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    Dr. Tarachand Birth Anniversary : चुनाव लड़कर जीतने वाले Allahabad University के आखिरी कुलपति थे

    17 जून 1888 को कायस्थ परिवार में जन्मे डॉ. ताराचंद केपीयूसी में प्राचार्य बनकर आए थे। यह पहले डिग्री कालेज हुआ करता था। वर्तमान में विश्वविद्यालय के हास्टल के रूप में मौजूद है।

    By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 17 Jun 2020 09:48 AM (IST)
    Dr. Tarachand Birth Anniversary : चुनाव लड़कर जीतने वाले Allahabad University के आखिरी कुलपति थे

    प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। वर्तमान में विश्वविद्यालय का ताराचंद हॉस्टल उनकी याद दिलाता रहता है। 17 जून यानी आज  उनकी जन्मतिथि है। जी हां, यहां बात हो रही है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. ताराचंद की। चुनाव लड़कर जीतने वाले आखिरी कुलपति थे। वह  आजाद भारत के पहले कुलपति भी थे। उनका व्यवहार कुछ ऐसा था कि जिन डॉ. अमरनाथ झा के खिलाफ उन्होंने दो बार चुनौती पेश की, उन्होंने ही उन्हें (डॉ. ताराचंद) इलाहाबाद विश्वविद्यालय का कुलपति बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। देश की आजादी से चंद महीने पहले कुलपति बने डॉ ताराचंद आजाद भारत में 1950 तक पद पर रहे। इसके बाद से कुलपति नियुक्त होने लगे।

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    इतिहास और राजनीति विज्ञान विभाग में पढ़ाते थे डॉक्‍टर ताराचंद

    17 जून 1888 को कायस्थ परिवार में जन्मे डॉ. ताराचंद केपीयूसी में प्राचार्य बनकर आए थे। यह पहले डिग्री कालेज हुआ करता था। वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हास्टल के रूप में मौजूद है। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी और प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं कि उनकी प्रतिभा को भांपकर इविवि प्रशासन ने उनके सामने विश्वविद्यालय में पढ़ाने का प्रस्ताव रखा। उसके बाद वह इतिहास और राजनीति विज्ञान विभाग में पढ़ाने लगे। वर्ष 1945 में राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. बेनीप्रसाद का निधन हो गया।

    उस समय विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए चुनाव होता था

    इसके बाद डा. ताराचंद को राजनीति विज्ञान विभाग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। उस समय विश्वविद्यालय में कुलपति और ट्रेजडार (वित्त अधिकारी) पद के लिए चुनाव होता था। तब डॉ. ताराचंद दो बार डॉ. अमरनाथ झा के खिलाफ कुलपति पद के लिए चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। डॉ. झा का दो बार तीन वर्षीय कार्यकाल पूरा हो गया। बाद में स्थितियां ऐसी बनीं कि खुद डॉ. झा ने एक अप्रैल 1947 को डॉ. ताराचंद को इविवि का कुलपति बनवाने में मदद की।

    हिंदुस्तानी एकेडमी के प्रथम सचिव बने

    प्रो. हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं कि कुलपति का कार्यकाल पूरा होने पर उन्हें भारत सरकार ने ईरान का भारतीय राजदूत बना दिया था। वर्ष 1951 से 1956 तक उन्होंने यह जिम्मा संभाला। इसके बाद भारत सरकार में शिक्षा सलाहकार भी बनाए गए। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डॉ. ताराचंद को फ्रीडम मूवमेंट ऑफ इंडिया का संपादक भी नियुक्त किया था। इसके अलावा उन्हें प्रयागराज में स्थापित ङ्क्षहदुस्तानी एकेडमी के प्रथम सचिव का दायित्व भी सौंपा गया। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं।