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    ग्रीन कीटनाशक है बड़े काम का जो मक्खी-मच्छरों को एडल्ट बनने से रोकेगा ताकि कम हो सके उनकी संख्या

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Mon, 21 Nov 2022 10:36 AM (IST)

    मक्खियों और मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण के लिए ग्रीन कीटनाशक का इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने पता लगाया है। ग्रीन पेस्टिसाइड (कीटनाशक) मक् ...और पढ़ें

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    इवि के विज्ञानियों ने कीटों में पाए जाने वाले जुवेनाइल हार्मोन को प्रभावित करने वाले कीटनाशक का पता लगाया

    मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। इंसान व जानवरों में संक्रामक बीमारियों की वजह बनने वाली मक्खियों और मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण के लिए ग्रीन कीटनाशक का इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने पता लगाया है। ग्रीन पेस्टिसाइड (कीटनाशक) मक्खियों में पाए जाने वाले जुवेनाइल हार्मोन को प्रभावित करके उनके जीवन चक्र में बाधा डालकर उन्हें वयस्क नहीं बनने देगा।

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    अगर कोई मक्खी या मच्छर वयस्क हो भी गए तो विकार ग्रस्त होने के कारण उसमें लार्वा पैदा करने की क्षमता नहीं होगी। तीसरी पीढ़ी का यह ग्रीन कीटनाशक वातावरण व कशेरूकी जीवों पर असर नहीं डालता है। यह शोध पत्र टेलर एंड फ्रांसिस पब्लिकेशन के अंतरराष्ट्रीय जर्नल इनवर्टिब्रेट रिप्रोडक्शन एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुआ है।

    मक्खी-मच्छरों के जीवन चक्र में जुवेनाइल हार्मोन की महत्वपूर्ण भूमिका

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय जंतु विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. केपी सिंह के निर्देशन में शोध छात्र राहुल मद्धेशिया ने यह शोध डिप्टरन फ्लाइ यानी द्विपक्षीय दो पंखों वाले कीटों में ही पाए जाने वाले जुवेनाइल हार्मोन पर किया। इस जुवेनाइल हार्मोन की वजह से सही वक्त आने पर लार्वा मक्खियों में बदल जाता है। राहुल मद्धेशिया ने बताया कि शोध के लिए मांस मक्खियां (सरकोफेगा रूफिकोर्निस) को चुना गया।

    यह मक्खियां ऊतक संक्रमण का कारण बनती हैं। इस संक्रमण को मायियासिस कहा जाता है। इस स्थिति से दूध, मांस और ऊन के उत्पादन में कमी आ सकती है। मांस मक्खी अपने नवजात लार्वा को घाव में जमा करती है और बाद में लार्वा त्वचा, मूत्रजननांगी, जठरांत्र संबंधी मार्ग से जुड़े ऊतकों को संक्रमित करता है।

    राहुल ने बताया कि मांस मक्खियों को इकट्ठा कर लार्वा पैदा किया गया और उनके ऊपर फेनोक्सीकार्ब कीटनाशक का टापिकल ट्रीटमेंट (लेपन) किया गया। इसका परिणाम अच्छा रहा। चाहे लार्वा , प्यूपा और वयस्क की मौत हो रही थी या उनमें विकार उत्पन्न हो रहे थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय जंतु विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. केपी सिंह कहते हैं कि डिप्टरन फ्लाइ की श्रेणी में आने वाले सभी कीटों में जुवेनाइल हार्मोन पाया जाता है।

    फेनोक्सीकार्ब कीटनाशक कीटो में पाए जाने वाले जुबेनाइल हार्मोन का ही एनालोग (कृत्रिम प्रतिरूप) है। जिसके ट्रीटमेंट देने से जुवेनाइल होर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। जिसके कीट के एक चरण से दूसरे चरण में वृद्धि में प्राकृतिक रूप से व्यवधान पैदा होता है। इससे यह कीट किसी काम के नहीं रहेंगे और वे बच भी गए तो भी उनमें प्रजनन क्षमता नहीं होगी।

    यह ग्रीन कीटनाशक कीटों के जुवेनाइल हार्मोन को ही प्रभावित करता है। इस कीटनाशक का मक्खियों के तीन चरण पर प्रयोग किया गया। तीनों ही चरणों में इसने अच्छा प्रभाव दिखाया। यह कीटनाशक पर्यावरण के अनुकूल है। कशेरूकी जीवों पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा।

    डा. राहुल मद्धेशिया, शोधार्थी


    दो पंख वाले कीटों का प्रभावी नियंत्रण

    डिप्टरन फ्लाइ की श्रेणी में मक्खी, पतिंगा, कुटकी (एक छोटा कीड़ा), मच्छर तथा इसी प्रकार के अन्य कीट भी शामिल हैं। मक्खी-मच्छर सहित डिप्टरन श्रेणी के सभी सीटों पर यह कीटनाशक प्रभावी साबित होगा। इससे दो पंख वाले कीटों का प्रभावी नियंत्रण हो सकेगा।

    प्रो. केपी सिंह, जंतु विज्ञान विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय