Major Dhyan Chand के नाम पर राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान की घोषणा से झूम उठा दद्दा का अपना शहर
संगम नगरी मेजर ध्यानचंद की जन्मस्थली रही है। पुराने शहर लोकनाथ की गलियों में उनका बचपन बीता है। कक्षा छह तक की पढ़ाई भी उन्होंने यहीं पर की। उसके बाद परिवार के साथ झांसी चले गए। प्रयागराज के व्यापारी नेता ने बताया कि ध्यानचंद पहले कुश्ती में रुचि रखते थे।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान के नाम से जाना जाएगा। इसकी मुहर लगने से वैसे तो पूरे देश में हर्ष का माहौल है। वहीं प्रयागराज में उत्साह कुछ अधिक ही है। ऐसा इसलिए कि संगम नगरी हाकी के इस जादूगर की जन्मस्थली रही है। यहीं उनका जन्म हुआ था। यहां के खिलाडिय़ों के साथ आम जन में भी उत्साह है। हाकी के खिलाड़ी तो फूले नहीं समा रहे हैं। बोल पड़े यह हाकी ही नहीं, दद्दा के शहर का भी सम्मान है। आज हम सब का मान बढ़ गया। प्रत्येक खिलाड़ी गौरवान्वित महसूस कर रहा है। ध्यानचंद को दद्दा के नाम से भी जाना जाता है।
मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय
जन्म- इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 29 अगस्त 1905 में हुआ था।
मृत्यु- 3 दिसंबर 1979 में दिल्ली में हुई थी।
खेलने का स्थान- फारवर्ड।
ये सम्मान मेजर ध्यानचंद के नाम हैं
ध्यानचंद को 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं। यहां एक बात और जानने योग्य यह है कि भारतीय ओलिंपिक सघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।
लोकनाथ में दद्दा का बीता था बचपन
संगम नगरी मेजर ध्यानचंद की जन्मस्थली रही है। पुराने शहर लोकनाथ की गलियों में उनका बचपन बीता है। कक्षा छह तक की पढ़ाई भी उन्होंने यहीं पर की। उसके बाद परिवार के साथ झांसी चले गए। अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महामंत्री आनंद टंडन उर्फ पप्पन ने बताया कि उनके पिता विश्वनाथ टंडन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वह बताते थे कि भारती भवन के पास एक मकान में ध्यानचंद का परिवार किराए पर रहता था। ध्यानचंद के पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार थे और हाकी भी खेलते थे। उनके बेटे रूप सिंह और मूल सिंह भी साथ रहते थे। वह भी हाकी में रुचि रखते थे। हालांकि समेश्वर सिंह के तबादले के बाद सभी लोग झांसी चले गए।
ध्यानचंद को पहले कुश्ती में थी रुचि : पप्पन
आनंद टंडन कहते हैं कि उनके पिता बताते थे कि ध्यान चंद पहले कुश्ती में रुचि रखते थे। इसकी वजह यह कि लोकनाथ का इलाका शुरू से देसी रहन-सहन और खानपान के लिए जाना जाता था। यहां कई व्यायामशालाएं भी हुआ करती थीं। उनमें प्राय: प्रतियोगिताएं होती थीं। ध्यानचंद भी उसमें खूब रुचि लेते थे। झांसी जाने के बाद उनका रुझान हाकी की ओर हो गया।
पूर्व राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी श्याम बाबू बोले- भारत सरकार का सराहनीय कदम
पूर्व राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी श्याम बाबू गुप्त कहते हैं कि भारत सरकार ने बहुत ही सराहनीय कदम उठाया है। इसकी मांग बहुत पहले से की जा रही थी। मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान जब किसी खिलाड़ी को मिलेगा तो उसे अलग अनुभूति होगी।
यह पुरस्कार प्रयागराज के लिए खास मायने : पूर्व राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी राम बाबू
पूर्व राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी राम बाबू गुप्त ने कहा कि हाकी खिलाड़ी ही नहीं, दद्दा के शहर का होने नाते भी आज मैं बहुत खुश हूं। भारत सरकार ने सभी खिलाडिय़ों का दिल जीत लिया है। अब यह पुरस्कार प्रयागराज के लोगों के लिए भी खास मायने रखेगा।
आरएसो ने कहा- भारत सरकार का रिटर्न गिफ्ट
आरएसओ अनिल तिवारी ने कहा कि भारतीय टीम ने ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। भारत सरकार ने खिलाडिय़ों को दिए जाने वाले सब से बड़े पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान रखकर रिटर्न गिफ्ट दिया है। हम सब खुश हैं।
शहर व खिलाडि़यों का बढ़ा मान : पूर्व राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी
पूर्व राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव बोले कि शहर का और सभी खिलाडिय़ों का मान बढ़ा है। हम सब लंबे समय से चाहते थे कि दद्दा के नाम पर खेल का सब से बड़ा पुरस्कार मिले। आज वह मंशा पूरी हो गई। यह पुरस्कार बेहतर करने की प्रेरणा देगा।
भाजपाई बोले- प्रयागराज का गौरव बढ़ा
भाजपा काशी क्षेत्र के उपाध्यक्ष अवधेश चंद्र गुप्ता ने अपने निवास पर बैठक कर प्रधानमंत्री के निर्णय को सराहा। कहा कि मेजर ध्यानचंद के नाम पर पुरस्कार की घोषणा से संगमनगरी गौरवान्वित हुई है। भाजपा महानगर अध्यक्ष गणेश केसरवानी ने भी प्रधानमंत्री की घोषणा की सराहना की। इस मौके पर मनीष सिंह, केशव शर्मा, शिवबाबू मोदनवाल, वैभव श्रीवास्तव, विश्वास श्रीवास्तव, विशाल अग्रवाल आदि मौजूद रहे।
ओलिंपिक खेल और मेजर ध्यानचंद
वर्ष 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक खेलों में भारतीय टीम पहली बार शामिल हुई थी। एम्सटर्डम में खेलने से पूर्व इस टीम ने इंग्लैंड में 11 मैच खेले। इसमें ध्यानचंद हीरो रहे। वहीं एम्स्टर्डम में भारतीय टीम ने पहले सभी मुकाबले जीते। आस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क ओर स्विटजरलैंड के बाद फाइनल में हालैंड को पराजित करके विश्व चैंपियन बनी। फाइनल में ध्यानचंद ने 2 गोल किए। इसके बाद 1932 में लास एंजिल्स के ओलिंपिक में भी ध्यानचंद शामिल थे। सेंटर फारवर्ड में वे सिद्धहस्त थे। उस समय सेना में वे नायक हो गए थे। निर्णायक मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। इसके बाद 1936 में बर्लिन के ओलिंपिक में भी ध्यानचंद ने बतौर हाकी टीम कप्तान जलवा दिखाया। पहले मुकाबले में भारत ने हंगरी को पराजित किया। फिर जापान और फ्रांस को हराया। फाइनल मुकाबले में जर्मनी को हराया।
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