प्रयागराज के झूंसी इलाके में कभी थी अंधेर नगरी, यहां मौजूद है उल्टा किला
जनश्रुति है कि कभी यहां पर एक मूर्ख राजा हरिबोंग का शासन हुआ करता था। जिसकी मूर्खता की तमाम कहानियां प्रचलित हैं। उसका शासन काल काफी अराजक था जिसके चलते उसके नगर को अंधेर नगरी भी कहा जाता था। कहते हैं कि अत्याचार बढऩे पर वहां भूकंप सा आया।

प्रयागराज, जेएनएन। शहर से पूरब की ओर गंगा के दूसरी तरफ आबाद बस्ती को झूंसी के नाम से जाना जाता है। गंगा नदी पर बने शास्त्री पुल को पार करते ही दाहिनी ओर टीलों की श्रृंखला दिखाई देती है जिसके नीचे तमाम निर्माण दबे हुए हैं। इसको इस क्षेत्र के लोग उल्टा किला के नाम से पुकारते हैं। कहा जाता है कि यहीं पर प्राचीनकाल में प्रतिष्ठानपुर नगर था। चंद्रवंशीय राजाओं की राजधानी भी थी। झूंसी के नामकरण व उल्टे किले को लेकर कई जनश्रुतियां व किवदंतियां प्रचलित हैं।
एक समय यहां पर शासन करता था मूर्ख राजा हरिबोंग
जनश्रुति है कि कभी यहां पर एक मूर्ख राजा हरिबोंग का शासन हुआ करता था। जिसकी मूर्खता की तमाम कहानियां प्रचलित हैं। उसका शासन काल काफी अराजक था जिसके चलते उसके नगर को अंधेर नगरी भी कहा जाता था। कहते हैं कि अत्याचार बढऩे पर वहां भूकंप सा आया जिससे उसकी नगरी उलट गई जिसको आज उल्टा किला के रूप में जाना जाता है। अंधेर नगरी और चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा की कहावत हरिबोंग के राज से ही जुड़ी हुई है।
अपमान से नाराज दो संतों के श्राप से उलट गई अंधेर नगरी
दूसरी किवदंती के अनुसार एक बार गुरु गोरखनाथ और मत्स्येंद्र नाथ संगम में स्नान करने आए थे। राजा ने उनको सम्मान नहीं दिया। अपने अपमान में नाराज होकर दोनों ही संतों ने राजा को श्राप दे दिया। बताते हैं श्राप के प्रभाव के चलते राजा हरिबोंग की राजधानी पर वज्रपात हुआ और पूरी नगरी झुलस गई और उसका किला उलट गया। उसी को कालांतर में झूंसी कहा जाने लगा।
एक फकीर की बद्दुआ से नष्ट हो गई प्रतिष्ठानपुरी
एक अन्य मान्यता के अनुसार 1359 के आसपास मध्य एशिया से अली मुर्तजा नाम के एक फकीर यहां आए थे। गंगा के किनारे की बस्ती में अपना डेरा डाल दिया। पांच वक्त की नमाज पढ़ते ओर इबादत में लीन रहते। बताते हैं कि राजा हरिबोंग को यह फकीर फूटी आंख न सुहाते थे। उसनेे उनको एक बार राजदरबार में भोज पर आमंत्रित किया और खाने के लिए गलत पकवान दिए जिस पर फकीर नाराज हुए। बताते हैं कि उक्त पकवान को उन्होंने हाथ में लेकर आसमान की ओर उछाल दिया जो कई टुकड़ों में बंटकर हरिबोंग के किले पर गिरा और किले को झुलसा दिया। झुलसने से किला खंडहर में तब्दील हो गया। कालांतर में इसे उल्टा किला से संबोधित किया जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि 13-14वीं शताब्दी में विदेशी आक्रांताओं ने इस नगर पर आक्रमण कर जला दिया था जिसके चलते इसे झुलसी कहा जाने लगा जो बाद में झूंसी हो गया।
उल्टा किला के समीप खनन में मिले हैं प्राचीन सभ्यता के अवशेष
उल्टा किले में बने मंदिर और अन्य निर्माण की देखरेख महंत बिपिन बिहारी करते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के शोधकर्ता व पुरातत्वविदों की टीम ने यहां कई बार खुदाई की है जिसमें प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं, मिट्टी के बर्तन और मूर्तियां आदि भी पाई गई हैं। प्राचीन काल से इस स्थान का जुड़ाव पाया गया लेकिन इसके रखरखाव व विकास के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है।
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