Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    International Poverty Eradication day: उन महिलाओं का किस्सा जिन्होंने सब्जियां उगाकर गरीबी को दी मात

    प्रतापगढ़ में महिलाओं ने सब्जियों और फूल की खेती से आधी आबादी को तरक्की की राह दिखाई हैं। जैविक खाद के सहारे उगाई जा रही सब्जियां घर-घर पहुंच रही है। परिवार को हरी-ताजी सब्जियां मिल रही हैं बल्कि बाजार में बिक्री करके उनसे अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है।

    By Ankur TripathiEdited By: Updated: Mon, 17 Oct 2022 06:20 AM (IST)
    Hero Image
    प्रतापगढ़ में महिलाएं सब्जियां और फूल की खेती से आधी आबादी को तरक्की की राह दिखाई हैं।

    प्रयागराज, जेएनएन। गांव की गरीब महिलाएं जो साल भर पहले मेहनत मजदूरी करके परिवार का खर्च चलाती थीं। जंगल में लकड़ी ताेड़कर उसकी बिक्री करती थीं। यह सभी महिलाएं जब स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं तो गजब का बदलाव हुआ। खुद आत्मनिर्भर बनीं, अब दूसरों को भी स्वावलंबी बना रही हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्रतापगढ़ में कुछ इस तरह की महिलाएं सब्जियां और फूल की खेती से आधी आबादी को तरक्की की राह दिखाई हैं। जैविक खाद के सहारे उगाई जा रही सब्जियां घर-घर पहुंच रही है। पूरे परिवार को हरी-ताजी सब्जियां मिल रही हैं, बल्कि बाजार में बिक्री करके उनसे अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है।

    सब्जी वाली दीदी से बनी पहचान

    प्रतापगढ़ के मानधाता ब्लाक के गाैरा की हैं आरती मौर्य। आरती गरीब परिवार से थीं। दिसंबर 2019 को स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं। कम पैसे में जैविक सब्जियाें की खेती करने लगीं। यह तीन बीघे में गोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च आदि की खेती कर रही हैं। गांव की अर्चना, निशा भी सब्जी उगाकर अच्छी आय कर रही हैं।

    मानधाता, कटरा गुलाबसिंह समेत बाजारों में इसकी बिक्री होती है। सबसे खास बात यह है कि आरती समेत को स्वयं सब्जी लेकर बाजार नहीं जाना होता है। सब्जी कारोबारी स्वयं खेत से सब्जी ले जाते हैं। हर माह हजारों की आमदनी हो रही है। अब तो सब्जी वाली दीदी के नाम से इनकी पहचान बन चुकी है।

    फूलों की खेती से महक रहा जीवन

    गौरा के पटहटियाकला की समूह की अध्यक्ष रंजना पुष्पजीवी फूलों की खेती हो रही है। गेंदा, गुलाब आदि फूल की खेती के अलावा उसका माला भी तैयार किया जा रहा है। रीना, रंजना समेत महिलाओं की आर्थिक प्रगति का सहारा बनी हुई है। गांव की दर्जन महिलाओं को रोजगार भी मिला है। इनका हर कदम आगे बढ़ा रहा है।

    यूं तो गुलाब, गेंदा ,चमेली, गुड़हल सहित फूल की खेती रंजना कर रही हैं, लेकिन गेंदा का फूल तैयार न होने से माला बनाने के लिए फूल नैनी व वाराणसी से मंगाया जा रहा है। 20 से लेकर 50 रुपये तक माला का दाम है। हर रोज महिलाओं की 400 से 600 रुपये की आमदनी हो रही है। एनआरएलएम के ब्लाक मिशन प्रबंधक विपिन मिश्र ने बताया कि इन महिलाओं ने अपनी मेहनत के दम पर गरीबी को मात दी।

    अगरबत्ती के कारोबार से बदला जीवन

    गौरा क्षेत्र के कुछ गांवों में समूह की महिलाएं धूपबत्ती, अगरबत्ती, देवी देवताओं की मूर्तियां बनाने, मत्स्य पालन मुर्गी पालन का भी कारोबार कर रही हैं। इससे महिलाओं का जीवन बदल गया। समूह के खाते में आए सामुदायिक निवेश निधि व रिवाल्विंग फंड से समूह की महिलाओं ने यह कारोबार शुरू किया। आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए महिलाओं को मार्गदर्शन भी दिया जाता है।

    रिपोर्ट : प्रवीन कुमार यादव, राजेंद्र त्रिपाठी गौरा।