Pandit Madan Mohan Malaviya Death Anniversary: महामना ने छेड़ी थी हिंदी को राजभाषा बनाने की मुहिम
कविता नाटक लेखन व मंचन में भी रुचि जस्टिस गिरिधर मालवीय के अनुसार महामना को कविता लेखन का भी शौक था। उनकी कविताएं हिंदी प्रदीप में छपा करती थीं। नाटक लेखन और अभिनय में भी खास रूचि थी।
गुरुदीप त्रिपाठी, प्रयागराज। ब्रिटिश हुकूमत में जब अंग्रेजी और फारसी का बोलबाला था, तब पंडित महामना मदन मोहन मालवीय ने संगमनगरी से हिंदी को राजभाषा बनाने की मुहिम शुरू की थी। इस क्रम में उनकी लिखी गई एक पुस्तक ने कमाल कर दिया और 18 जनवरी, 1900 से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे देवनागरी लिपि का दर्जा दे दिया। आजादी के पहले हिंदी, कम पढ़े लिखों की भाषा मानी जाती थी। शिक्षित भारतीयों का एक समूह भी इसके प्रयोग से बचता था।
ऐसे माहौल में हिंदी के लिए पंडित महामना मदन मोहन मालवीय और राजा शिवप्रसाद सितारे हिंदी आगे आए। आलोचकों को जवाब भी दिया। मालवीय जी ने ‘कोर्ट करैक्टर एंड प्राइमरी एजुकेशन’ नामक पुस्तक लिखी। इसमें हिंदी के विरोध में उठने वाले सवालों का जवाब था। तत्कालीन हुकूमत के समक्ष इसे दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत किया।
महामना की 12 नवंबर, 1946 को बैकुंठवासी हुए थे। उनके पौत्र जस्टिस गिरिधर मालवीय बताते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में सरकारी कार्यो में लिखने की भाषा फारसी और अंग्रेजी थी, जबकि बोलचाल की भाषा उर्दू और हिंदी थी। जब दस्तावेज लेखन की भाषा हिंदी करने की बात उठी तो सर सैयद अहमद खान समेत तमाम लोगों ने विरोध जताया। कहा हिंदी लेखन में अधिक समय लगता है और फारसी में कम। मालवीय जी ने इसका विरोध किया। विवाद बढ़ा तो तत्कालीन गर्वनर ने विद्वानों को हिंदी और फारसी एक साथ लिखवाने का निर्देश दिया, जिससे इस बात की जांच हो सके कि किसमें अधिक समय लगता है।
लेखन से स्पष्ट हुआ कि हिंदी में कम समय लगता है और यह सुविधाजनक भी है। फिर सन 1900 में तय किया गया कि अब सरकारी लेखन की भाषा देवनागरी लिपि (हिंदी) भी होगी। यह निर्देश भी जारी किया गया कि जिन सरकारी कर्मचारियों को हिंदी लेखन का ज्ञान न हो वह एक वर्ष में सीख लें। नाटक जेंटलमैन का मंचन वह प्राय: करते थे। इसके जरिए अंग्रेजों पर कटाक्ष किया जाता था।
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