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    आजादी के बाद डॉ. ताराचंद बने थे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले कुलपति, भारत सरकार ने पदमभूषण से किया था सम्मानित

    By Rajneesh MishraEdited By:
    Updated: Thu, 18 Feb 2021 02:07 PM (IST)

    प्रो.अनिल कुमार दुबे बताते हैं कि डॉ.ताराचंद का 1949 में कुलपति पद कार्यकाल समाप्त हो गया था। उसी के बाद उन्हें लगातार दो बार राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 1961 में उनकी विश्वविख्यात पुस्तक भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास प्रकाशित हुई थी।

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    आजादी के बाद डॉ ताराचंद को इलाहाबाद विश्वविद्यालय का पहला कुलपति बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

    प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास रहा है। आजादी के आंदोलन में यहां के छात्रों का बहुत योगदान रहा है। उस समय यहां के शिक्षक भी क्रांतिवीरों की मदद करते थे। लोगों को जागरुक करते थे। इन्हीं में एक थे डॉ. ताराचंद। वे प्रख्यात इतिहासकार थे। 1946 में तारांचद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता थे। देश जब आजाद हुआ तो उन्हें यहां का कुलपति बनाया गया। आजादी के बाद ताराचंद को इलाहाबाद विश्वविद्यालय का पहला कुलपति बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

    कायस्थ पाठशाला के प्रिंसिपल भी रहे
    इतिहासकार प्रो.अनिल कुमार दुबे बताते हैं कि डॉ.ताराचंद द्वारा लिखित पुस्तकें विश्व स्तरीय हैं। उनकी दो कृतियां भारतीय संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव तथा चार खंडों में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास बहुत लोकप्रिय है। वे कायस्थ पाठशाला के प्रिंसिपल भी रहे थे। वे केपीयूसी के भी प्रिंसिपल बनाए गए थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर वे 1947 से 49 तक रहे रहे। कुलपति बनने के पूर्व ताराचंद कला संकाय में अधिष्ठाता थे। उस समय मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग में सर शफात अहमद, डा.राम प्रसाद त्रिपाठी, डा.ईश्वरी प्रसाद, प्रो.परमानंद, बनारसी प्रसाद सक्सेना जैसी हस्तियां थीं। ताराचंद कई भाषाओं के ज्ञाता थे। मोतीलाल नेहरू एवं जवाहर लाल नेहरू के वे बहुत प्रिय थे।

    दो बार राज्यसभा के सदस्य बने
    प्रो.अनिल कुमार दुबे बताते हैं कि डॉ.ताराचंद का 1949 में कुलपति पद कार्यकाल समाप्त हो गया था। उसी के बाद उन्हें लगातार दो बार राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 1961 में उनकी विश्वविख्यात पुस्तक भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास प्रकाशित हुई थी। उन्होंने विदेश मेें जाकर शोध कार्य किया था। विदेश में उनका संबंध क्रांतिकारियों से रहा। वे क्रांतिकारियों की तन मन धन से मदद करते थे। उन्हें भारत सरकार ने पदमभूषण से भी सम्मानित किया था।

    ईरान के राजदूत भी रहे थे
    प्रो.दुबे बताते हैं कि डॉ.ताराचंद ईरान में भारत के राजदूत भी रहे थे। उनके एक मात्र पुत्र ज्ञानचंद इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रहे। उनके दामाद पी सहाय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष पद तक पहुंचे थे। 1974 में स्टेनली रोड स्थित निवास में उनका निधन हुआ था। उनके नाम से इलाहाबाद विश्वविद्यालय का एक छात्रावास भी है। ताराचंद नाम से यह हास्टल कमिश्नर आवास के सामने और विधि संकाय के पीछे है। इस हास्टल में रहने वाले विभिन्न छात्र देश के उच्च प्रशासनिक पदों पर हैं।

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