Death anniversary of Firaq Gorakhpuri : आखिर रघुपति सहाय को कैसे मिला फिराक उपनाम, पढ़िए और जानिए पूरा किस्सा
साहित्यकार रविनंदन सिंह बताते हैं कि फिराक से पहले स्वदेश में गजलें नहीं छपती थीं किन्तु उनके आने के बाद उसमें गजलें भी छपने लगीं। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में स्वदेश के संपादकीय में उनकी पहली गजल छपी- जो जबानें बंद थीं आजाद हो जाने को हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। तीन मार्च को रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी की पुण्यतिथि पर साहित्य जगत हर वर्ष की तरह उन्हें याद करता है। उनके जीवन से जुड़ी से हर छोटी बड़ी घटना एक किस्से के रूप में हैं। उनका पूरा व्यक्तित्व लोगों को बहुत भाता था। उनकी शायरी और गजल सुनने को लोग बेचैन रहते थे। प्रेमचंद और रघुपति सहाय समकालीन थे। एक ही शहर गोरखपुर के रहने वाले थे। 1918 में बीए पास करने के समय उनका नाम रघुपति सहाय था। फिराक उपनाम उन्हें बहुत बाद में मिला।
1927 में स्वदेश के संपादक ने दिया 'फिराक उपनाम
साहित्यकार रविनंदन सिंह बताते हैं कि फिराक से पहले स्वदेश में गजलें नहीं छपती थीं किन्तु उनके आने के बाद उसमें गजलें भी छपने लगीं। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में स्वदेश के संपादकीय में उनकी पहली गजल छपी- 'जो जबानें बंद थीं आजाद हो जाने को हैं। इस संपादकीय के कारण फिराक 27 फरवरी 1921 को पहली बार गिरफ्तार हुए। 1924 में फिराक नेहरू के बुलावे पर दिल्ली पहुंचे और उनके निजी सचिव बन गए। उनके दिल्ली जाने के कुछ समय बाद पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र स्वदेश का संपादकीय काम देखने लगे किन्तु जब 'स्वदेश पर सरकार विरोधी होने का पुन आरोप लगा, 'उग्र भाग खड़े हुए और दशरथ प्रसाद द्विवेदी गिरफ्तार हो गए। 'उग्र के बाद रामनाथ लाल सुमन संपादक बने, जिन्होंने 'स्वदेश के होली अंक में (18 मार्च 1927) रघुपति सहाय की गजल के नीचे पहली बार 'फिराक उपनाम जोड़ दिया। यद्यपि यह उपनाम होली की मस्ती में जोड़ा गया था, किन्तु रघुपति सहाय को यह तखल्लुस अच्छा लगा। यहीं से वे 'फिराक बने। फिराक नाम से जो पहली गजल लिखी उसका मतलब है-
'न समझने की है बात न समझाने की।
जिंदगी उचटी हुई नींद है दीवाने की।।
'स्वदेश का संभाला था संपादकीय प्रभार
रविनंदन सिंह बताते हैं कि बाद में रघुपति सहाय को स्वदेश का संपादकीय प्रभार मिल गया था। तब उनके गद्य लेखन की तुलना समकालीन साहित्यकारों श्यामसुंदर दास, रामचन्द्र शुक्ल, प्रेमचंद आदि से होने लगी। उस संपादक दशरथ प्रसाद द्विवेदी अपने पत्र 'स्वदेश में एक तरफ बड़े साहित्यकारों के को छापते और उसके समानांतर रघुपति सहाय को जगह देते। जैसे एक अंक में आचार्य शुक्ल का निबंध क्षात्रधर्म का सौंदर्य छापा तो उसके समानांतर रघुपति सहाय का निबंध जय पराजय को जगह दी। इसी तरह प्रेमचंद और विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की कहानियों के बरक्स रघुपति की कहानियों को जगह दिया। उसी दौर में फिराक ने कई कहानियां भी लिखी।