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    नैनी जेल से जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा को लिखे थे 196 पत्र, विश्व इतिहास के बारे में लिखी थी पुस्‍तक Prayagraj News

    By Rajneesh MishraEdited By:
    Updated: Sun, 17 Jan 2021 11:54 AM (IST)

    प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि जवाहर लाल नेहरू ने नैनी जेल में 1930 में विश्व इतिहास की झलक पुस्तक लिखी थी। इस किताब में 196 पत्र हैं। यह पत्र उन्ह ...और पढ़ें

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    जवाहर लाल नेहरू ने नैनी जेल में 1930 में विश्व इतिहास की झलक पुस्तक लिखी थी।

     
    प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज का नैनी जेल ऐतिहासिक घटनाओं से भरा है। आजादी के आंदोलन में शामिल सैकड़ों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इस जेल में रखा गया था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस जेल के पहले राजनीतिक बंदी थे। वह छह महीनें इस जेल में रहे थे। नेहरू ने जेल से अपनी बेटी इंदिरा को विश्व इतिहास का संदर्भ लेते हुए 196 पत्र लिखे थे। प्रयागराज में यमुनापार नैनी में यह जेल स्थित है। अंग्रेजों ने इस जेल का निर्माण कराया था। यह जेल 1889 में बना था। तब इस जेल में तीन हजार कैदियों की रखने की क्षमता थी। इस जेल को कैदखाना भी कहा जाता था। इस जेल में नामचीन राजनीतिक नेताओं को बंद किया जा चुका है।
    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि नैनी केंद्रीय जेल आजादी की लड़ाई का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।  नेहरू को 14 अप्रैल 1930 को इस जेल में लाया गया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू को 14 अप्रैल, 1930 को बंदी बना लिया गया। उन्हें छह माह की जेल हुई थी। जेल में वे 175 दिन तक रहे थे। 11 अक्टूबर 1930 को जेल से नेहरू रिहा किए गए थे।  

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    जेल में नेहरू ने लिखी थी विश्व इतिहास की झलक
    प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि जवाहर लाल नेहरू ने नैनी जेल में 1930 में विश्व इतिहास की झलक पुस्तक लिखी थी। इस किताब में 196 पत्र हैं। यह पत्र उन्होंने अपनी बेटी को लिखे हैं। पत्र में विश्व इतिहास का संदर्भ है। नेहरू को डिस्कवरी ऑफ इंडिया पुस्तक लिखने का विचार भी नैनी जेल से आया था। इस पर काम उन्होंने यहीं से शुरू किया था। हालांकि इस किताब को लिखने से पहले ही नेहरू जेल से रिहा हो गए थे। नेहरू फिर काफी दिन बाद अप्रैल से सितंबर 1944 में डिस्कवरी आफ इंडिया अहमद नगर किले के जेल में लिखी थी। जेल में बंद अपने साथियों से परामर्श के बाद पांच माह में उन्होंने यह पुस्तक लिखी थी।