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    जानिए आनंद भवन की यह दिलचस्प कहानी, जस्टिस महमूद से कैसे मिली मोतीलाल नेहरू को आनंद भवन की कुंजी

    By Rajneesh MishraEdited By:
    Updated: Wed, 17 Feb 2021 07:00 AM (IST)

    नगर निगम में मोतीलाल नेहरू से पहले इस भवन पर किसका मालिकाना हक था इसके दस्तावेज नहीं हैं। लेकिन जस्टिस महमूद के बाद यह भवन मुरादाबाद निवासी जज रायबहादुर कुंवर परमानंद पाठक के भी पास भी रहा था। मोती लाल नेहरू ने यह भवन इन्हीं से खरीदा था।

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    नगर निगम में मोतीलाल नेहरू से पहले आनंद भवन पर किसका मालिकाना हक था इसके दस्तावेज नहीं हैं।

    प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के आनंद भवन की कहानी दिलचस्प है। इस भवन के कई मालिक रहे हैं। इलाहाबाद के पहले नियमित जज सैयद महमूद भी यहां रहे चुके हैं। उनके पिता सर सैयद अहमद खां ने इस भवन को खरीदा था और इसका नाम महमूद मंजिल रखा था। हालांकि अंग्रेजों ने 1857 के गदर के बाद इस जगह को शेख फैयाज अली को बतौर इनाम सौंपा था। उसी स्थान पर बाद में स्वराज भवन एवं आनंद भवन बनाया गया। वैसे नगर निगम में मोतीलाल नेहरू से पहले इस भवन पर किसका मालिकाना हक था इसके दस्तावेज नहीं हैं। लेकिन जस्टिस महमूद के बाद  यह भवन मुरादाबाद निवासी जज रायबहादुर कुंवर परमानंद पाठक के भी पास भी रहा था। मोती लाल नेहरू ने यह भवन इन्हीं से खरीदा था।  

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    अंग्रेजों ने इनाम में दी थी शेख फैयाज अली को जमीन
    इतिहासकार जय प्रकाश यादव बताते हैं कि यह स्थान मोतीलाल नेहरू के खरीदे जाने से पहले ही महत्वपूर्ण था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खां के पास भी यह भवन काफी दिन रहा है। कन्हैयालाल नंदन की किताब के हवाले से वे बताते हैं कि अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह में उनकी सहायता करने वाले शेख फैयाज अली को इनाम के तौर पर यह जमीन सौंपी थी। इसी जमीन पर आनंद भवन एवं स्वराज भवन बना हुआ है। हालांकि अंग्रेजों से मिली इस जमीन पर बने भवन के कई मालिक रहे हैं। मोतीलाल नेहरू  ने सात अगस्त 1899 को 20 हजार रुपये में इसे रहने को खरीदा था।  


    परमानंद पाठक से मोतीलाल नेहरू ने खरीदा था भवन
    इतिहासकार जय प्रकाश यादव बताते हैं कि मोतीलाल नेहरू ने इस भवन को मुरादाबाद के निवासी मुरादाबाद निवासी और शाहजहांपुर में जज रायबहादुर परमानंद पाठक से खरीदा था। इसके पहले यह भवन अलीगढ़ मुसिलम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के पास रहा था। उन्होंने इसे महमूद मंजिल नाम दिया था। सन 1871 में सैयद अहमद ने यहां भवन बनाया था। वे बताते हैं कि सर सैयद अहमद को उस दौरान कई-कई दिन तक प्रयागराज में रहना पड़ता था ऐसे उन्होंने यह घर बनवाया था। तब के गवर्नमेंट हाउस से मात्र दस मिनट की दूरी पर यह आवास था।

    इंदिरा ने एक लेख में जस्टिस महमूद का किया है उल्लेख
    इतिहासकार प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि इंदिरा गांधी ने एक लेख में लिखा है कि इस घर में जस्टिस महमूद रहे हैं। यह उनका आवास था। उन्होंने मुरादाबाद निवासी जज परमानंद के हाथ बेचा था। इंदिरा का यह लेख नेहरू लाइब्रेरी में रखा हुआ है। उनसे मेरे दादा पंडित मोती लाल नेहरू ने 1900 में खरीदा था।