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    इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा... अभिनेत्री मीना कुमारी के दुपट्टा डिजाइनर साड़ियां लेकर आए प्रयागराज

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Sat, 18 Jun 2022 08:00 AM (IST)

    पाकीजा फिल्म के इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा... गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। उस फिल्म में मीना कुमारी ने जो दुपट्टा ओढ़ा वह चंदेरी डिजाइन का था। उसे तैयार करने वाले अब्दुल हकीम खलीफा साथी लालाराम के साथ इन दिनों संगम नगरी में हैं।

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    मोहम्मद अब्दुल हकीम खलीफा और लाला राम लाए हैं चंदेरी साड़ियों का कलेक्शन

    प्रयागराज, जागरण संवाददाता। 1972 में बनी पाकीजा फिल्म के 'इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा...' गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। उस फिल्म में मीना कुमारी ने जो दुपट्टा ओढ़ा वह चंदेरी डिजाइन का था। उसे तैयार करने वाले मोहम्मद अब्दुल हकीम खलीफा अपने साथी लालाराम के साथ इन दिनों संगम नगरी में हैं। ये कारीगर हिंदुस्तानी एकेडेमी में मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से लगी मृगनयनी प्रदर्शनी में चंदेरी साड़ियों का खास कलेक्शन लेकर आए हैं।

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    पिता से विरासत में मिला है कारीगरी का हुनर, कोरोना काल में किए कई प्रयोग

    मोहम्मद अब्दुल कहते हैं कि उस समय उनकी उम्र 12 साल थी। उन्होंने पिता मोहम्मद इरशाद के साथ मिलकर उस दुपट्टे पर काम किया था। उनके साथ कमल कोली ने भी अपनी कारीगरी दिखाई थी। अब उनके बेटे लालाराम भी उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। चंदेरी साड़ियों पर नए नए प्रयोग भी कर रहे हैं। कला के पारखी 22 जून तक इस प्रदर्शनी में चंदेरी के साथ बालेंद्र शेखर कोसा की साड़ी, बाग प्रिंट, रानी अहिल्याबाई राज घराने की महेश्वरी साड़ी, पड़ाना की बेडशीट और बटिक प्रिंट के सूट देख सकते हैं। कहते हैं कि इन प्रिंट वाले कपड़ों का रंग नहीं छूटेगा क्योंकि इन्हें बनाते समय तीन बार क्षिप्रा नदी के जल से धुला जाता है।

    कोलिकंडा से तैयार होते हैं धागे

    मोहम्मद अब्दुल हकीम खलीफा ने बताया कि 17वीं शताब्दी तक चंदेरी के सूती कपड़े की प्रतिस्पर्धा ढाका के मलमल से होती थी। उसके बाद 300 काउंट वाले सूती कपड़े की एक अलग किस्म खोजी गई। यह कपड़ा एक स्थानीय जड़ कोलिकंडा से तैयार धागों से बनाया गया। इसमें पाइपिंग किनारे का प्रयोग कर खास पहचान दिलाई गई। ये साड़ियां 40 हजार से एक लाख 29 हजार तक की हैं। अशर्फी व अन्य डिजाइन के बूटे साड़ियों को खास बनाते हैं। इन्हें माचिस की तीलियों से बांधते हैं। पूरा काम हाथ से होता है।

    कम से कम तीन कारीगर इन साडि़यों को बनाते में लगते हैं। एक कारीगर नात फेंकते हैं तो एक तिल्ली डिजाइन करते और एक बार्डर तैयार करने में लगते हैं। प्रदर्शनी के रीजनल मैनेजर एमएल शर्मा ने बताया कि यहां रिंग क्रेप साड़ी भी आकर्षण का केंद्र है। इस साड़ी को बड़ी आसानी से अंगूठी के बीच से निकाला जा सकता है। इसीलिए इसका नाम रिंग क्रेप साड़ी रखा गया। इसका वजन भी बहुत कम है।

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