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पुराणों में वर्णित है अक्षयवट का महातम्य, इसके दर्शन बिना पूरा नहीं माना जाता संगम में स्नान

प्रयागराज में यमुना तट पर अकबर के किले में अक्षयवट स्थित है। मुगलकाल से इसके दर्शन पर प्रतिबंध था। ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने के कारण तीर्थ यात्रियों के लिए इस वट वृद्ध का दर्शन दुर्लभ था।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 01:00 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 01:00 PM (IST)
पुराणों में वर्णित है अक्षयवट का महातम्य, इसके दर्शन बिना पूरा नहीं माना जाता संगम में स्नान
प्रयागराज स्थित अक्षयवट की पौराणिक और धार्मिक मान्यता है। दर्शन मात्र से मानव को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में स्थित अक्षयवट की पौराणिक और धार्मिक मान्यता है। कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से मानव को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इसी के चलते वर्तमान समय में अकबर के किले में स्थित इस वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करना यहां आने वाले तीर्थ यात्री नहीं भूलते हैं। अकबर के किले के सेना के अधिकार क्षेत्र में होने के चलते लोगों को इस वट के दर्शन नहीं हो पाते थे लेकिन वर्तमान समय में अक्षयवट का दर्शन सबके लिए सुलभ हो गया है।

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सृष्टि के विकास और प्रलय का साक्षी है अक्षयवट

तीर्थ पुरोहितों की संस्था प्रयागवाल महासभा के महामंत्री राजेंद्र पालीवाल का कहना है कि अक्षयवट को पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। यह सृष्टि के विकास और प्रलय का साक्षी रहा है। नाम से ही जाहिर है कि इसका कभी नाश नहीं होता है। इस वृक्ष को माता सीता ने आशीर्वाद दिया था कि प्रलय काल में जब धरती जलमग्न हो जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहेगा। एक मान्यता और भी है कि बालरूप में श्रीकृष्ण इसी वट वृक्ष पर विराजमान हुए थे। बाल मुकुंद रूप धारण करके श्रीहरि भी इसके पत्ते पर शयन करते हैं। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है।

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृतांत में किया है वर्णन

शालिग्राम श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक प्रयाग प्रदीप में जिक्र किया है कि चीनी यात्री ह्वेनसांग भी प्रयागराज में आया था। उसने अक्षयवट के बारे में लिखा है कि नगर में एक देव मंदिर स्थित है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वट वृक्ष है जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर दूर तक फैली हुई हैं। पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मुक्ति की इच्छा से तमाम श्रद्धालु इस वट की ऊंची डालों पर चढ़कर कूद जाते थे। जिसे मुगल शासकों ने खत्म कर दी। उन्होंने आम तीर्थ यात्रियों के लिए भी अक्षयवट के दर्शन को प्रतिबंधित कर दिया। कालांतर में अक्षयवट को क्षति पहुंचाने के विवरण भी मिलते हैं।

वाल्मीकि रामायण में मिलता है अक्षयवट का उल्लेख

ज्योतिर्विद आशुतोष वाष्र्णेय का कहना है कि अक्षयवट का पहला उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। उनके मुताबिक भारद्वाज मुनि ने श्रीराम से कहा था कि तुम दोनों भाई  गंगा-यमुना के संगम पर जाना और वहां से पार उतरने के लिए अच्छा घाट देखकर यमुना के पार उतर जाना जहां तुम्हें बहुत बड़ा वट वृक्ष मिलेगा। वह चारों तरफ से दूसरे वृक्षों से घिरा हुआ होगा। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। वहां पहुंचकर सीता को उस वटवृक्ष से आशीर्वाद की कामना करनी चाहिए। आशुतोष के अनुसार माता सीता ने अक्षयवट को आशीर्वाद दिया था कि संगम स्नान करने के बाद जो कोई अक्षयवट का पूजन और दर्शन करेगा, उसी को संगम स्नान का फल मिलेगा अन्यथा संगम स्नान निरर्थक हो जाएगा।

मोदी सरकार ने हटाया अक्षयवट से प्रतिबंध, सुलभ हुआ दर्शन

प्रयागराज में यमुना तट पर अकबर के किले में अक्षयवट स्थित है। मुगलकाल से इसके दर्शन पर प्रतिबंध था। ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने के कारण तीर्थ यात्रियों के लिए इस वट वृद्ध का दर्शन दुर्लभ था। किले में पीछे की ओर पातालपुरी मंदिर में स्थित एक वटवृक्ष के दर्शन करके लोग वापस लौट जाते थे। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में अक्षयवट का दर्शन व पूजन सभी के लिए सुलभ करने का फैसला किया जिसके बाद लोग किले में स्थित अक्षयवट का दर्शन पाने लगे। हालांकि अक्षयवट के दर्शन के लिए समय निर्धारित कर दिया गया है।


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