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    Kada Dham Kaushambi जहां गिरा था मां सती का दाहिना कर, 51 शक्तिपीठों में शामिल है मां शीतला धाम

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Sat, 06 Feb 2021 04:20 PM (IST)

    इक्यावन शक्तिपीठों में से एक मां शीतलाधाम में हर वर्ष आषाढ़ सावन महीने की सप्तमी-अष्टमी को विशेष मेला लगता है। सात दिवसीय इस मेले में पूर्वाचल के सभी जिलों के अलावा देश के विभिन्न प्रान्तों से श्रद्धालु मां के दर्शन पूजन के लिए आते हैं।

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    कराकोटम जंगल में जिस स्थान पर सती का दाहिना कर गिरा उस स्थान का नाम करा रख दिया गया

    प्रयागराज, जेएनएन। कौशांबी जनपद में सिराथू तहसील स्थित कड़ा धाम शीतला माता का मंदिर प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। इक्यावन शक्तिपीठों में से एक मां शीतलाधाम में हर वर्ष आषाढ़ सावन महीने की सप्तमी-अष्टमी को विशेष मेला लगता है। सात दिवसीय इस मेले में पूर्वाचल के सभी जिलों के अलावा देश के विभिन्न प्रान्तों से श्रद्धालु मां के दर्शन पूजन के लिए आते हैं। इसके अलावा हर साल यहां लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिये आते हैं। शक्तिपीठ मां शीतला देवी को पुत्र देने वाली देवी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त मंदिर के शीतल कुंड को जल, दूध, फल व मेवे से भरवाता है उसे मनोवांछित फल मिलता है। नवरात्र के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

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    कराकोटम जंगल में गिरा था मां सती का कर

    सैंकड़ों साल से शीतला धाम कड़ापीठ शक्ति उपासकों का केंद्र रहा है। स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान शिव की भार्या सती ने जब अपने पिता दक्ष के अपमान को सहन न कर पाने की स्थिति में यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राण त्याग दिया तो उनके वियोग से आक्रोशित भगवान शिव सती का शव लेकर सभी लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोधित रूप को देखकर तीनों लोकों में हलचल मच गई। देव मनुष्य सभी प्राणी भयभीत हो गए। तब शिव के क्रोध से बचने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। सती के शव के ये टुकड़े जहां भी गिरे वहीं एक शक्तिपीठ स्थापित कर दिया गया। कराकोटम जंगल में जिस स्थान पर सती का दाहिना कर गिरा उस स्थान का नाम करा रख दिया गया जो बाद में अपभ्रंश होकर कड़ा हो गया। अब इसे कड़ा धाम के नाम से पूरे देश में जाना जाता है।

    कृष्णपक्ष के अष्टमी में पूजन का महत्व

    माना जाता है कि द्वापर युग में पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर अपने वनवास समय में कड़ा धाम देवी दर्शन के लिए आए। यहां उन्होंने गंगा के किनारे महाकालेश्वर शिवलिंग की स्थापना नागा आश्रम में की। वर्तमान में विराजमान माता शीतला देवी का मंदिर भव्य स्वरूप ले चुका है। मंदिर में स्थित शीतला देवी की मूर्ति गर्दभ पर बैठी हुई है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र माह में कृष्णपक्ष के अष्टमी पर यदि देवी शीतला की पूजा की जाए तो बुरी शक्तियों से पीछा छुटाया जा सकता है। कड़ा धाम के पुजारी लल्लू बाबा पंडा का कहना है की शक्ति पीठ में आरती तीन वक्त की जाती है। माता की दोपहर की आरती के वक्त बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। कड़ा धाम के प्रमोद पुजारी का कहना है कि देश में शक्ति पीठ कड़ा धाम विख्यात है। माता शीतला काल रात्रि के नाम से भी जानी जाती है। यहां लोग अपने बच्चों का मुंडन सस्कार कराने के लिये दूर दूर से आते है। कुंड के सामने खड़े होकर विनती कर मन इच्छा फल पाते है।

     

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