प्रयागराज में Liyaqat Ali पर चला था मुकदमा, जानिए अंग्रेजों ने उन्हें कहां पकड़ा था और क्या मिली थी सजा
मौलवी लियाकत अली मुंबई में नाम बदलकर रह रहे थे। उनके पास से महत्वपूर्ण कागजात तथा कनस्तर में रखे दो हजार रुपये और सोने के टुकड़े मिले थे। उन पर प्रयागराज में मुकदमा चलाया गया। 1873 में उन्हें कालेपानी की सजा दी गई।

प्रयागराज, जेएनएन। 1857 के गदर के बाद मौलवी लियाकत अली ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एक किया था। अंग्रेजों के खिलाफ आमजन को जागरूक किया था। उन्होंने प्रयागराज के खुल्दाबाद सराय में एकत्रित बागी सैनिकों का नेतृत्व भी किया था। लियाकत अली ने कानपुर में अंग्रेजों के नरसंहार को अपनी आंखों से देखा था। नाना साहब की सेनाओं की पराजय के बाद वे भोपाल, गुजरात तथा अन्य स्थानों में मुख्य रूप से रहे थे। अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने पर लियाकत अली पर प्रयागराज में मुकदमा चला था। उन्हें कालेपानी की सजा दी गई थी।
पांच हजार का इनाम था घोषित
इतिहासकार प्रो.विमल चंद्र शुक्ला बताते हैं कि 16 जून 1857 तक इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया था। ऐसे में लियाकत अली अपने भरोसे पर सौ घुड़सवार सैनिकों तथा जमादार युसुफ खां के साथ कानपुर नाना साहब के पास चले गए थे। उन्होंने नाना साहब को प्रयागराज में कर्नल नील द्वारा किए गए अत्याचार की जानकारी दी। साथ ही अंग्रेजी सेनाओं को फतेहपुर में ही रोकने की सलाह दी। प्रयागराज में सैनिक प्रशासन ने मौलवी लियाकत अली को जिंदा या मुर्दा पकडऩे पर पांच हजार रुपये का इनाम घोषित किया था। इसके लिए सारे शहर में इश्तहार लगाए गए थे। अंग्रेजों ने मौलवी के मंहगांव स्थित घर को शस्त्रागार होने के संदेह में खुदवा डाला था।
मुंबई में पकड़े गए थे लियाकत अली
प्रो.शुक्ल बताते हैं कि मौलवी लियाकत अली ने नाना साहब के निर्देश पर फतेहपुर कानपुर मार्ग पर स्थित औंग गांव के पास जनरल हैवलाक को रोकने का प्रयास किया था। नाना साहब की सेनाओं की पराजय के बाद वे भोपाल, गुजरात, तथा अन्य स्थानों में मुख्य रूप से रहे थे। उन्हें गुजरात में एक बार विश्वासघात करके पकड़वाने का प्रयास भी किया गया था। विमल चंद बताते हैं कि राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली में सुरक्षित गृह विभाग की पत्रावलियों से पता चला कि उन्हें 1871 में मुंबई से पकड़ा गया था। उस समय वे मुंबई में नाम बदलकर रह रहे थे। उनके पास से महत्वपूर्ण कागजात तथा कनस्तर में रखे दो हजार रुपये और सोने के टुकड़े मिले थे। उन पर प्रयागराज में मुकदमा चलाया गया। 1873 में उन्हें कालेपानी की सजा दी गई। उनका एक वास्तविक चित्र पाकिस्तान के पेशावर के संग्रहालय में है। कपड़े इलाहाबाद संग्रहालय में रखे हैं। यह कपड़े लियाकत अली के वंशजों ने जवाहर लाल नेहरू को दिए थे।
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