहीं दिए।

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने सबको चौंका दिया था।

    प्रयागराज, जेएनएन। मोतीलाल नेहरू की जीवनी दिलचस्प घटनाओं से भरी है। शुरूआती दौर में पश्चिमी रहन-सहन से प्रभावित नेहरू बीए की अंतिम परीक्षा पास नहीं कर पाए थे। पहला पेपर देने पर उन्हें लगा कि परीक्षा में उत्तीर्ण होना मुश्किल है। ऐसे में फेल होने के भय से उन्होंने आगे के पेपर नहीं दिए। हालांकि मोतीलाल कुशाग्र बुद्धि के थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत की परीक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। कैंब्रिज से उन्होंने बार ऐट लाट की उपाधि ली थी। वे देश के प्रमुख वकीलों में शुमार हो गए थे। आज छह फरवरी को पुण्यतिथि पर प्रयागराज में भी उन्हें याद किया जा रहा है। 

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    म्योर केंद्रीय महाविद्यालय से दी परीक्षा
    इतिहासकार प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि मोतीलाल नेहरू की प्रारंभिक शिक्षा कानपुर और बाद में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुई थी। प्रयागराज के म्योर केंद्रीय महाविद्यालय से उन्होंने 1880-81 में बीए की परीक्षा दी थी। तब इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना नहीं हुई थी। बीए की परीक्षा में पहला पेपर उनका ठीक नहीं हुआ था। ऐसे में उन्होंने आगे की परीक्षा छोड़ दी थी। हालांकि उनका वह पेपर ठीक हुआ था। पेपर छोड़ने पर उस समय के शिक्षक ने मोतीलाल को बुलाकर डांट लगाई थी कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। मोतीलाल कालेज के दिनों में अपनी पढ़ाई लिखाई पर बहुत ध्यान नहीं देते थे। अपने मजाकिया स्वभाव एवं खेलकूद के लिए वह अपने साथियों के बीच लोकप्रिय थे। प्रारंभ में उन्होंने अरबी और फारसी की शिक्षा भी प्राप्त की थी। म्योर केंद्रीय महाविद्यालय से पढ़ाई छूटने पर वह कैंब्रिज चले गए। यहां से उन्होंने बार ऐट लॉट की उपाधि प्राप्त की। उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने अधिवक्ता के रूप में कार्य शुरू किया।


    इलाहाबाद हाईकोर्ट में मिला था स्वर्ण पदक
    प्रो.पाल बताते हैं कि मोतीलाल में ज्ञान और विद्वता की कमी नहीं थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने सबको चौंका दिया था। तब उन्हें एक स्वर्ण पदक भी मिला था। मोतीलाल अपने बड़े भाई नंदलाल से बहुत प्रभावित रहते थे। नंदलाल कानपुर के बड़े वकील थे। ऐसे में मोतीलाल की रुचि शुरू से ही वकालत में थी। मोतीलाल ने वकालत बड़े भाई नंदलाल के सहायक के रूप में की थी। उन्होंने वकालत में बहुत मेहनत की थी। समय के साथ वे कानपुर के नामी वकीलों में शामिल हो गए थे। उन्होंने तीन वर्ष तक कानपुर की जिला अदालत में वकालत की थी। उसके बाद वे इलाहाबाद हाईकोर्ट आकर वकालत करने लगे थे। यहां भी वे जल्द ही काफी प्रसिद्ध हो गए थे। 1909 में प्रिवी कौंसिल, ग्रेट ब्रिटेन में मोतीलाल ने अपनी योग्यता प्रदर्शित की थी। 1916 के बाद वकालत छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद गए थे।