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    Durga Bhabhi Birth Anniversary: दुर्गा भाभी का नाम सुनकर कांप उठते थे अंग्रेज अधिकारी

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Fri, 07 Oct 2022 08:30 AM (IST)

    Durga Bhabhi Birth Anniversary इलाहाबाद के शहजादपुर गांव कौशाम्बी में सात अक्टूबर 1907 को जन्मी पलीं बढ़ीं तथा अंग्रेजी सरकार की बर्बरता के विरुद्ध अडिग रहीं। मात्र 11 साल की अल्पायु में उनका विवाह लाहौर के भगवतीचरण वोहरा से हुआ था। पति-पत्नी की रग-रग में क्रांति की ज्वाला थी।

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    जिनका नाम सुनते ही अंग्रेजी सरकार कांप जाती थी। वैसी थीं, दुर्गा भाभी।

    जन्मतिथि पर विशेष

    प्रयागराज, जेएनएन। जिनका नाम सुनते ही अंग्रेजी सरकार कांप जाती थी। वैसी थीं, दुर्गा भाभी। इलाहाबाद के शहजादपुर गांव, कौशाम्बी (तब कौशाम्बी इलाहाबाद के ही अंतर्गत था।) में सात अक्टूबर 1907 को जन्मी, पलीं, बढ़ीं तथा अंग्रेजी सरकार की बर्बरता के विरुद्ध अडिग रहीं। मात्र 11 साल की अल्पायु में उनका विवाह लाहौर के भगवतीचरण वोहरा से हुआ था। पति-पत्नी की रग-रग में क्रांति की ज्वाला थी। वे चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त आदि क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों के छक्के छुड़ाती थीं। बम बनाती थीं और चलाती भी थीं। वह बंदूक और पिस्तौल चलाने में भी दक्ष थीं।

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    तब अपनी अंगुली में चीरा लगाकर रक्त दिया था पर्दे को

    'दुर्गा भाभी का क्रांतिकारी सफर' के लेखक भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पांडेय ने बताया कि 1914 में प्रथम लाहौर षडयंत्र-प्रकरण में जब 18 वर्षीय युवक करतार सिंह को अंग्रेजों ने सूली पर लटकाया था तब क्रांतिकारियों ने उनकी स्मृति में बलिदान-दिवस मनाया था। वहां करतार सिंह का जो बड़ा चित्र लटकाया गया था, दुर्गा भाभी ने अपनी अंगुली में चीरा लगाकर उससे निकलते रक्त से उस चित्र में लगे खद्दर के पर्दे को रंग दिया था।

    सरदार भगत सिंह और राजगुरू को लाहौर से ले गई थीं कोलकाता

    दुर्गा भाभी सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगत सिंह और राजगुरु को बचाने के लिए लाहौर से कोलकाता ले गयी थीं। उन्हें भगत सिंह की पत्नी बनने का नाटक भी करना पड़ा था। बताया कि सांडर्स की हत्या होते ही अंग्रेज, क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए सक्रिय हो गए थे। सभी क्रांतिकारी हुलिया बदलकर इधर-उधर भटक रहे थे।

    और दुर्गा भाभी पर घोषित कर दिया गया था पुरस्कार

    दुर्गा भाभी ने दो अंग्रेज अधिकारियों पर गोलियां चलायी थीं तो उनका पता बताने के लिए पुरस्कार घोषित कर दिया गया था। दुर्गा भाभी कुछ समय के लिए बाई का बाग स्थित क्रास्थवेट स्कूल के छात्रावास में छद्म नाम से रहीं। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन ने भी उन्हें पांच महीने तक अपने घर में शरण दी थी।