ग्रीन कीटनाशक से नियंत्रित की जा सकेगी मक्खी-मच्छरों की आबादी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुआ अहम शोध
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने कीटों के जुवेनाइल हार्मोन को प्रभावित करने वाला कीटनाशक खोज निकाला है। दरअसल मक्खी-मच्छरों के जीवन चक्र में जुवेनाइल हार्मोन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ग्रीन कीटनाशक से इनमें लार्वा वयस्क नहीं हो सकेंगे।

प्रयागराज, मृत्युंजय मिश्र। डेंगू, मलेरिया, हैजा, टायफायड, एंथ्रेक्स जैसी मक्खियों और मच्छरों के संक्रमण से होने वाली बीमारियों पर अब आसानी से अंकुश लग सकेगा। इन कीटों की वंशबेल रोकने को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने 'ग्रीन कीटनाशक' (फेनोक्सीकार्ब कीटनाशक) खोजा है। पांच लीटर पानी में इसकी एक एमएल मात्रा (करीब पांच बूंद) के प्रयोग से ही इनकी आबादी पर नियंत्रण रखा जा सकेगा। पर्यावरण अनूकूल तीसरी पीढ़ी का यह ग्रीन कीटनाशक कशेरूकी जीवों (रीढ़ वाले जीव) पर असर नहीं डालता है।
पर्यावरण में यह लंबे समय तक नहीं रहता है जिससे कि पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है। यह कीटनाशक मक्खियों और मच्छरों जैसे कीटों में पाए जाने वाले जुवेनाइल हार्मोन को प्रभावित कर उनको वयस्क ही नहीं बनने देगा। किस्मत से कोई मक्खी या मच्छर वयस्क हो भी गए तो विकार ग्रस्त (प्रजनन क्षमता शून्य) हो चुके होंगे। यह शोध पत्र टेलर एंड फ्रांसिस पब्लिकेशन के अंतरराष्ट्रीय जरनल इनवर्टिब्रेट रिप्रोडक्शन एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुआ है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय जंतु विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. केपी सिंह के निर्देशन में शोध छात्र राहुल मद्धेशिया ने यह शोध डिप्टरन फ्लाइ यानी द्विपक्षीय दो पंखों वाले कीटों में ही पाए जाने वाले जुवेनाइल हार्मोन पर किया। इस हार्मोन के कारण सही समय आने पर लार्वा मक्खियों में बदल जाता है। शोध के लिए मांस मक्खियों (सरकोफेगा रूफिकोर्निस) को चुना गया। यह मक्खियां ऊतक संक्रमण का कारण बनती हैं।
इस संक्रमण को मायियासिस कहा जाता है। इससे दूध, मांस और ऊन के उत्पादन में कमी आ जाती है। मांस मक्खी अपने नवजात लार्वा को घाव में जमा करती है और बाद में लार्वा त्वचा, जननांग, जठरांत्र संबंधी मार्ग से जुड़े ऊतकों को संक्रमित करता है। शोधार्थी राहुल मद्धेशिया ने बताया कि मांस मक्खियों को इकट्ठा कर लार्वा पैदा किया गया और उनके ऊपर ग्रीन कीटनाशक (फेनोक्सीकार्ब कीटनाशक) का टापिकल ट्रीटमेंट (लेपन) किया गया। इसका परिणाम अच्छा रहा।
इलाहाबाद विश्विवद्यालय में जंतु विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. केपी सिंह कहते हैं कि डिप्टरन फ्लाइ की श्रेणी में आने वाले सभी कीटों में जुवेनाइल हार्मोन पाया जाता है। यह कीटनाशक जुवेनाइल हार्मोन का ही एनालोग (कृत्रिम प्रतिरूप) है। जिसके ट्रीटमेंट से जुवेनाइल हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे कीट के एक चरण से दूसरे चरण में वृद्धि में प्राकृतिक रूप से व्यवधान पैदा होता है। लार्वा समाप्त हो जाता है, यदि बच भी गए तो प्रजनन क्षमता शून्य हो जाती है।
कशेरुकी जीवों पर इसका असर नहीं
कशेरुकी यानी रीढ़ वाले जीवों पर इसका असर नहीं होता है। इससे इंसानों, सांपों, उभयचर जीव, मछली व पक्षियों को कोई नुकसान नहीं होगा। यह कीटनाशक केवल जुवेनाइल हार्मोन को प्रभावित करता है और यह जुवेनाइल हार्मोन केवल दो पंखों वाले कीटों में ही पाया जाता है। पर्यावरण में यह कीटनाशक लंबे समय तक नहीं रहता है जिससे कि पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है।
पर्यावरण के अनुकूल है कीटनाशक
ग्रीन कीटनाशक कीटों के जुवेनाइल हार्मोन को ही प्रभावित करता है। इस कीटनाशक का मक्खियों के तीन चरण पर प्रयोग किया गया। तीनों ही चरणों में इसने अच्छा प्रभाव दिखाया। यह कीटनाशक पर्यावरण के अनुकूल है। कशेरूकी जीवों पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा। - डा. राहुल मद्धेशिया, शोधार्थी
दुनिया में कीटों की हजारों प्रजातियां
डिप्टरन फ्लाइ की श्रेणी में मक्खी, पतंगा, कुटकी (एक छोटा कीड़ा), मच्छर तथा इसी प्रकार के अन्य कीट भी शामिल हैं। मक्खी-मच्छर सहित डिप्टरन श्रेणी के सभी कीटों पर यह कीटनाशक प्रभावी साबित होगा। - प्रो. केपी सिंह, जंतु विज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
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