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    गंगा के घाट कह रहे आस्था की कहानी, प्रतापगढ़ के अलग अलग घाट का अलग किस्सा और महिमा

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Fri, 08 Jul 2022 07:44 PM (IST)

    गंगा की तरह उनके घाट भी आस्था की कहानी कहते हैं। वह विश्वास और भक्ति के साक्षी हैं। श्रद्धा के स्वरूप को साकार करते हैं। प्रतापगढ़ में कुंडा और मानिकपुर से होते हुए सुरसरि आगे बढ़ती हैं और कौशांबी की ओर चली जाती हैं।

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    गंगा की तरह उनके घाट भी आस्था की कहानी कहते हैं। वह विश्वास और भक्ति के साक्षी हैं।

    प्रयागराज, जेएनएन। प्रतापगढ़ पर भी मां गंगा की कृपा और छाया है। उनकी पवित्र धारा यहां के कुंडा क्षेत्र को पवित्र बनाती है। गंगा की तरह उनके घाट भी आस्था की कहानी कहते हैं। वह विश्वास और भक्ति के साक्षी हैं। श्रद्धा के स्वरूप को साकार करते हैं। कुंडा व मानिकपुर से होते हुए सुरसरि आगे बढ़ती हैं और कौशांबी की ओर चली जाती हैं।

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    राजा मानिकशाह के नाम पर रखा गया शाहाबाद घाट

    मानिकपुर में शाहाबाद गंगा घाट। इसका नाम यहां के राजा रहे मानिकशाह के नाम पर रखा गया है। इसके अलावा अमेठी घाट, राम जानकी घाट, सरस्वती घाट, किला घाट और अठेहा घाट है। तीर्थ पुरोहित पंडित नंद लाल मिश्र बताते हैं कि इन सभी घाटों पर अलग-अलग क्षेत्र से लोग आते हैं। अमेठी घाट का नाम अमेठी समेत उस क्षेत्र के लोगों के आकर स्नान करने से पड़ा। बहादुरगंज से कुंडा में प्रवेश करने पर सबसे पहले कालाकांकर घाट पड़ता है। इसका महत्व इसलिए भी है कि यहां पर 1929 में महात्मा गांधी तीन दिन रुके थे। कालाकांकर प्रवास के दौरान वह गंगा स्नान से ही अपनी दिनचर्या शुरू करते थे। यहीं पर कविवर सुमित्रा नंदन पंत भी आए थे। 1927 से लेकर 1935 तक नक्षत्र कुटिया में साहित्य सृजन किया था। वह गंगा में नौका विहार करते थे। यहां वर्ष में दो बार मेला लगता है। मां ज्वाला देवी धाम है।

    हौदेश्वर नाथ धाम जहां भागीरथ ने किया था तप

    इसके बाद हौदेश्वर नाथ धाम पड़ता है। किवदंती है कि भागीरथ जी ने यहां भी तप किया था। यहीं से गंगा का नाम जाह्नवी पड़ा। इसी से जहानाबाद घाट भी इसे कहते हैं। यहां पर सोमवार व सावन माह में शिवभक्तों का गंगा स्नान करने को मेला लगता है। गौरी शंकरन घाट की पहचान प्राचीन शिव मंदिर से है। इन घाटों पर अमावस्या और पूर्णिमा पर स्नान किया जाता है। पुरोहित संघ के संरक्षक प्रेमनाथ दीक्षित बताते हैं कि पहले जब इतने संसाधन नहीं थे तो आने वाले श्रद्धालु कई दिन रुका करते थे। उनके लिए घाट पर ही सरपत के छप्पर हमारे पूर्वज बनाते थे। त्रिपुरारी सेवा संस्थान के संस्थापक राम भरोस मिश्र बताते हैं कि इन घाटों का सीधा कनेक्शन गंगा के उस पार कौशांबी जनपद से भी था। वहां के शीतला कड़ा धाम लोग नाव से जाते थे। तब कौशांबी जिला नहीं था, यह इलाहाबाद का हिस्सा होता था। अब तो यह घाट पर्व पर ही गुलजार होते हैं। बाकी दिनों में सन्नाटा पसरा रहता है। प्रशासन ने घाटों पर सुविधाएं बढ़ाई हैं, पर लोग स्वच्छता की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते।