हिंदी भाषा के विकास व संवर्धन में 94 साल से जुटा है प्रयागराज में हिंदुस्तानी एकेडेमी
प्रयागराज स्थित हिंदुस्तानी एकेडेमी की स्थापना संयुक्त प्रांत की सरकार द्वारा 22 जनवरी सन् 1927 में की गई थी जिसका उद्घाटन 29 मार्च 1927 को तत्कालीन गर्वनर विलियम मौरिस ने लखनऊ में किया था। एकेडेमी की स्थापना के 94 साल कुछ ही दिन में पूरे होने वाले हैं
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज स्थित हिंदुस्तानी एकेडेमी की स्थापना संयुक्त प्रांत की सरकार द्वारा 22 जनवरी सन् 1927 में की गई थी जिसका उद्घाटन 29 मार्च 1927 को तत्कालीन गर्वनर विलियम मौरिस ने लखनऊ में किया था। एकेडेमी की स्थापना के 94 साल कुछ ही दिन में पूरे होने वाले हैं लेकिन आज भी यह संस्था हिंदी और उससे जुड़ी भाषाओं की उन्नति और संवर्धन के उद्देश्य को पूरा करने में जुटी है।
हिंदी और सहयोगी भाषाओं को समृद्ध बनाने को हुई थी स्थापना
हिंदी और उसकी सहयोगी भाषाओं को समृद्ध व लोकप्रिय बनाने के लिए हिंदुस्तानी एकेडेमी की स्थापना की गई थी। हिंदी, उसके साहित्य तथा अन्य रूपों यथा उर्दू ,ब्रजभाषा, भोजपुरी व अवधी का परिरक्षण, संवर्धन व उन्नति के अलावा हिंदीतर भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद कराना व हिंदी की मौलिक कृतियों, सृजनात्मक साहित्य को बढ़ावा देना एकेडेमी का उद्देश्य है जिस पर वह निरंतर आगे बढ़ रही है।
स्थापना में इन महान हस्तियों का रहा है महत्वपूर्ण योगदान
प्रयागराज में हिंदुस्तानी एकेडेमी की स्थापना में संयुक्त प्रांत की सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री राय राजेश्वर वली, बनारस के पंडित यज्ञनारायण उपाध्याय, हाफिज हिदायत हुसैन और डा. तेजबहादुर सप्रू का प्रमुख योगदान रहा है। एकेडेमी के कोषाध्यक्ष के पद पर रहे साहित्यकार रविनंदन सिंह के अनुसार इन सभी ने सरकार को हिंदी व उसकी सहयोगी भाषाओं के विकास के लिए एक एकेडेमी स्थापित करने की सलाह दी थी जिसके बाद 22 जनवरी 1927 को हिंदुस्तानी एकेडेमी स्थापित करने के लिए संकल्प पत्र लाया गया।
एकेडेमी पुस्तकालय में दुर्लभ और उच्च स्तरीय पुस्तकों का खजाना
सिविल लाइंस क्षेत्र में 12 डी कमला नेहरू मार्ग स्थित हिंदुस्तानी एकेडेमी में एक समृद्ध पुस्तकालय भी है जिसमें दुर्लभ और उच्च स्तरीय पुस्तकों का खजाना भरा पड़ा है। पुस्तकालय में हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी, गुजराती एवं अन्य भारतीय भाषाओं की लगभग 25 हजार गंभीर पुस्तकें शुलभ हैं। यहां हस्तलिखित एवं मोनो ब्लाक से मुद्रित तकरीबन तीन सौ प्राचीन पांडुलिपियां भी हैं। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संग्रह व संचय भी आठ हजार से ज्यादा है। इसके अलावा पाठकों की रुचि के अनुसार साप्ताहिक, मासिक, दैनिक पत्र-पत्रिकाएं भी मंगाई जाती हैं। सचिव अजय कुमार सिंह के मुताबिक पुस्तकालय को कंप्यूटरीकृत कराने के साथ पुस्तकों को भी कंप्यूटर पर चढ़ाया जा रहा है जिससे पाठकों व शोधार्थियों को सुविधा होगी।
साहित्यकारों के लिए सम्मान और पुरस्कार देने की योजना
एकेडमी की ओर से साहित्यकारों को सम्मान व पुरस्कार भी दिया जाता है। लगभग 1928-29 में एकेडेमी सम्मान देने की शुरूआत की गई थी। रविनंदन सिंह बताते हैं कि प्रथम पुरस्कार मुंशी प्रेमचंद को दिया गया था। 1997-98 में प्रो. नामवर सिंह को सम्मान देने के बाद साहित्यकारों को सम्मान देने की योजना आर्थिक कारणों से ठप हो गई। वर्ष 2018 से साहित्यकारों को फिर से सम्मानित किया जाने लगा। एकेडेमी की ओर से अब गुरु गोरक्षनाथ सम्मान के रूप में पांच लाख रुपये, गोस्वामी तुलसीदास सम्मान ढाई लाख, भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान दो लाख के अलावा महावीर प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, फिराक गोरखपुरी, भिखारी ठाकुर भोजपुरी सम्मान, बनादास अवधी सम्मान, कुंभनदास ब्रजभाषा सम्मान के रूप में एक-एक लाख रुपये दिए जाते हैं। 11 हजार का युवा सम्मान भी है।
संगोष्ठी, कवि सम्मेलन और अन्य आयोजन कराए जाते हैं
हिंदुस्तानी एकेडेमी में साल भर कला व साहित्य के क्षेत्र में विविध आयोजन कराए जाते हैं जिसमें विभिन्न विषयों पर संगोष्ठी, परिचर्चा, कवि सम्मेलन, कार्यशाला के अतिरिक्त नाट्य प्रस्तुति जैसे कार्यक्रम निरंतर संचालित किए जाते हैं। वर्तमान समय में एकेडेमी में अध्यक्ष डा.उदय प्रताप सिंह, सचिव अजय कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष पायल सिंह के अलावा एक दर्जन सदस्य हैं।