संगमनगरी में बोले थे डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हम बनाएंगे एक सशक्त राष्ट्र
जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना की। पहला राष्ट्रीय अधिवेशन 29 से 31 दिसंबर 1952 में कानपुर के फूलबाग में हुआ। यहीं डॉ. मुखर्जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष और पं. दीनदयाल उपाध्याय को महासचिव बनाया गया।
जन्मतिथि पर विशेष
जन्म : 06 जुलाई 1901
मृत्यु : 23 जून 1953
प्रयागराज, अमलेंदु त्रिपाठी। राष्ट्रवादी विचारधारा के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) से अपने जीवनकाल में आत्मीय नाता रहा था। उनके अध्यात्मिक गुरु स्वामी प्रणवानंद के चार प्रमुख आश्रमों में एक यहीं पर है, साथ ही यह जमीन वैचारिक दृष्टिकोण से उर्वरा थी। संगमनगरी में ही उन्होंने मिलने आए लोगों से कहा था-हम बनाएंगे सशक्त राष्ट्र।
यहां समान विचारधारा के लोगों से की थी मुलाकात
जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना की। पहला राष्ट्रीय अधिवेशन 29 से 31 दिसंबर 1952 में कानपुर के फूलबाग में हुआ। यहीं डॉ. मुखर्जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष और पं. दीनदयाल उपाध्याय को महासचिव बनाया गया। अधिवेशन के तुरंत बाद उन्हें कलकत्ता (मौजूदा कोलकाता) जाना था लेकिन वह पं. दीनदयाल उपाध्याय को लेकर प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) आ गए। यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसी बनर्जी के निवास पर ठहरे और समान विचारधारा के लोगों से मिले। संगठन तथा कार्यकर्ताओं के लिए संसाधन जुटाने की कार्ययोजना बनाई। सभी से आग्रह किया कि एक राष्ट्र सशक्त राष्ट्र के लिए जो बन पड़े जरूर करें। कुछ नहीं तो संगठन के लिए कार्य करने वालों के ठहरने और भोजन की ही व्यवस्था करें। जनसंघ नेता स्व. पंडित हरिनाथ पांडेय से सुने गए वृत्तांत के आधार पर पं. देवीदत्त शुक्ल -पं. रामदत्त शुक्ल शोध संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा बताते हैं कि डा. मुखर्जी ने सभी को पं. दीनदयाल उपाध्याय से परिचित कराया और उनसे मुखातिब होते हुए कहा -'अब तुम्हें ही सब देखना है, तुम जनरल सेक्रेट्री हो आगे बढ़ो।
काशी में हिंदुत्व के प्रचार प्रसार की दीक्षा
प्रो. शिवाधार पांडेय ने अपने संस्मरण में उल्लेखित किया है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी से भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद बहुत प्रभावित थे। अकाल के दौरान कलकत्ता में डॉ. मुखर्जी के सेवा कार्य को उन्होंने देखा और सराहा था। काशी स्थित आश्रम में 1937 में स्वामी प्रणवानंद ने उन्हें राष्ट्र सेवा और हिंदुत्व के प्रचार प्रसार की दीक्षा दी। प्रयागराज में भी भारत सेवाश्रम संघ का कार्यालय था। उसे स्वामी प्रणवानंद ने ही स्थापित किया था इसलिए भी डॉ. मुखर्जी का इस धरती से अगाध प्रेम था।
प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के प्रचार में आए
वर्ष 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र (तब फूलपुर संसदीय सीट नहीं थी। एक ही क्षेत्र से दो प्रतिनिधि चुने जाने थे।) से प्रभुदत्त ब्रह्मचारी चुनाव मैदान में थे। उनका मुकाबला तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से था। ब्रह्मïचारी को कई हिंदू संगठनों ने समर्थन दिया था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी समर्थन देने पहुंचे और समान विचारधारा के लोगों से मिलकर यहीं से चुनाव अभियान की शुरुआत की। हालांकि ब्रह्मïचारी को इसमें पराजय मिली।
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