Death Anniversary of Harivansh Rai Bachchan: गीतों की गूंज के बीच संगम में विसर्जित हुई थीं बच्चन की अस्थियां
Death Anniversary of Harivansh Rai Bachchan 8 जनवरी 2003 में सांस की बीमारी के चलते उनका मुंबई में निधन हो गया था। उनके ज्येष्ठ पुत्र अमिताभ बच्चन भाई अजिताभ बच्चन व बेटे अभिषेक और बहू ऐश्वर्या के साथ संगम के जल में उनकी अस्थियों को प्रवाहित करने को आए थे।
प्रयागराज, जेएनएन। हिंदी साहित्य में हालावाद के सृजक और 'मधुशाला से हिन्दी काव्य जगत को नया आयाम देने वाले हरिवंश राय बच्चन की आज 18 जनवरी को पुण्यतिथि है। प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) से भी बच्चन जी का गहरा जुड़ाव रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई संग अध्यापन भी किया। वे आकाशवाणी से भी जुड़े रहे। बच्चन जी से जुड़े तमाम संस्मरण संगम नगरी में बिखरे पड़े हैं जिसे आज भी यहां के निवासी और साहित्य प्रेमी याद करते हैं।
बोलचाल की भाषा में लिखना शुरू किया था हिंदी गीत
बोलचाल की भाषा में हिन्दी गीत के लेखन का श्रेय हरिवंश राय बच्चन को ही जाता है। इसके पहले हिंदी गीत व काव्य संस्कृतनिष्ठ हुआ करते थे। पंत निराला और महादेवी की तूती बोलती थी तब बच्चन जी गीतों को मंच पर ले गए और उचित सम्मान दिलाया।
कवि सम्मेलनों में कराई थी कवियों को मानदेय दिलाने की शुरूआत
हिंदी गीत और कविता के सशक्त हस्ताक्षर यश मालवीय कहते हैं कि बच्चन जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने हिन्दी गीतों और कविताओं को मंचीय लोकप्रियता दिलाई। पहली बार उन्होंने कवि सम्मेलनों में कवियों को भी मानदेय दिलाने की शुरूआत कराई। अग्रवाल इंटरमीडिएट कालेज में बच्चन जी द्वारा कराई गई ऐसी पहली काव्य गोष्ठी में यश मालवीय के पिता कवि स्व. उमाकांत मालवीय और गोपी कृष्ण गोपेश भी थे। दोनों को पहली बार मंच पर काव्य पाठ करने के लिए 21-21 रुपये मानदेय मिले थे जबकि बच्चन जी को 51 रुपये मिले थे।
जब गांधी जी ने बच्चन से मिलने से कर दिया था इंकार
यश बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन जी से उनके पिता उमाकांत मालवीय के अच्छे रिश्ते थे। प्रयागराज से मुंबई जाने के बाद भी पिता जी का हाल जानने के लिए चिट्ठी आती थी। बच्चन जी द्वारा भेजे गए कई पोस्टकार्ड आज भी उनके घर सुरक्षित हैं। बताया कि वर्ष 1940 के आसपास महात्मा गांधी प्रयागराज (इलाहाबाद) आए तो बच्चन जी उनसे मिलने गए किंतु गांधी जी ने यह कहते हुए मिलने से मना कर दिया कि शराब को महिमामंडित करने वाले से वह नहीं मिलना चाहते। यह बात बच्चन जी ने जब राममनोहर लोहिया से बताई तो वे गांधी जी से मिले और कहा कि बच्चन की काव्य कृति 'मधुशाला में शराब से आशय प्रेम, अध्यात्म और भक्ति से है। तब गांधी जी बच्चन जी से मिले और यह कहते हुए खेद जताया कि भाई मुझे हिंदी कविताओं की बहुत समझ नहीं है जिससे गलती हो गई।
'हे राम तुम्हारी जय हो, बोलने से भी हो जाती है पूजा
यश मालवीय कहते हैं कि हरिवंश राय बच्चन जीवन मूल्यों में आस्था रखने वाले रहे। बताया कि उनके पिता स्व.उमाकांत मालवीय बच्चन जी से काफी गहरे जुड़े थे। उनके साथ कई कवि सम्मेलनों में रचनाओं का पाठ भी किया। यश बताते हैं कि पिता उमाकांत मालवीय एजी आफिस में कार्यरत थे। 1960 में उन्हें किसी कारण निलंबित कर दिया गया था। 11 दिनों की जेल भी हुई थी। बच्चन जी को जब पता चला तो उन्होंने पोस्टकार्ड भेज कर कुशलक्षेम पूूछा और उन्हें ढांढस भी बंधाया। पोस्टकार्ड में उन्होंने दो तीन सारगर्भित बातें लिखीं हैं। पूछने के लहजे में लिखा है कि तुम्हारी पत्नी घर में है या मायके में, यदि मायके में है तो बुलवा लो क्योंकि कष्ट के समय पत्नी से बड़ा दूसरा कोई संबल नहीं होता है। पूजा-पाठ करते हो कि नहीं, यदि नहीं भी करते हो तो केवल 'हे राम तुम्हारी जय हो का उच्चारण कर लिया करो, इसी से तुम्हारी पूजा हो जाया करेगी, इससे संकट के समय ऊर्जा और मन को शांति मिलेगी।
बने रहें ये पीने वाले, बनी रहे ये मधुशाला
हरिवंश राय 'बच्चन का जन्म 27 नवंबर वर्ष 1907 को प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव में कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव और माता सरस्वती देवी थीं। 1926 में उनकी शादी श्यामा देवी से हुई थी जिनका 1936 में निधन हो गया तो 1941 में तेजी सूरी से दूसरी शादी हुई। प्रसिद्ध फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन व अजिताभ बच्चन उनके बेटे हैं। 1935 में प्रकाशित काव्य कृति मधुशाला से वह खासे लोकप्रिय हुए। उन्हें कई सम्मान भी प्राप्त हुए जिनमें सरस्वती सम्मान, यश भारती, पद्म भूषण, सोवियत लैंड नेहरू सम्मान, साहित्य अकादमी आदि शामिल हैं। वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
18 जनवरी 2003 में उनका मुंबई में निधन हो गया था
18 जनवरी 2003 में सांस की बीमारी के चलते उनका मुंबई में निधन हो गया था। उनके ज्येष्ठ पुत्र अमिताभ बच्चन अपने भाई अजिताभ बच्चन व बेटे अभिषेक और बहू ऐश्वर्या के साथ पवित्र संगम के जल में उनकी अस्थियों को प्रवाहित करने को आए थे। अस्थि विसर्जन की यात्रा में शामिल रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता किशोर वार्ष्णेय बताते हैं कि यात्रा में बच्चन जी की कालजयी रचना मधुशाला की पंक्तियां गूंज रही थीं-सुन कलकल छलछल मधुघट से गिरती प्यालों में हाला, चहक रहे सुन पीने वाले महक रही ये मधुशाला, सुन रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला, बस आ पहुंचे दूर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है... बने रहें ये पीने वाले, बनी रहे ये मधुशाला।